यहां पर होली की आग के बीच से निकलते हैं पण्डे, पढ़ें पूरी कहानी

Samachar Jagat | Saturday, 11 Mar 2017 11:19:58 AM
mathura holi festival

ब्रज की होलियों में बरसाना, नन्दगांव की लठामार होलियां, मुखराई के चरकुला, बल्देव के हुरंगा एवं मोरकुटी के मयूर नृत्य ने यदि अपनी पहचान विश्व के कोने-कोने में पहुंचाने में सफलता पाई है तो छाता तहसील के दो गांवों जटवारी और फालैन गांव में इन गांवों का ही पण्डा होलिका की आग से होकर निकलता है। इस बार 12 मार्च की रात दोनों गांवों में पण्डे होलिका की लपटों से होकर निकलेंगे।

जटवारी गांव के पूर्व प्रधान एवं मशहूर चिकित्सक डा. रामहेत ने बताया कि गांव का पण्डा होलिका की लपटों के बीच में से होकर निकलता है। पण्डा वसंत पंचमी से गांव के प्रह्लाद मंदिर में भजन पूजन करता रहता है तथा मंदिर में ही धरती पर सोता है। वह फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से अन्न का परित्याग कर केवल फल और दूध ही ग्रहण करता है तथा दोनो वक्त हवन करता है।

उन्होंने बताया कि माघ मास की पूर्णिमा को गांव की पंचायत में पिछले वर्ष के पण्डे से विचार विमर्श करने के बाद होलिका की आग के बीच से निकलने वाले पण्डे का निर्णय किया जाता है। यदि वह मना कर देता है तो वहां उपस्थित अन्य लोगों से इसके लिए पूछा जाता है। जटवारी गांव की होलिका की ऊंचाई 20 फीट से अधिक तथा व्यास लगभग 20 फीट होता है। यह होलिका गांव के प्रह्लाद मंदिर के निकट ही जलाई जाती है।

डा. सिह ने बताया कि होलिका में आग लगाने के समय का निर्धारण पण्डा स्वयं करता है। होली के दिन पण्डा सुबह के बाद जब शाम को हवन करता है तो पास में एक मोटी लौ का दीपक रखा जाता है। पण्डा कुछ समय के अंतराल पर दीपक की लौ पर अपने हाथ की हथेली रखता है। दीपक की लौ उसे गर्म महसूस होती है तो उसे वह हटा लेता है, दीपक की लौ उसकी हथेली को गर्म नहीं लगती और लौ उसके उंगलियों के बीच से निकल जाती है। इस समय, पण्डा बहुत जोर से कांपने लगता है तथा ठंढ महसूस करने के कारण उसे बार- बार जमुहाई आती है।

डा. सिह ने बताया कि इसी समय पण्डा होलिका में आग लगाने को कहता है तथा स्वयं भागकर निकट के प्रह्लाद कुण्ड में स्नान करने चला जाता है। इसी बीच उसकी बहन प्रह्लाद कुण्ड से होली तक के मार्ग में करूए से पानी डालती है। पण्डा इसी मार्ग से होकर होलिका की लपटों से होकर निकल जाता है। बाद में उसे सात-आठ रजाइयों से ढक दिया जाता है तथा गर्म दूध पीने को दिया जाता है।

डा. सिंह के अनुसार गांव का सुक्खी पण्डा होलिका की लपटों के बीच से 27 साल तक लगातार निकलता रहा था तथा अभी तक उसका रिकॉर्ड कोई नही तोड सका है। वर्तमान पण्डा सुनील होलिका की लपटों के बीच से पिछले तीन साल से लगातार निकल रहा है। होली के दिन गांव में मेला सा लग जाता है। विभिन्न गावों की टोलियां आकर रसिया गायन एवं मनोहारी नृत्य करती हैं।

छाता तहसील के फालेन गांव में भी पण्डा होलिका के बीच से निकलता है। इस गांव में इमारतलाल श्रीचन्द पण्डा होलिका की धधकती आग से 11 बार निकल चुका है तथा उसके बाद उसके रिकॉर्डको कोई नहीं तोड़ पाया है। गोपाल मंदिर के महंत एवं फालेन गांव की होली के संयोजक बालक दास ने बताया कि पिछली बार के पण्डे हीरालाल द्वारा इस बार होलिका से निकलने से मना कर देने के कारण पुराना पण्डा बाबूलाल एक बार फिर होली से निकलेगा। यह उसका होलिका से निकलने का तीसरा प्रयास होगा। उन्होंने बताया कि होली के दिन गांव में मेला सा लग जाता है।

महंत बालकदास के अनुसार होली के दिन शाम को पण्डा प्रहलाद कुण्ड से स्नान के बाद आता है और पलक झपकते ही 30 फीट व्यास की लगभग 16 फीट ऊंची धधकती होली से निकल जाता है। महंत के अनुसार दोनों ही गांव की होलिका इतनी बड़ी होती हैं कि जो लोग पण्डे को देखने के लिए होलिका के नजदीक खड़े होते हैं। होलिका में आग लगने के बाद वे दूर भागने लगते है किंतु प्रहलाद जी की कृपा के कारण ही पण्डे होलिका की धधकती आग से निकल पाते हैं।

कोसी के समाजसेवी सुभाष गोयल ने बताया कि फालेन गांव जाने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग पर कोसी पर उतरना होगा तथा यहां से कोसी पैगांव मार्ग से फालेन पहुंचा जा सकता है जब कि जटवारी गांव जाने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग पर छाता पर उतरना होगा तथा यहां से शेरगढ़ होते हुए जटवारी पहुंचा जा सकता है।-एजेंसी

 



 

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