राष्ट्रगान का सम्मान मौलिक कर्तव्य

Samachar Jagat | Monday, 05 Dec 2016 04:35:48 PM
The fundamental duty of the national anthum

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह दिए अपने फैसले में पूरी स्पष्टता के साथ कहा है कि देश के हर सिनेमा हॉल में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाया जाना चाहिए और सभी दर्शकों को खड़े होकर इसका सम्मान करना चाहिए। इससे पहले सिनेमा हॉल संचालक अपने विवेकानुसार राष्ट्रगान बजाने या न बजाने का फैसला करते थे। कहीं फिल्म शुरू होने के पहले बजाया जाता था तो कहीं खत्म होने के बाद।

दुनिया के बहुत सारे देशों में राष्ट्रगान बजाने का रिवाज है। भारत में भी आजादी के बाद सिनेमाघरों में फिल्म खत्म होने के बाद राष्ट्रगान बजाने की परंपरा थी, मगर तब लोग घर जाने की जल्दी में होते थे और उसके सम्मान में खड़े रहना उन्हें गवारा नहीं होता था। इस तरह राष्ट्रगान के अपमान को देखते हुए धीरे-धीरे यह परंपरा अपने आप बंद हो गई। हालांकि कुछ राज्यों में अब भी इस परंपरा के निर्वाह का आदेश है। मगर प्राय: देखा गया है कि राष्ट्रगान के वक्त सावधान की मुद्रा में खड़े रह कर जिस तरह सम्मान प्रकट किया जाना चाहिए, वह नहीं किया जाता है।

खुद सरकार ने भी कहा था कि राष्ट्रगान के वक्त जो लोग बैठे रहना चाहिए, वे बैठे रह सकते हैं। ऐसे में राष्ट्रगान को लेकर कोई अनिवार्य प्रावधान न होने के कारण लोगों में इसके प्रति मनमानी का भाव ही देखा जाता रहा है। कई जगह राष्ट्रगान के प्रति कथित तौर पर सम्मान प्रदर्शित न करने वालों के साथ अभद्र व्यवहार किए जाने की खबरें भी आई थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने केवल राष्ट्रगान का वक्त निर्धारित कर दिया है, बल्कि यह भी कहा है कि इस दौरान स्क्रीन (पर्दे) पर तिरंगा दिखाया जाएगा। यह भी कि राष्ट्रगान के दौरान सिनेमा हॉल के दरवाजे पूरी तरह बंद रखे जाएं, ताकि लोगों का हॉल में आना जाना न चलता रहे।

उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसे स्पष्ट निर्देश के बाद राष्ट्रगान के समय अव्यवस्था या असमंजस की स्थिति नहीं बनेगी। राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान जैसे प्रतीकों का संबंध राष्ट्र की अस्मिता से है। इसलिए वर्ष 1976 में जब नागरिकों के कर्तव्यों से जुड़ा भाग भारतीय संविधान में जोड़ा गया, तो सभी भारतवासियों से सम्मान करने की अपेक्षा उसमेें शामिल की गई। यह उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का अनादर रोकने के कायदे पहले से मौजूद है।

राष्ट्रगान चूंकि किसी भी देश के सम्मान का विषय है, उसके अनादर को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा भी है कि देश है तभी लोग स्वतंत्रता का लाभ ले पाते हैं। इसलिए राष्ट्रगान के को लेकर वहां के नागरिकों में ऐसा रवैया नहीं देखा जाता जैसा हमारे यहां होता है। अनेक फिल्मों, धारावाहिकों, नाटकों आदि में राष्ट्रगान की धुन को बदल कर पेश किया जा चुका है। उसका नाटकीय इस्तेमाल होता रहा है, जबकि हर राष्ट्रगान की धुन तय होती है, कितने समय में उसे गाया जाना चाहिए, आदि को लेकर नियम बना होता है।
 

इसलिए राष्ट्रगान को लेकर मनमानी की इजाजत किसी को क्यों होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अब वक्त आ गया है कि देश के नागरिकों को समझना होगा कि यह उनका देश है। उन्हें राष्ट्रगान का सम्मान करना होगा, क्योंकि यह संवैधानिक देश भक्ति से जुड़ा मामला है। राष्ट्रीय प्रतीकों को उपयुक्त आदर दिया जाए, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है। इसमें सभी को सहर्ष सहयोग करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश से यह अपेक्षा पूरी होगी।



 

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