पाण्डवों के जन्म के पीछे भी एक बहुत ही रोचक कथा छिपी हुई है। पाण्डवों का जन्म बिना पिता के वीर्य के हुआ था। एक श्राप के कारण पाण्डु अपनी पत्नीयों के साथ संभोग नहीं कर सकते थे और इसी कारण वे पिता बनने में असमर्थ थे। आप जरूर जानना चाहेंगे कि पाण्डवों का जन्म कैसे हुआ, आइए आपको बताते हैं इसके बारे में....
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एक बार राजा पाण्डु अपनी दोनों पत्नियों कुंती तथा माद्री के साथ आखेट के लिए वन में गए। वहां उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दिखाई दिया। पाण्डु ने बिना कुछ सोचे -समझे तत्काल अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया। मरते हुए मृग ने पाण्डु को शाप दिया, राजन! तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस संसार में कोई भी नहीं है। तूमने मुझे मैथुन के समय बाण मारा है अतः जब कभी भी तुम मैथुनरत होगे तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।
इस श्राप से पाण्डु अत्यंत दुःखी हुए और अपनी रानियों से बोले, “हे देवियों! अब मैं अपनी समस्त वासनाओं का त्याग करके इस वन में ही रहूंगा तुम लोग हस्तिनापुर लौट जाओ़। उनके वचनों को सुनकर दोनों रानियों ने दुःखी होकर कहा, नाथ! हम आपके बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकतीं। आप हमें भी वन में अपने साथ रखने की कृपा करें। पाण्डु ने उनके अनुरोध को स्वीकार करके उन्हें वन में अपने साथ रहने की अनुमति दे दी।
इसी दौरान राजा पाण्डु ने अमावस्या के दिन ऋषि-मुनियों को ब्रह्मा जी के दर्शनों के लिए जाते हुए देखा। उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से स्वयं को साथ ले जाने का आग्रह किया। उनके इस आग्रह पर ऋषि-मुनियों ने कहा, राजन कोई भी निःसन्तान पुरुष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता अतः हम आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं।
ऋषि-मुनियों की बात सुनकर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले, हे कुन्ती मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है क्योंकि संतानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता। क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिए मेरी सहायता कर सकती हो? कुंती बोली, हे आर्यपुत्र दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मंत्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूं। आप आज्ञा करें मैं किसी देवता को बुलाऊं।
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इस पर पाण्डु ने धर्म को आमंत्रित करने का आदेश दिया। धर्म ने कुन्ती को पुत्र प्रदान किया जिसका नाम युधिष्ठिर रखा गया। कालान्तर में पाण्डु ने कुन्ती को पुनः दो बार वायुदेव तथा इन्द्रदेव को आमंत्रित करने की आज्ञा दी। वायुदेव से भीम तथा इंद्र से अर्जुन की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात् पाण्डु की आज्ञा से कुंती ने माद्री को उस मंत्र की दीक्षा दी। माद्री ने अश्वनीकुमारों को आमन्त्रित किया और नकुल तथा सहदेव को जन्म दिया।
एक दिन राजा पाण्डु माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। वातावरण अत्यन्त रमणीक था और शीतल-मन्द-सुगन्धित वायु चल रही थी। सहसा वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया। इससे पाण्डु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन मे प्रवृत हुए ही थे कि श्रापवश उनकी मृत्यु हो गई। माद्री उनके साथ सती हो गई। वहीं पुत्रों के पालन-पोषण के लिए कुंती हस्तिनापुर लौट आई।
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