प्राचीनकाल में होली का पर्व कई दिनों तक मनाया जाता था और रंगपंचमी होली का अंतिम दिन होता था और उसके बाद कोई रंग नहीं खेलता था। ये परंपरा भारत की कई जगहों पर अब भी बरकरार है। होली के पांच दिन बाद आने वाली पंचमी के दिन मध्यप्रदेश के मालवा में रंगपंचमी का पर्व मनाया जाता है।
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आज यहां रंगपंचमी का पर्व बढ़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस दिन मंदिरों में जाकर लोग विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और इसके बाद जमकर गुलाल से होली खेली जाती है और घरों में बनने वाले व्यंजनों में पूरनपोली अवश्य बनाई जाती है। इंदौर में इस दिन सड़कों पर रंग मिश्रित सुगंधित जल छिड़का जाता है।
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लगभग पूरे मालवा प्रदेश में होली पर जलूस निकालने की परंपरा है। जिसे गेर कहते हैं। जलूस में बैंड-बाजे-नाच-गाने सब शामिल होते हैं। इन दिन लोग होली खेलने के साथ ही जमकर नाच-गाने का आनंद लेते हैं।
यहां के मछुआरों की बस्ती मे इस त्योहार पर लोग एक दूसरे के घरों को मिलने जाते हैं और काफी समय मस्ती मे व्यतीत करते हैं। वहीं राजस्थान के जैसलमेर मंदिर में इस अवसर पर लोकनृत्य किए जाते हैं।
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