बिना उद्योगीकरण गरीबी से लडऩा मुश्किल

Samachar Jagat | Wednesday, 26 Apr 2017 12:27:18 PM
Without industrialization, poverty is difficult to fight

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद वहां सरकारों का गठन हुए एक माह बीत चुका है। इन राज्यों में सबसे अधिक निगाह उत्तर प्रदेश सरकार के कामकाज पर है। योगी सरकार की संभावित आर्थिक और सामाजिक नीतियों पर पूरे देश की नजर है। इस सरकार के सामने विकास के अपने वादे पर खरा उतरना बेहद कठिन है। राज्य की करीब 30 फीसद जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे है, लेकिन गरीबी के बहुआयामी सूचकांक के तहत उत्तर-प्रदेश की करीब 68 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी की परिभाषा में आती हैं।

 बहुआयामी सूचकांक आय के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन स्तर को भी संज्ञान में लेता है। उत्तर-प्रदेश के बहुत से इलाके केवल भारत ही नहीं, बल्कि आर्थिक-सामाजिक रूप से विश्व के सबसे पिछड़े इलाकोंं में गिने जाते हैं। प्रधानमंत्री मोदी का यह दृष्टिकोण सही है कि देश के सबसे पिछड़े हिस्सों और खासतौर पर उत्तर-प्रदेश के विकास के बिना भारत का विकास असंभव है, परंतु यही तर्क यह भी कहता है कि उत्तर-प्रदेश का विकास तब तक संभव नहीं जब तक इस राज्य के सबसे पिछड़े इलाकों का विकास नहीं होता। 

दुनिया में सबसे अधिक गरीब भारत में रहते हैं और भारत में सबसे ज्यादा गरीब उत्तर-प्रदेश में हैं। हालांकि भारत में हर प्रांत के स्तर पर भी गरीबी रेखा निर्धारित होती है परंतु जिलेवार गरीबी रेखा का अभाव है। इससे प्रदेशों में गरीबी के स्थानिक विस्तार को निर्धारित करने में कठिनाई आती है। आंकड़ों के आधार पर अनेक रपटें यह सिद्ध करती हैं कि उत्तर प्रदेश का पूर्वी और दक्षिणी हिस्सा यानी पूर्वांचल और बुंदेलखंड सबसे अधिक अविकसित हैं। एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि प्रदेश के मध्य-भाग में पिछले 10-15 वर्षों में गरीबी एकाएक बढ़ी है। 

उत्तर प्रदेश में जिन जिलों के हालात सबसे बदतर हैं उनमें से अधिकतर पूर्वी और मध्य-भाग से आते हैं। इनमें मऊ, जौनपुर, बलिया, बहराइच, गाजीपुर, देवरिया, महराजगंज, श्रावस्ती, आजमगढ़, बलरामपुर, मीरजापुर, कुशीनगर, संत-कबीर नगर, कौशांबी, बस्ती, अंबेडकर नगर, उन्नाव, फतेहपुर, लखीमपुर-खीरी, हरदोई, बाराबंकी, ललितपुर और चित्रकूट शामिल हैं। इन जिलों में भी अधिक गरीबी का कारण इनमें दलित और पिछड़ी जातियों में व्याप्त निर्धनता है। इसका सीधा निष्कर्ष यह हुआ कि अगर उत्तर-प्रदेश में गरीबी कम करनी है तो योगी सरकार को इन जिलों के लोगों और उनमें भी वंचित समुदायों के लोगों को केंद्र में रखकर नीति-निर्धारण करना होगा।

 कृषि में पर्याप्त निवेश का अभाव और गलत नीतियां ग्रामीण क्षेत्र में व्याप्त गरीबी का एक प्रमुख कारण हैं। भारत में कृषि-विकास और गरीबी घटने में सीधा संबंध है। हालांकि कृषि पर अत्यधिक जनसंख्या का दबाव होने से इसकी भी एक सीमा है। 

उत्तर-प्रदेश में व्याप्त गरीबी का सबसे बड़ा कारण उद्योगीकरण का अभाव है। विश्व का कोई भी हिस्सा बिना उद्योगीकरण के विकसित नहीं हुआ है। इस मामले में चीन सबसे बड़ा उदाहरण है। उद्योगीकरण और उच्च आॢथक वृद्धि दर गरीबी कम करने की पहली आधारशिला है। इसी के दम पर चीन ने 30 साल से कम समय में ही 50 करोड़ से अधिक लोगों को गरीबी से बाहर निकाल कर दिखाया है, लेकिन उत्तर-प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व ने इसको लेकर कभी भी गंभीरता नहीं दिखाई। 

यहां का राजनीतिक वर्ग पूरे न किए जा सकने वाले लोकलुभावन वादे करने, लैपटॉप और मोबाइल बांटने, रियल एस्टेट और ठेकेदारी से अधिक कुछ सोचने-समझने में अक्षम ही साबित हुआ है। उद्योगीकरण और आॢथक विकास जैसी जटिल और अत्यधिक प्रशासनिक कौशल की मांग करने वाली प्रक्रिया तो शायद उसे समझ ही नहीं आती रही। दशकों की समाजवादी सोच की जंग ने प्रदेश की राजनीतिक समझ और संस्कृति को भी जड़ बना दिया है। 

विश्व में कहीं भी समाजवादी रास्ते पर चल कर कोई भी देश विकसित नहीं हुआ है। समाजवादी सोच और नीतियां अपनाने वाले समाज उत्तर प्रदेश की तरह ही गरीबी के आशाहीन दुष्चक्र में फंसे रहते हैं। उत्तर प्रदेश और ऐसे ही अन्य राज्यों में गरीबी का दूसरा बड़ा कारण कानून के राज का अभाव है। जिस समाज में अराजकता व्याप्त हो और निजी एवं सार्वजनिक संपत्ति सुरक्षित न हो वहां आॢथक प्रगति की कल्पना भी बेमानी है। 

कानून के राज का अभाव सबसे अधिक समाज के कमजोर तबकों के लिए हानिकारक होता है। दलित और अन्य कमजोर जातियों में व्याप्त गरीबी का एक प्रमुख कारण यह भी है कि वे अगर थोड़ी बहुत संपत्ति अॢजत कर भी लेते हैं तो उसे कोई भी दबंग जब चाहे झटक लेता है। 

ऐसे दबंगों को पता होता है कि सत्ता-प्रशासन उसका कुछ नहीं करेगा। ग्रामीण इलाकों में जमीनों पर कब्जा और अतिक्रमण इन जातियों के लोगों को गरीबी में धकलेने का एक बड़ा कारण है। तीसरा प्रमुख कारण शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। आॢथक विकास में शिक्षा और स्वास्थ्य की केंद्रीय भूमिका है। किसी भी विकसित देश में शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतरीन और सस्ती व्यवस्थाएं देखी जा सकती है, परंतु अपने देश में यह तर्क दिया जाता है कि उत्तर-प्रदेश और ऐसे ही अन्य कम संसाधन वाले राज्यों में वैसी सुविधाओं की अपेक्षा नहीं की जा सकती।

 यह एक कुतर्क ही है। ध्यान रहे कि विकसित देशों में शिक्षा और स्वास्थ्य की अच्छी सुविधाएं इसलिए नहीं हैं कि वे अमीर और विकसित देश हैं बल्कि इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य में भारी निवेश किया है। बिना मानव-संसाधन में निवेश के आॢथक विकास-चक्र का पहिया नहीं घूमता। 

यह आधुनिक आॢथक-प्रगति के इतिहास का एक प्रमाणित तथ्य है, परंतु उत्तर-प्रदेश शिक्षा और स्वास्थ्य के सूचकांक में विश्व के सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले इलाकों के समकक्ष है। यह एक विडंबना ही है, क्योंकि प्रदेश में दसियों साल से सामाजिक न्याय और गरीबों के नाम पर शासन किया गया है। यदि योगी सरकार प्रदेश की शर्मनाक गरीबी और पिछड़ेपन को लेकर गंभीर है तो उसे सबसे पहले इन पहलुओं पर कार्य करना होगा: कानून एवं व्यवस्था को स्थापित करना उसकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।

 इसके बाद उसे शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था को नए सिरे से निॢमत करना चाहिए। ऐसा करते हुए उसे समाजवादी ढोंग को इतिहास में दफनकर उद्योगीकरण और पूंजीवादी व्यवस्था को खुलकर अपनाना होगा। नई नीतियों और कार्यक्रमों के केंद्र में प्रदेश के सबसे पिछड़े जिले होने चाहिए। कोई भी जंजीर उतनी ही मजबूत होती है जितनी की उसकी सबसे कमजोर कड़ी।



 

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