शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला की पूजा की जाती है। इस दिन घरों में चुल्हा नहीं जलता है। एक दिन पहले बनाया हुआ बासी खाना इस दिन खाया जाता है, आज शीतला अष्टमी के पर्व पर हम आपको यहां बता रहे हैं शीतला माता के प्रमुख पांच मंदिरों के बारे में .....
शीतला मंदिर गुड़गाँव :-
गुड़गाँव में स्थित है शीतला माता मंदिर, नवरात्रि के दिनों में माता के दर्शनों के लिए इस मंदिर में भक्तों की काफ़ी भीड एकत्रित होती है। मान्यता के अनुसार यहां पूजा करने से शरीर पर निकलने वाले दाने 'माता' या चेचक नहीं निकलते हैं। इसके अलावा नवजात शिशुओं के बालों का प्रथम मुंडन भी यहां पर कराया जाता है।
शीतला माता का चमत्कारी मंदिर पाली :-
राजस्थान के पाली जिले में स्थित शीतला माता का मंदिर बहुत ही चमत्कारी है। यहां हर साल सैकड़ों साल पुराना इतिहास दोहराया जाता है, इस मंदिर में आधा फीट गहरा और इतना ही चौड़ा घड़ा स्थित है जिसे साल में दो बार श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। यहां की मान्यता के अनुसार इस घड़े में कितना भी पानी क्यों ना डाला जाए ये कभी नहीं भरता है। इसका पानी कहां जाता है इसके बारे में वैज्ञानिक भी रिसर्च कर चुके हैं लेकिन कुछ पता नहीं लगा है। यहां के लोगों की माने तो ये पानी राक्षस पीता है और इसी कारण ये घड़ा नहीं भरता है।
शीतला धाम अदलपुरा :-
चुनार के अदलपुरा नामक स्थान पर शीतला धाम है और यहां पर शीतला माता का प्राचीन मंदिर स्थित है। ये देश के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है, इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां मांगी गई सभी मुरादें मां शीतला पूरी करती हैं। जो श्रद्धालु यहां आते हैं वे मंदिर परिसर के बाहर दिन-रात चादर बिछाकर रहते हैं, वहीं खाना बनाते हैं। सबसे ज्यादा चैत्र मास में भक्त माता के दर्शनों के लिए यहां आते हैं।
शीतला माता मंदिर ग्वालियर :-
ग्वालियर के शीतला माता मंदिर में शीतला आष्टमी के दिन महिलाएं माता को ठंडे पकवानां का भोग लगाती हैं। ये माना जाता है कि यहां ठंडे पकवानों का भोग लगाने से परिवार को चेचक, दाने जैसे घातक रोगों से मुक्ति मिलती है।
शीलकी डूंगरी, जयपुर :-
जयपुर जिले की चाकसू तहसील में शीलकी डूंगरी नाम से एक गांव है जहां पहाड़ के ऊपर माता का बड़ा मंदिर स्थापित है, यहां आस-पास के क्षेत्र से महिला और पुरूष रात में ही पहुंचना शुरू हो जाते हैं और सुबह जल्द ही माता की पूजा अर्चना करते हैं। इसके बाद बासी खाने को प्रसाद के रूप में खाया जात है। शीतला माता ही एक ऐसी माता है जिसकी खंडित रूप में पूजा की जाती है और इस माता की पूजा कुम्हार समाज के लोग करते हैं।