पांडव कुल के अंतिम सम्राट जनमेजय ने पृथ्वी से सांपों का अस्त्तिव मिटाने के लिए सर्पमेध यज्ञ किया। आखिर ऐसा क्या कारण था जिसकी वजह से जनमेयज को सर्पमेध यज्ञ करना पड़ा। जनमेयज की सांपों से क्या दुश्मनी थी। आइए आपको विस्तार से बताते हैं इस कथा के बारे में....
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महाभारत के युद्ध के बाद कुछ समय तक पांडवों ने हस्तिनापुर पर राज किया। अंत में हिमालय पर जाने से पहले उन्होंने अपने राज्य का जिम्मा अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को दे दिया। परीक्षित अच्छी तरह से पांडवों की परंपरा को आगे बढ़ा रहे थे। एक दिन राजा परीक्षित शिकार के लिए जंगल में गए। शिकार खेलते-खेलते वह ऋषि शमिक के आश्रम से होकर गुजरे।
ऋषि शमिक उस समय ब्रह्म ध्यान में लीन थे, उन्होंने राजा परीक्षित की ओर ध्यान नहीं दिया। इससे परीक्षित क्रोधित हो गए और उन्होंने ऋषि के गले में एक मरा हुआ सांप डाल दिया। जब ऋषि का ध्यान हटा तो उन्हें परीक्षित पर बहुत क्रोध आया और उन्होंने क्रोधित होकर राजा परीक्षित को शाप दिया कि जाओ तुम्हारी मौत सांप के काटने से ही होगी। राजा परीक्षित ने इस शाप से मुक्ति के लिए बहुत प्रयास किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
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ऋषि का शाप झूठा नहीं हो सकता था, जब चारों तरफ से राजा परीक्षित ने अपने आपको सुरक्षित कर लिया तो एक दिन एक ब्राह्मण उनसे मिलने आए। उपहार के तौर पर ब्राह्मण ने राजा को फूल दिए। परीक्षित को डसने वाला सर्प ‘तक्षक’ उसी फूल में एक छोटे कीड़े की शक्ल में बैठा था। तक्षक सांपो का राजा था। मौका मिलते ही उसने सर्प का रुप धारण कर लिया और राज परीक्षित को डस लिया। राजा परीक्षित की मौत के बाद राजा जनमेजय हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठे। जनमेजय पांडव वंश के आखिरी राजा थे।
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