कालाष्टमी पर भगवान शिव के भैरव रूप की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत भी किया जाता है। कालाष्टमी की शुरूआत कैसे हुई, इसके पीछे क्या कथा छिपी हुई है आइए आपको बताते हैं इसके बारे में....
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कथा :-
भैरवाष्टमी या कालाष्टमी की कथा के अनुसार एक समय श्रीहरि विष्णु और ब्रह्मा के मध्य विवाद उत्पन्न हुआ कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है। यह विवाद इस हद तक बढ़ गया कि समाधान के लिए भगवान शिव एक सभा का आयोजन करते हैं। इस सभा में महत्वपूर्ण ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि उपस्थित थे।
सभा में लिए गए एक निर्णय को भगवान विष्णु तो स्वीकार कर लेते हैं, किंतु ब्रह्मा जी इस निर्णय से संतुष्ट नहीं होते। वे महादेव का अपमान करने लगते हैं। शांतचित शिव यह अपमान सहन न कर सके और ब्रह्मा द्वारा अपमानित किए जाने पर उन्होंने रौद्र रुप धारण कर लिया। भगवान शंकर प्रलय के रूप में नज़र आने लगे और उनका रौद्र रुप देखकर तीनों लोक भयभीत हो गए। भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए।
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भैरव जी श्वान पर सवार थे, उनके हाथ में दंड था। हाथ में दण्ड होने के कारण वे ‘दण्डाधिपति’ कहे गए। भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था। उनके रूप को देखकर ब्रह्मा जी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। वह भगवान भोलेनाथ एवं भैरव की वंदना करने लगे। भैरव जी ब्रह्मा एवं अन्य देवताओं और साधुओं द्वारा वंदना करने पर शांत हो जाते हैं।
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