“तुम हस्ती हो कुछ ऐसी जो बना दे पत्थर को इंसान
भला ये जमाना क्या बतायेगा तेरी पहचान जब तुम खुद ही हो एक पहचान ”
परिवार की सबसे मजबूत एव कोमल कड़ी हूँ , प्यार का सागर , उम्मीद का सूरज और त्याग की फुलवारी , सहयोग व् समर्पण को हमेशा तत्पर व् जरुरत पड़ने पर सबसे आगे चलने वाली ...मैं हूँ एक औरत व् लोग मुझे एक माँ , बहन , पत्नी , बेटी , दोस्त के रूप में भी देखते है ...
वैसे हम बहुत ही आधुनिक समय में जी रहे है लेकिन जितनी आधुनिकता बाहरी परिवेश व् रहन सहन में आई उतनी अभी आंतरिक परिवेश यानि हमारे विचार , धारणाओं व् व्यवहार में आनी बाकि है और यह बदलाव पुरषों से पहले हमें करना है ..जी हाँ इसकी शुरूआत हमसे ही होगीें।
अपने सपनों के लिए लड़ना सीखे : -
हमारी सबसे बड़ी बाधा है की हम अपने लिए कुछ सपने नहीं देखते है और यदि देखते भी है तो दूसरों पर आधारित होकर और यदि आपने अपने लिए कुछ नहीं तय किया तो फिर यह दुनिया तो आपके वही तय करेगी जो वो करती आई है। अंत: अपना लक्ष्य बनाओ और उसके लिए हमेशा प्रयासरत रहो, किसी भी अन्य व्यक्ति, परिस्थिति व् माहौल को यह हक़ ना दो की वो आपके लिए तय करे की आपको क्या करना है आप सपने देखो तय करो और उनको पूरा करने के लिए लड़ों पहले स्वंय से और फिर बाहरी दुनिया से।
अपनी खासियत पहचाने : -
हम सब में कुछ ना कुछ खास होता है लेकिन हमारी परवरिश इस तरह से होती है की परिवार, माहौल व् हालातों के अनुसार हम निर्णय करने लग जाते है और इस तरह हम अपनी उस विशेषता को पहचान ही नहीं पाते है – अभी देर नहीं हुई है अपनी उस ताकत को पहचाने की आप किन कार्यों में निपुण है , कौनसा हुनर आपको पता है या किस कला को करना आपको बेहद अच्छा लगता है उस पर लगातार काम करते रहें यकीनन आप के व्यक्तित्व को निखर देंगी ये बातें।
आजादी को जिम्मेदारी के साथ जिए
बात जब आजादी की हो तो यही समझा जाता है की अपनी पसंद के कपडें पहनना , बाहर घूमने जाना, अपनी पसंद से दोस्त बनाना आदि लेकिन आजादी तो वो है की आपको अपने सपने पूरे करने की छुट हो, अपने विचारों में आजादी, अपने पसंद का काम करने की आज़ादी, खुल कर अपनी पसंद को जीने की आज़ादी, दूसरों की मदद करने की आज़ादी , शादी करने या न करने के फैसले की आज़ादी और जब यह आज़ादी आप को मिलती है तो उसको इस जिम्मेदारी का साथ जीना है की आपके उठाये गए कदम दूसरों के लिए प्रेरणा बने।
स्वयं की पहचान को शरीर से न जोड़े : -
कुदरत ने हमें वरदान दिया है इस शरीर के रूप में लेकिन यह शरीर ही हमारी पहचान नहीं है खुबसूरती की दिखावटी दौड़ में हमें अपनी आंतरिक खूबियों को नहीं भूलना है नहीं तो हताशा, निराशा और कमजोर आत्मविश्वास के साथ हम सिमटने लग जाएँगी क्योंकि शरीर से मिली पहचान अस्थाई है लेकिन यदि हमने अपनी आंतरिक और स्थाई खूबियों को विकसित कर लिया तो फिर यह सुंदरता, आकर्षण और महत्वता हमेशा हमारे साथ रहेगी |