जानिए! किस शहर से हुई होलिका दहन की शुरुआत

Samachar Jagat | Saturday, 11 Mar 2017 04:52:01 PM
Which city started the Holika Dahan

पूरे भारत में बड़े ही हषोल्लास से होली का पर्व मनाया जाता है, दो दिन तक मनाई जाने वाली होली में पहले दिन होलिका दहन किया जाता है और दूसरे दिन रंगों की होली खेली जाती है। इस परंपरा की शुरुआत कैसे हुई, सबसे पहले किस शहर में हुआ होलिका दहन इसके बारे में अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं। आइए आपको बताते हैं इन सभी के बारे में.....

झांसी से हुई होलिका दहन की शुरूआत :-

सबसे पहली बार होलिका दहन झांसी के प्राचीन नगर एरच में ही हुआ था। झांसी में एक ऊंचे पहाड़ पर वह जगह आज भी मौजूद है, जहां होलिका दहन हुआ था। इस नगर को भक्त प्रह्लाद की नगरी के नाम से जाना जाता है। झांसी से एरच करीब 70 किलोमीटर दूर है। पुराणों के आधार पर होली मनाए जाने के पीछे की घटना भक्त प्रहलाद से जुड़ी हुई है। झांसी के एरच को हिरण्यकश्यप ने अपनी राजधानी बनाया। मान्यता के अनुसार, एरच के ग्राम ढिकौली से बने ऊंचे पहाड़ पर अग्नि जलाई गई। होलिका भक्त प्रहलाद को लेकर इसी अग्नि में प्रवेश कर गई।

चूंकि, होलिका को वरदान था कि वह अकेली जाएगी, तभी बचेगी। फिर भी वह भक्त प्रहलाद को लेकर आग में कूद गई। इससे वह उस आग में जलकर खाक हो गई, जबकि भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद को अग्नि से बचा लिया। आसपास क्षेत्र में भीषण आग फैल गई। इससे बौखलाए हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र भक्त प्रहलाद को झांसी के एरच में स्थित इसी पहाड़ जहां उसकी बहन होलिका जली, पर एक अग्नि से तपे हुए खम्भे से बांध कर मारना चाहा। खडग से उस पर प्रहार किया। तभी भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर डाला। हिरण्यकश्यप के मरने से पहले ही होलिका के रूप में बुराई जल गई और अच्छाई के रूप में भक्त प्रहलाद बच गए। उसी दिन से होली को जलाने और भक्त प्रहलाद के बचने की खुशी में अगले दिन रंग गुलाल लगा गुलाल लगाए जाने की शुरुआत हो गई।

होलिका दहन की शुरुआत हुई जबलपुर से :-

कुछ लोगों का मानना है कि होलिका दहन की शुरुआत जबलपुर शहर से हुई। मान्यता के अनुसार, वर्षों पहले संस्कारधानी में लकड़ियों के ढेर के साथ प्रतीक के तौर पर होलिका की मूर्तियां बनाना शुरू किया गया। जो बाद में सभी जगहों पर प्रचलित हो गया। इनका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में किया जाता है। यहां के लोगों के अनुसार, मराठा और अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भी शहर में होलिका दहन किया जाता रहा है। लेकिन तब केवल अरंडी का पौधा होलिका के प्रतीक के रूप में लकड़ी के ढेर के ऊपर लगाया जाता था। वर्तमान में शहर में 1000 से अधिक छोटी-बड़ी होलिका प्रतिमाओं का दहन किया जाता है।

बिहार में हुआ सबसे पहला होलिका दहन :-

कुछ लोग मानते हैं कि सबसे पहले रंगों के त्योहार होली पर्व की शुरूआत बिहार के पूर्णिया जिले के एक गांव से हुई थी। मान्यता है कि बिहार के पूर्णिया जिले के धरहरा गांव में पहली बार होली मनाई गई थी। यहां होलिका दहन के दिन करीब 50 हजार श्रद्धालु राख और मिट्टी से होली खेलते हैं। लोगों के अनुसार, पूर्णिया के बनमनखी का सिकलीगढ़ धरहरा गांव होलिका दहन की परंपरा के आरंभ का गवाह है।

मान्यता के अनुसार यहीं भगवान नरसिंह ने अवतार लिया था और यहीं होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठी थी। यहीं से होलिकादहन की शुरुआत हुई थी। मान्यता है कि सिकलीगढ़ में हिरण्यकश्यप का किला था। वहां भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए खंभे से भगवान नरसिंह ने अवतार लिया था। धारणा है कि उस स्तंभ का हिस्सा (माणिक्य स्तंभ) आज भी मौजूद है, जहां राजा हिरण्यकश्यप का वध हुआ था। यह स्तंभ 12 फीट मोटा और लगभग 65 डिग्री पर झुका हुआ है।



 
loading...
रिलेटेड न्यूज़
ताज़ा खबर

Copyright @ 2024 Samachar Jagat, Jaipur. All Right Reserved.