21 वीं सदी में भी भारत में महिला स्वतंत्रता की बात करना किसी छलावे से कम नहीं है, भले ही इसके लिए सरकार और समाजसेवी संगठनों द्वारा कई तरह के कैंपेन चलाए जा रहे हों और ये माना जा रहा हो कि आज की महिला पूर्णतया स्वतंत्र है लेकिन वास्तव में आज भी महिला की स्वतंत्रता उससे कोसों दूर है। मात्र अपने मन के कपड़े पहन लेने, बाहर घूम-फिर लेने से स्वतंत्रता को परिभाषित नहीं किया जा सकता है। आज भी महिलाएं उस आजादी से वंचित हैं जो उन्हें मिलनी चाहिए। आज भी इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को अपना निर्णय लेने की आजादी नहीं है।
अपने विचारों के अनुसार उन पर चलने की आजादी नही है। सोचिए अगर आज भी कोई महिला शादी जैसे अहम मुद्दे पर अपनी राय रखती है तो वह समाज की नजरों में चुभने लगती है। कोई लव मेरिज करता है तो हमेशा उसमें लड़की को ही गलत माना जाता है। अगर कोई पुरूष अविवाहित रहना चाहे तो उससे कोई सवाल नहीं पूछा जाता है वहीं जब कोई महिला ये निर्णय लेती है तो हजारों सवाल उसके आस-पास आकर खड़े हो जाते हैं।
ऐसे में उनकी निज सोच कहीं दबकर रह जाती है। आज भी अगर किसी पुरुष की पत्नि की मौत हो जाती है तो अधेड़ उम्र में भी उसे विवाह करने के लिए समाज द्वारा बाध्य किया जाता है वहीं कम उम्र में अगर कोई महिला विधवा हो जाए तो उसका जीवन नर्क से भी बदतर बना दिया जाता है। वह दूसरे विवाह के बारे में सोच भी ले तो उसे टेढ़ी नजरों से देखा जाता है।
वहीं अगर एक विधवा किसी पुरुष से बात करे तो उसके चरित्र पर शक किया जाता है। उसे दोबारा विवाह करना है या नहीं ये उसका निजी फैंसला नहीं होता बल्कि जो उसके परिवार वाले चाहते हैं वही सब उस पर थोपा जाता है। आज के सभ्य समाज में भी अगर किसी पुरुष की महिला मित्र हों तो किसी को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन अगर किसी महिला का कोई पुरुष मित्र है तो उसे चरित्रहीन समझा जाता है।
एक विवाहित स्त्री चाहकर भी अपने पति से अलग नहीं हो पाती है। उसका पति अगर शराबी है, किसी दूसरी स्त्री के साथ संबंध रखता है या पत्नी को मारता -पीटता है तो भी समाज उसे पति को छोड़ने की स्वतंत्रता नहीं देता है, वहीं अगर महिला में कोई कमी है तो पुरूष उसे तत्परता से तलाक दे सकता है। आखिर ऐसा क्यों, हमेशा उंगलिया महिलाओं पर ही क्यों उठती हैं पुरूषों पर क्यों नहीं।
इससे साफ जाहिर होता है कि आज भी महिलाओं को प्रमुख मुद्दों पर स्वतंत्रता से निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। इन खास मुद्दों के अलावा भी बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जो महिला स्वतंत्रता पर सवाल खड़े करते हैं। ऐसे में 21 वीं सदी में महिलाओं की स्वतंत्रता की बात करना मात्र एक छलावा है और कुछ नहीं।