पिछले कुछ दिन मे आई कुछ अलग-अलग ख़बरों ने आधी आबादी के दरकते धरातल को कुछ मजबूती भी दी और दरारों को एक हद तक भरा भी। पहली खबर थी सदी के महानायक अमिताभ बच्चन द्वारा अपनी संपत्ति के बँटवारे की, बेटियों को शादी के बाद पराया करने वाले देश मे बेटी को भी वो ही मिलेगा, जो वंश चलाने का गर्व लेकर चलने वाला लड़का पाएगा। अमिताभ ने एक ऐसी परंपरा पर अपना हाथ बढ़ाया जो कोर्ट तो सालों से कहता आया है लेकिन समाज का कोई भी वर्ग इसे अपनाने को तैयार नही था। पहले से आर्थिक तौर से मजबूत होने के बावजूद अमिताभ ने बेटी श्वेता को अपनी संपत्ति का आधा वारिस बनाकर आधी आबादी के बारे मे अपनी अच्छी सोच का प्रदर्शन किया।
दूसरी खबर या यू कहूँ एक ऐसे कैपैन पर नज़र पड़ी जिसमे कई प्रसिद्ध हस्तियाँ हाथों मे शेवर लिए आपको अपनी सोच बदलने या शेव करने की सलाह देती नज़र आई। आख़िर क्या है ये शेव योर ओपिनियन, किसी भी लड़की के चरित्र को उसके कपड़ों मे खोजने वाले पुरुषों के मुंह पर ये तमाचा था। मुश्किल है ऐसे समाज मे जहाँ करोड़ों का घपला, देश के प्रति दुराव और यहाँ तक लड़की के साथ रेप तथा दूसरे जघन्य अपराध मे शामिल लोग भी पूरी तरह चरित्रहीन घोषित नही हुए। ऐसे देश जहाँ गायत्री प्रजापति जैसे मंत्री समूकी बलात्कार जैसे घिनोने कृत्य मे शामिल होकर भी माननीय बने हुए है वहाँ आधुनिक कपड़े पहनने पर किसी लड़की का चरित्र पलभर मे खराब होने का मोहर लगाने वाले लोगो को निश्चित ही अपनी सोच शेव करने की आवश्यकता है।
तीसरी खबर कुछ दिनों पहले देश- विदेश मे पुरस्कारों का अर्धशतक लगाकर आई फिल्म पार्च्ड से है, राजस्थान की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म मे तीन महिलाओं के आज़ादी का जश्न है। अपनी देह पर किसी और की सत्ता का पुरज़ोर विरोध करती ये तीनों महिलाएं एक जैसे हालात का शिकार रही है। 21वीं सदी के आज के भारत में भी एक बड़े हिस्से मे महिलाओं शरीर से ज़्यादा कुछ नही, पुरुष की भूख का कपड़ों मे लिपटा ऐसा सामान जो रात में दिन भर उसकी पराजय को रात की विजय में बदल दे। अपने मर्द होने के छद्मदंभ मे जीते पुरुष को महिलाओं में सिर्फ़ गोश्त दिखता है, डायरेक्टर लीना यादव ने महिलाओं के दर्द को बेहद बेबाक तरीके से ना सिर्फ़ दिखाया बल्कि पात्रों के द्वारा कुछ महत्वपूर्ण सवाल भी खड़े किए, आख़िर एक महिला अपने प्यार और देह का फ़ैसला खुद क्यों नही ले सकती? क्यो सारी अभद्र गालियां महिला अस्तित्व पर आक्रमण है? आख़िर पुरुषो के खिलाफ समाज ने कभी गाली क्यो नही गढ़ी? महिला को बच्चा ना होने पर बांझ लेकिन उसके पति को समाज कुछ नहीं कहता, इन्ही विसंगतियो और महिला के आज़ाद यात्रा का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है पार्च्ड, ये तो वो ख़बरे हैं जिन्होंने पिछले कुछ दिनों में गर्व और साहस का परिचय दिया।
हालात अभी भी बहुत सुखद नही है, महिलाओं के स्थिति के मामलों मे राजस्थान जैसे पारंपरिक प्रदेश में स्थिति सुधारने में अभी बहुत वक़्त लगेगा, दूरदराज़ के इलाक़ो मे महिला अभी भी घर के किसी कमरे में रखा समा नही है। पढ़ाई के अभाव मे ज़्यादातर महिलाएं आज भी अपने अधिकारों से वंचित हैं। आज़ादी के 70 साल बाद इस आधी आबादी की आधी आबादी ही साक्षर हो पाई है। सिर्फ़ 52 % महिलाओं के साक्षर प्रदेश में महिलाओं के प्रति अपराध भी कम नही है। वैसे भी देश मे पिछले कुछ 10 सालो में महिलाओं के खिलाफ लगभग 34 % अपराध का ग्राफ बढ़ा है। बेटी पधाओ और बेटी बचाओ के नारे के बीच महिलाएं ना सिर्फ़ पढ़े, बल्कि बढ़े, इसकी आवश्यकता है। अपने ग्रंथों में महिलाओं को देवी का दर्ज़ा देने वाला समाज अपने घर की हर महिला को वही इज़्ज़त दे और समाज के आधे घटक को उसका हक़, सम्मान और प्यार मिले, इसकी उम्मीद तो की ही जा सकती है।