विज्ञान ने एक नई तकनीक टेस्ट ट्यूब बेबी पद्धति को जन्म दिया है। इसे आज के युग का एक विशेष आविष्कार माना जाता है लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि ये तकनीक नई नहीं है। प्राचीन काल में भारत के ऋषि-मुनि टेस्ट ट्यूब बेबी पद्धति से परिचित थे और महाभारत काल में इस पद्धति का प्रयोग किया जा चुका है। आपको बता दें कि धृतराष्ट्र के 100 पुत्रों का जन्म इसी तकनीक से हुआ था। जब गांधारी ने पहली बार गर्भ धारण किया, तो दो वर्ष समाप्त होने के बाद भी उन्हें कोई संतान नहीं हुई।
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तब एक ऋषि ने उन्हें गर्भ को 101 मिट्टी के बर्तनों में डालने का उपाय बताया, क्योंकि गांधारी के लिए बच्चे को जन्म दे पाना संभव नहीं था। इसके बाद गांधारी के गर्भ को 101 मिट्टी के बर्तनों मे डाल दिया गया, जो टेस्ट ट्यूब तकनीक का ही एक रूप था। गर्भ को मिट्टी के बर्तनों में डालने के बाद उसमें से ‘सौ’ पुत्र और एक ‘पुत्री’ ने जन्म लिया। जिस तकनीक को 10 साल पहले विकसित कर अमेरिका ने पेटेंट लिया था, उसका वर्णन महाभारत के अध्याय ‘आदिपर्व’ में किया गया है।
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इसमें बताया गया है कि कैसे गांधारी के एक भ्रूण से कौरवों का जन्म हुआ। ये ऋषि सिर्फ टेस्ट ट्यूब बेबी और भ्रूण को बांटना ही नहीं जानते थे, बल्कि वे उस तकनीक से भी परिचित थे जिसकी मदद से महिला के शरीर से अलग या बाहर मानव के भ्रूण को विकसित किया जा सकता है। आज भले ही विज्ञान ने कितनी ही प्रगति क्यों न कर ली हो इसके बाद भी आधुनिक विज्ञान शरीर से अलग भ्रूण को विकसित करने की तकनीक से अपरिचित है।
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