अब हम कश्मीर के बारे में सोचते हैं, तो आतंकवाद के बारे में सोचते हैं, उन नौजवानों के बारे में सोचते हैं, जो हाथों में पत्थर लेकर उन्हें सुरक्षा बलों पर फेंकते हैं। लेकिन आतंकवाद और पत्थर फेंकते नौजवान कश्मीर का अधूरा सच हैं। कश्मीर का इससे बड़ा सच वह है, जो अक्सर खबरों की सनसनी के बीच अपने लिए जगह नहीं बना पाता। अचानक किसी घटना के बाद हम ऐसे सच से रूबरू हो पाते हैं और फिर जल्द ही उसे भूल भी जाते हैं। जैसे हम नबील अहमद वानी को लगभग भूल चुके थे।
पिछले साल उनका नाम सुर्खियों में तब आया था, जब उन्होंने सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ में कमांडेंट पद के लिए हुई प्रवेश परीक्षा में टॉप किया था। हमने इसे एक छोटी सी खबर मानकर भुला दिया। नबील को मिलने वाला कवरेज आतंकवादी बुरहान वानी को मिलने वाले कवरेज का दसवां हिस्सा भी नहीं था, जबकि बुरहान वानी जहां नौजवानों से एक हाथ में पत्थर और दूसरे में हथियार लेने की बात कह रहा था, तो वहीं नबील वानी कह रहे थे कि नौजवानों को हाथ में कलम पकडऩी होगी, वे पढ़-लिखकर ही आगे बढ़ सकेंगे, पत्थर फेंककर नहीं। हम उन गुमराह नौजवानों के बारे में खूब चर्चा करते रहे हैं, जो बुरहान वानी को अपना रोल मॉडल मानते हैं, लेकिन उन बहुसंख्य नौजवानों को भुला दिया गया, जिनके रोल मॉडल नबील अहमद वानी हैं। नबील अहमद वानी इन दिनों फिर से चर्चा में हैं।
उन्होंने महिला कल्याण मंत्री मेनका गांधी को एक चिट्ठी लिखी है। यह चिट्ठी उनकी बहन के बारे में है, जो पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में पढ़ रही हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें महिला छात्रावास छोडऩे को कहा है। नबील ने अपनी चिट्ठी में यह भी लिखा है कि उन्हें अपने परिवार को लेकर हमेशा चिंता रहती है, क्योंकि आतंकवादी संगठन उनके खिलाफ हैं। नबील की इस तरह की चिंता जायज भी है। पिछले दिनों कश्मीर घाटी में जिस तरह आतंकवादियों ने लेफ्टिनेंट उमर फैयाज की निर्मम हत्या की, वह बताता है कि आतंकी समूह उन सभी लोगों से नफरत करते हैं, जो भारतीय तंत्र में ऊंचे पदों पर पहुंचे हैं और कश्मीरी नौजवानों के असली रोल मॉडल हैं।
आतंकी संगठनों की दिक्कत यह है कि ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। कश्मीरी नौजवान सिविल सॢवसेज, पीसीएस, आईआईटी सभी प्रवेश परीक्षाओं में मेहनत करके अपने लिए जगह बना रहे हैं। यहां तक कि वे खेलों के क्षेत्र में भी तेजी से आगे आ रहे हैं। यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि ये उस प्रदेश के नौजवान हैं, जहां कई दूसरे प्रदेशों जैसी बेहतर शिक्षा व्यवस्था नहीं है। और आए दिन आयोजित होने वाले बंद से उनकी पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित होती है। ऐसे नौजवानों और उनके परिवार वालों को पूरी सुरक्षा देना देश का पहला दायित्व है।
आज के कश्मीर की सबसे बड़ी जरूरत यह है कि उसे ऐसे और रोल मॉडल मिलें। आतंकवाद और अलगाववाद आज के कश्मीर की एक हकीकत है और हमें उससे हर कदम पर, हर तरह की लड़ाई लडऩी ही होगी। इसमें किसी तरह की कोई रियायत नहीं दी जा सकती, लेकिन इसके साथ ही एक बड़ी जरूरत यह भी है कि हम एक नए कश्मीर के निर्माण में जुट जाएं।
यह काम कश्मीर को एक नई सोच वाली नई पीढ़ी देकर ही किया जा सकता है। एक ऐसी पीढ़ी, जो अपने वर्तमान और भविष्य को कश्मीर समस्या के अतीत से जोडक़र न देखती हो। कश्मीरी नौजवानों को अच्छी शिक्षा और रोजगार देकर हम न सिर्फ उनके, बल्कि अपने सपनों को भी पूरा कर सकते हैं। यही पीढ़ी आगे चलकर कश्मीर को समाधान के रास्ते पर लेकर जाएगी।