इटावा के कालीवाहन मंदिर मे सबसे पहले पूजा करते हैं अश्वथामा

Samachar Jagat | Monday, 27 Mar 2017 04:08:31 PM
Ashwathama worshiped at the Kalvahan temple in Etawah

इटावा। उत्तर प्रदेश के इटावा में यमुना नदी के तट पर मां काली के मंदिर में मान्यता है कि महाभारत का अमर पात्र अश्वथामा आज भी रोज सबसे पहले यहां पूजा करता है। कालीवाहन नामक यह मंदिर इटावा मुख्यालय से मात्र पांच किलोमीटर दूर यमुना के किनारे स्थित है। नवरात्र पर इस मंदिर का खासा महत्व हो जाता है। दूरदराज से श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के इरादे से यहां पहुंचते हैं।

नैमिषारण्य में वासंतिक नवरात्र की तैयारियां पूरी

मंदिर के मुख्य महंत राधेश्याम दुबे ने कहा कि वह करीब 35 साल से इस मंदिर की सेवा कर रहे हैं। रात में रोजाना मंदिर को धोकर साफ कर दिया जाता है। तडके जब गर्भगृह खोला जाता है उस समय मंदिर के भीतर ताजे फूल मिलते हैं जिससे साबित होता है कि कोई मंदिर में आकर पूजा करता है। कहा जाता है कि महाभारत के अमर पात्र अश्वथामा मंदिर मे पूजा करने के लिये आते है।

काली वाहन मंदिर शक्तिमठ में दुर्गा-पूजा के प्राचीनतम स्वरूप की अभिव्यक्ति है। इटावा के गजेटियर में इसे काली भवन का नाम दिया गया है। यमुना के तट के निकट स्थित यह मंदिर देवी भक्तों का प्रमुख केन्द्र है। इष्टम अर्थात शैव क्षेत्र होने के कारण इटावा में शिव मंदिरों के साथ दुर्गा के मंदिर भी बड़ी सख्या में हैं। महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती की प्रतिमाएं हैं, इस मंदिर में स्थित मूर्ति शिल्प 10 वीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य का है। मंदिर का निर्माण बीसवीं शताब्दी की देन है। मंदिर में देवी की तीन मूर्तियां महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती की है।

इस गुफा में आज भी सुरक्षित रखा हुआ है रावण का शव, क्या आप देखना चाहेंगे

महाकाली का पूजन शक्ति धर्म के आरंभिक स्वरूप की देन है। मार्कण्डेय पुराण एवं अन्य पौराणिक कथानकों के अनुसार दुर्गा जी प्रारम्भ में काली थी। महाभारत में इस बात का उल्लेख है कि दुर्गाजी ने जब महिषासुर तथा शुम्भ-निशुम्भ का वध कर दिया, तो उन्हें काली, कराली, काल्यानी आदि नामों से भी पुकारा जाने लगा। कालीवाहन मंदिर श्रद्धा का केन्द्र है। नवरात्रि के दिनों में यहाँ बड़ी संख्या में श्रृद्धालु आते हैं।

कालीवाहन मंदिर काफी पहले से सिनेमाई निर्देशको के आकर्षण का केंद्र बना रहा है। डाकुओ पर बनी कई फिल्मों की शूटिंग इस मंदिर परिसर मे हो चुकी है। निर्माता निर्देशक कृष्णा मिश्रा की फिल्म बीहड की भी फिल्म का कुछ हिस्सा इस मंदिर मे फिल्माया गया है । बीहड नामक यह फिल्म 1978 से 2005 के मध्य चंबल घाटी मे सक्रिय रहे डाकुओ की जिंदगी पर बनी है। - एजेंसी

(Source - Google)

इन ख़बरों पर भी डालें एक नजर :-

चांदी से जुड़े ये उपाय चमका देंगे आपकी किस्मत

कहीं आपके अवगुण तो नहीं बन रहे आपकी असफलता का कारण

ईशान कोण के लिए कुछ खास वास्तु टिप्स



 
loading...
रिलेटेड न्यूज़
ताज़ा खबर

Copyright @ 2024 Samachar Jagat, Jaipur. All Right Reserved.