चंडीगढ़। मुनिश्री विनयकुमार जी आलोक ने कहा कि सभी विचारों व कर्मों में श्रद्धा प्राण स्वरूप है। श्रद्धा हृदय में सत्य की अनुभूति करने की प्रेरणा देती है। त्याग व समर्पण के साथ श्रद्धा का विशेष महत्व है। श्रद्धा का अंकुर जगाने के लिए हृदय पवित्र व शुद्ध होना चाहिए।
श्रद्धा ही है मां पार्वती। श्रद्धा टूटे हृदय को जोडने के साथ-साथ प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त करती है। श्रद्धा से ज्ञान की प्राप्ति होती है। श्रद्धा का बीज बोए बगैर व्यक्ति को सफलता नहीं मिल सकती है। श्रद्धा भाव का जीवन में विशेष महत्व है। श्रद्धा यदि सच्ची है, संकल्प यदि दृढ़ है तो कुछ न कुछ विशेष अवश्य घटित होता है।
श्रद्धा में कई बार समर्पण करने की आवश्यकता भी होती है। अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि किसी से सम्मान हासिल करने के लिए जरूरी है कि हम भी दूसरों को आदर और सम्मान दें। आज समाज में माता-पिता को श्रद्धा देने की बात तो दूर उन्हें परिवार में तिरस्कृत जीवन जीना पड़ रहा है।
समाज में संस्कार लुप्त होते जा रहे हैं। प्रेम और सद्भाव देखने को नहीं मिलता। लोगों में संवेदना तक नहीं है। हर कोई अपने-अपने स्वार्थ की पूॢत में जुटा हुआ है।