महाभारत के अधिकतर पात्रों के जन्म की कथा कुछ हटकर और रोचक है। इसमें से ही एक थी भीष्म पितामह की सौतेली मां सत्यवती, इन्हें गंधा के नाम से भी जाना जाता है। गंधा का जन्म माता-पिता के संसर्ग से नहीं हुआ था, आप भी ये जरूर जानना चाहेंगे कि आखिर इस कन्या का जन्म कैसे हुआ। तो आइए आपको बताते हैं पुराणों में वर्णित इस कन्या के जन्म की कथा के बारे में.....
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एक बार राजा सुधन्वा जब वन में शिकार के लिए गए तो पीछे से इनकी रानी रजस्वला हुई और उनके मन में गर्भधारण करने की इच्छा जागृत हुई। उन्होंने एक शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास संदेश भेजा। जिसमें उन्होंने अपनी इच्छा जाहिर की। राजा ने उस पक्षी को एक पात्र में अपना वीर्य डालकर दिया और कहा इसे रानी को दे देना।
शिकारी पक्षी ने रानी के पास जाने के लिए उड़ान भरी रास्ते में एक अन्य शिकारी पक्षी के साथ उसकी लड़ाई होने लगी। इसी बीच वीर्य का पात्र यमुना नदी में गिर गया। यमुना में ब्रह्मा जी के श्राप से एक श्रापित अप्सरा मछली रूप में रह रही थी। वीर्य का पात्र उसने ग्रहण कर लिया और वह गर्भवती हो गई।
गर्भकाल का समय जब पूरा होने वाला था तभी एक मछुआरे के जाल में वह मछली फंस गई। इतनी बड़ी मछली को देखकर सभी मछुआरे बहुत हैरान हुए और इसे राजा सुधन्वा के दरबार में ले गए। राजा की आज्ञा से मछली का पेट काटा गया तो उसमें से एक बालक और एक बालिका निकली।
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बालिका के शरीर से मछली की गंध आ रही थी राजा ने उसे मछुआरे को दे दिया, इस बालिका का नाम मत्स्यगंधा रखा गया। बालक को राजा ने रख लिया। समय के साथ-साथ मत्स्यगंधा बड़ी होती गई उसके रूप यौवन में भी निखार आता चला गया। वह अप्सराओं की तरह बहुत सुंदर थी।
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