चूहा भगवान गणेश का वाहन है, गणपति हमेशा चूहे पर विराजमान रहते हैं। क्या आप जानते हैं कि कैसे भगवान गणेश ने चूहे को अपना वाहन बनाया। उन्होंने अपने वाहन के रूप में चूहे को ही क्यों चुना। शास्त्रों में एक कथा में इसका वर्णन किया गया है। आइए आपको बताते हैं इस कथा के बारे में.....
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चूहा कैसे बना भगवान गणेश का वाहन :-
द्वापर युग के समय की घटना है महर्षि पराशर अपने आश्रम में ध्यान मग्न थे। तभी कहीं से बहुत ही शक्तिशाली मूषक आया और महर्षि पराशर के ध्यान में विध्न डालने लगा और उनके आश्रम में रखे अनाज, वस्त्र और ग्रंथों को कुतर डाला। उस मूषक को रोकने का भरसक प्रयास किया गया किंतु वह पकड़ से बाहर रहा। उसने सारे आश्रम को अस्त व्यस्त कर दिया।
जब वह थक हार गए तो अपने इस विघ्न से उभरने के लिए विघ्नहर्ता भगवान गणेश की शरण में गए और उनकी उपासना करने लगे। गणेश जी महर्षि की उपासना से हर्षित हुए और उपद्रवी मूषक को पकड़ने के लिए अपना पाश फेंका। पाश को अपनी तरफ बढ़ते देख मूषक भागता हुआ पाताल लोक पहुंच गया। पाश ने उसका पीछा नहीं छोड़ा और उसे बांधकर गणेश जी के सामने उपस्थित किया।
गणेश जी की बलिष्ठ काया को देख कर वह उनका स्तुतिपाठ करने लगा। गणेश जी उसके स्तुतिपाठ से खुश हुए और बोले, तुमने महर्षि पराशर के आश्रम में इतनी उथल- पुथल क्यों मचाई यही नहीं उनका ध्यान भी भंग किया। मूषक कुछ न बोला चुपचाप खड़ा रहा। गणेश जी आगे बोले, अब तुम मेरे आश्रय में हो इसलिए जो चाहो मुझ से मांग लो।
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गणेश जी के मुख से ऐसे वचन निकलते ही मूषक का घमंड उत्पन्न हुआ और वह बड़े गर्व से गणेश जी को बोला, मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए। हां, अगर आप चाहें तो मुझसे कुछ मांग सकते हैं। गणेश जी उसकी बात सुनकर मुस्कुराए और बोले, ठीक है मूषक अगर तुम मुझे कुछ देना चाहते हो तो तुम मेरे वाहन बन जाओ।
उसी पल से मूषक गणेश जी का वाहन बन गया लेकिन जैसे ही गणेश जी ने मूषक पर पहली सवारी की तो गणेश जी की भारी भरकम देह से वह दबने लगा। मूषक का घमंड चूर-चूर हो गया और वह गणेश जी से बोला, गणपति बप्पा! मुझे माफ कर दें। आपके वजन से मैं दबा जा रहा हूं। अपने वाहन की प्रार्थना पर गणेश जी ने अपना भार कम कर लिया। इस घटना के उपरांत से ही मूषक गणेश जी का वाहन बनकर उनकी सेवा में लगा।
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