कामाख्या मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है, आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि यहां पर देवी के योनि भाग की ही पूजा की जाती है। मंदिर में एक छोटा सा कुंड है, जो हमेशा फूलों से ढ़का रहता है, इस पीठ को महापीठ माना जाता है। मान्यता के अनुसार इस जगह पर माता का योनि भाग गिरा था, इसी कारण यहां पर माता हर साल तीन दिनों के लिए रजस्वला होती हैं।
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इस दौरान मंदिर को बंद कर दिया जाता है, तीन दिनों के बाद मंदिर को बहुत ही उत्साह के साथ खोला जाता है। यहां पर भक्तों को प्रसाद के रूप में एक गीला कपड़ा दिया जाता है, जिसे अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं। कहा जाता है कि देवी के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के आस-पास सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है।
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तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है, बाद में इसी वस्त्र को भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। सती स्वरूपिणी आद्यशक्ति महाभैरवी कामाख्या तीर्थ विश्व का सर्वोच्च कौमारी तीर्थ भी माना जाता है। इसीलिए इस शक्तिपीठ में कौमारी-पूजा अनुष्ठान का भी अत्यन्त महत्व है।
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