सिंधु जल संधि आयोग की बैठक में सिर्फ तकनीकी मसलो पर बात

Samachar Jagat | Friday, 10 Mar 2017 03:33:02 PM
Talks on technical issues only in the meeting of the Indus Water Treaty Commission

सिंधु जल आयोग की पाकिस्तान में होने वाली बैंक में भारतीय प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। आयोग में पाक समकक्ष के न्योते को भारतीय आयुक्त ने स्वीकार कर लिया है। सरकारी सूत्र इसे सरकार के रुख में नरमी मानने से इनकार कर रहे हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि भारत और पाकिस्तान में तनाव के चलते दो साल से आयोग की बैठक नहीं हुई है। 

पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों के भारत में हमलों के कारण भारत ने पड़ोसी देश के साथ द्विपक्षीय वार्ता रोक दी है। विश्व बैंक के दखल के बाद सिंधु जल आयोग की बैठक दो साल की चुप्पी के बाद बुलाने पर सहमति बनी है। इस बैठक को दोनों देशों के बीच वार्ता की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। विदेश मंत्रालय ने पिछले सप्ताह स्पष्ट किया कि सरकार और आयोग अलग है। आयोग की बैठक को सरकार के रुख में बदलाव नहीं मानना चाहिए। हालांकि इस बैठक की तैयारियों से विदेश मंत्रालय जुड़ा होता है। 

एजेंडा तैयार करने में भी विदेश मंत्रालय के लोग होते हैं। स्थायी सिंधु आयोग में दोनों देशों के लोग हैं। इसका काम सिंधु जल संधि पर अमल कराना है। संधि के तहत साल में कम से कम एक बार इसकी बैठक जरूरी है। हर साल बारी-बारी से भारत और पाकिस्तान में बैठक होती है। इसमें दोनों पक्षों के सिंधु जल आयुक्त शामिल होते हैं और संधि के अमल में संबंधित तकनीकी मामलों की चर्चा करते हैं। 1960 के बाद से 112 बार बैठक की जा चुकी है। 

भारतीय आयुक्त ने बैठक के लिए अपने समकक्ष के नियंत्रण को स्वीकार किया है। यह मार्च के दूसरे पखवाड़े में होनी है। दोनों पक्षों के लिए सुविधाजनक तारीख और एजेंडा क्या हो, यह आयुक्त सीधे तय करते हैं। आयोग की बैठकों में तकनीकी मुद्दों पर ज्यादा बात होती है। इसका आशय दोनों देशों के बीच वार्ता नहीं माना जाता। यहां यह उल्लेखनीय है कि उरी आतंकी हमले के बाद से तनाव के कारण भारत में इस मुद्दे पर पिछले साल कड़ा रुख अपनाया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते। उन्होंने अपने हिस्से के पानी के सर्वाधिक उपयोग को लेकर कड़ा संदेश दिया था। 

सरकार की ओर से इस तरह के संकेत दिए गए थे कि सिंधु समझौते को सरकार तोड़ भी सकती है। फिलहाल बैठक में शामिल होने पर सूत्रों ने कहा कि सरकार और आयोग अलग-अलग है। आयोग का राजनीतिक मसलों से सरोकार नहीं है। वह केवल तकनीकी मामलों से संबंध रखता है। विदेश मंत्रालय और जल संसाधन मंत्रालय का भी इस बैठक से कोई लेना-देना नहीं है। भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि बैठक में सिर्फ अपने तकनीकी विशेषज्ञ अफसरों को भेजेगी। 

भारत की ओर से नियुक्त सिंधु जल आयुक्त और अन्य तकनीकी अफसरों को बैठक में भेजा जाएगा। इस बार मेजबानी की बारी पाकिस्तानी की है। सिंधु जल आयोग की लाहौर में होने वाली 113वीं बैठक के पहले भारत ने अपने हिस्से के जल संसाधन के पूरे इस्तेमाल के लिए पर्याप्त ढांचागत निर्माण के लिए योजनाएं बनानी शुरू कर दी है। पंजाब में प्रस्तावित शाहपुरा कांडी बांध परियोजना का काम दोबारा शुरू कर दिया है।

 साथ ही पाकिस्तान के हिस्से की पश्चिमी नदियों से 36 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी के भंडारण के लिए जरूरी निर्माण की योजना बनाई गई है। अपने हिस्से के संसाधनों के इस्तेमाल की तैयारियों की शुरुआत पंजाब में प्रस्तावित शाहपुर कांडी बांध परियोजना पर अहम फैसले से की गई है। भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर और पंजाब को इस बांध परियोजना के लिए रजामंद कर लिया है।

 दोनों राज्यों के साथ केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने करारनामा कर लिया है। दोनों राज्यों के बीच इस बांध की डिजाइन को लेकर विवाद के कारण इस पन बिजली परियोजना का काम रूका हुआ था। केंद्रीय जल संसाधन सचिव अमरजीत सिंह की मौजूदगी में दोनों राज्यों के सिंचाई सचिवों पंजाब के केएस पन्नू और जम्मू-कश्मीर के सौरभ भगत ने पिछले शुक्रवार को देर रात करारनामे पर दस्तखत किए। इस परियोजना को आयोग की अपने हिस्सेदारी नदियों के संसाधन के पूरे इस्तेमाल की दिशा में शुरुआत माना जा रहा है। 

शाहपुरा कांडी बांध की मंजूरी को भारत के हिस्से मेें आने वाली रावी, व्यास और सतलुज नदियों के पानी के समुचित इस्तेमाल की योजना के मद्देनजर मजबूत ढांचागत निर्माण का हिस्सा माना जा रहा है। पंजाब के गुरदासपुर में 55.5 मीटर ऊंचा शाहपुर कांडी बांध बन रहा है। इसकी मदद से पंजाब में पांच हजार हेक्टेयर और जम्मू-कश्मीर में 32 हजार 173 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा। 

इस बांध से 206 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकेगी। इस परियाजना पर मई 1999 में काम शुरू किया गया था, लेकिन पंजाब और जम्मू-कश्मीर में विवाद के बाद 2014 में इससे जुड़ा काम रूक गया था। इस पर दोबारा काम शुरू होने से सिंधु जल समझौते के तहत मिलने वाले पानी के हिस्से के पूरे इस्तेमाल का मकसद पूरा किया जा सकेगा। इस पर 2008 में लागत 2285.81 करोड़ रुपए आंकी गई थी। 

वर्ष 1960 में दोनों देशों के बीच हुए जल समझौते के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी भारत को मिलता है। समझौते के मुताबिक भारत को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम और चेनाब) का पानी बहने देना होता है। हालांकि भारत को इन पश्चिमी नदियों से 36 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी का भंडारण करने की इजाजत है, जिसका वह घरेलू मकसद से इस्तेमाल कर सकता है। भारत ने अभी तक पानी के भंडारण की कोई व्यवस्था नहीं बनाई है।



 

यहां क्लिक करें : हर पल अपडेट रहने के लिए डाउनलोड करें, समाचार जगत मोबाइल एप। हिन्दी चटपटी एवं रोचक खबरों से जुड़े और अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें!

loading...
रिलेटेड न्यूज़
ताज़ा खबर

Copyright @ 2024 Samachar Jagat, Jaipur. All Right Reserved.