चंडीगढ़ । मुनिश्री विनयकुमारजी आलोक ने कहा कि मन को मारने से इच्छाएं नहीं मरती। सकारात्मकता खुशबू की तरह है, जो हमें ही नहीं, पूरे वातावरण को महका देती है। डर और आशंकाओं को मन से निकाल कर यदि हम सकारात्मक सोचें तो हमारा पूरा परिवेश खुशियों की महक से भर जाएगा। मनीषी संत मुनिश्री विनयकुमार जी आलोक अणुव्रत भवन सैक्टर-24 सी के तुलसीसभागार में जनसभा को संबोधित कर रहे थे।
मनीषीश्रीसंत ने कहा कि मन में हम जैसे विचार लाएंगे, उसका वैसा ही असर होगा। यदि हम सकारात्मक सोचेंगे, तो उसकी प्रतिक्रिया भी सकारात्मक ही होगी। यह स्वयंसिद्ध बात भी है, क्योंकि अक्सर सकारात्मक रहने वाले लोगों को खुश और नकारात्मक सोच रखने वालों को अक्सर दुखी देखा जाता है। दरअसल, हमारा मन हमारी सोच से पूरी तरह प्रभावित हो जाता है।
हमारी सोच जैसी भी होती है, वह हमारे चेहरे पर, हमारे व्यवहार में, हमारे कार्यों में दिखने लगती है। यदि हमारे भीतर डर और आशंकाओं की आमद हो चुकी है, तो वह हमारी आंखों के जरिये, हमारे माथे की शिकन में, हमारी बातों में, हमारे कामों में दिखेंगी। हम डर और आशंकाओं में पूरी तरह जीने लगेंगे और कभी भी खुश नहीं रह पाएंगे। हमेशा हम भयभीत और नकारात्मक बने रहेंगे।
मनीषीश्रीसंत ने कहा डर का प्रेत हमें वाकई धीरे-धीरे खा ही जाएगा। सिर्फ डर ही नहीं, कोई भी नकारात्मक विचार यदि हम मन में बैठा लें, तो वह हमें पूरी तरह नकारात्मक बना देता है। यह नकारात्मक छवि हमें लोगों से दूर कर देती है। वहीं सकारात्मक विचार हमें लोगों से जोड़ती हैं, दूसरों की मदद करने को प्रेरित करती हैं।