कौन थे भगवान गणेश के दूसरे पिता

Samachar Jagat | Wednesday, 07 Dec 2016 07:42:02 AM
Who were the second father of Lord Ganesha

भगवान गणेश के पिता शिव थे ये तो सभी जानते हैं लेकिन उनके एक और पिता थे इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं है। आपको भी ये जानकर आश्चर्य होगा कि भगवान गणेश के शिवजी के अलावा भी एक और पिता थे। आइए आपको बताते हैं गणेश के दूसरे पिता के बारे में...

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देवराज इंद्र समेत सारे देवी देवता, सिंदूरा दैत्य के अत्याचार से परेशान थे। जब ब्रह्मा जी से सिंदूरा से मुक्ति का उपाय पूछा गया तो उन्होने गणपति के पास जाने को कहा। सभी देवताओं ने गणपति से प्रार्थना की कि वह दैत्य सिंदूरा के अत्याचार से मुक्ति दिलाएं। देवताओं और ऋषियों की आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उन्होंने मां पार्वती के घर गजानन रुप में अवतार लिया।

इधर राजा वरेण्य की पत्नी पुष्पिका के घर भी एक बालक ने जन्म लिया। लेकिन प्रसव की पीड़ा से रानी मूर्छित हो गईं और उनके पुत्र को राक्षसी उठा ले गई। ठीक इसी समय भगवान शिव के गणों ने गजानन को रानी पुष्पिका के पास पहुंचा दिया। क्योंकि गणपति भगवान ने कभी राजा वरेण्य की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वह उनके यहां पुत्र रूप में जन्म लेंगे।

लेकिन जब रानी पुष्पिका की मूर्छा टूटी तो वो चतुर्भुज गजमुख गणपति के इस रूप को देखकर डर गईं। राजा वरेण्य के पास यह सूचना पहुंचाई गई कि ऐसा बालक पैदा होना राज्य के लिए अशुभ होगा। बस राजा वरेण्य ने उस बालक यानि गणपति को जंगल में छोड़ दिया।

जंगल में इस शिशु के शरीर पर मिले शुभ लक्षणों को देखकर महर्षि पराशर उस बालक को आश्रम लाए। यहीं पर पत्नी वत्सला और पराशर ऋषि ने गणपति का पालन पोषण किया। बाद में राजा वरेण्य को यह पता चला कि जिस बालक को उन्होने जंगल में छोड़ा था, वह कोई और नहीं बल्कि गणपति हैं।

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अपनी इसी गलती से हुए पश्चाताप के कारण वह भगवान गणपति से प्रार्थना करते हैं कि मैं अज्ञान के कारण आपके स्वरूप को पहचान नहीं सका इसलिए मुझे क्षमा करें। भगवान गणेश पिता वरेण्य की प्रार्थना सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा को कृपापूर्वक अपने पूर्वजन्म के वरदान का स्मरण कराया। इसके बाद भगवान गणेश ने अपने पिता वरेण्य से अपने स्वधाम-यात्रा की आज्ञा मांगी।

स्वधाम-गमन की बात सुनकर राजा वरेण्य व्याकुल हो उठे अश्रुपूर्ण नेत्र और अत्यंत दीनता से प्रार्थना करते हुए बोले- ‘कृपामय! मेरा अज्ञान दूरकर मुझे मुक्ति का मार्ग प्रदान करें। राजा वरेण्य की दीनता से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उन्हें ज्ञानोपदेश दिया, इस ज्ञानोपदेश को गणेश-गीता के नाम से जाना जाता है।

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