भारत से लेकर यूरोप-अमेरिका तक मार्च में मौसम का बदलाव लोगों को हैरान कर रहा है। यही कारण है कि सर्दी का अहसास कराने वाली बारिश, तेज हवाएं, ओलावृष्टि, बर्फबारी अभी भी जारी है। मौसम वैज्ञानियों के अनुसार सामान्य परिस्थितियों में फरवरी मध्य तक ये गतिविधियां थमने लगती है, लेकिन इस बार मार्च के तीसरे सप्ताह तक बारिश, तेज हवाएं और बर्फबारी देखने को मिल सकती है।
इसी कारण दिल्ली समेत उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में अभी भी सर्दी का अहसास हो रहा है। होली के दिन भी सर्द हवाएं चली। मौसम विभाग के अनुसार अभी एक सप्ताह तक और ऐसा मौसम रहेगा। एक सप्ताह के भीतर एक मजबूत पश्चिमी विक्षोभ आ रहा है। जिससे एक बार थोड़ा तापमान बढ़ेगा, बारिश होगी और फिर पारे में गिरावट आएगी। उसके बाद स्थिति में क्या बदलाव आएंगे, उसका पूर्वानुमान अभी संभव नहीं है। लेकिन अलबता बदलाव इस प्रकार के हैं कि कभी फरवरी में गर्मी हो जाती है तो कभी मार्च में भी नहीं होती।
लेकिन यह मौसम का मिजाज है। पश्चिमी देशों से आने वाली हवाएं जिन्हें पश्चिमी विक्षोभ कहा जाता है, वह पहले अक्टूबर-नवंबर में आने शुरू होते थे। लेकिन इनका पैटर्न बदल रहा है। ये अक्टूबर-नवंबर में या तो आती ही नहीं या बेहद कम आती है। इसलिए सर्दी के पीक सीजन में बारिश नहीं होती है।
फरवरी एवं मार्च में पहले पश्चिम विक्षोभ कम आते थे, लेकिन अब बढ़ रहे हैं। ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी देर से शुरू हो रही है। कई बार तो यह जनवरी के आखिरी या फरवरी के शुरू में ही शुरू होती है। बर्फ को ठोस रूप में जमने के लिए लगातार सर्द मौसम चाहिए। लेकिन देर से गिरी बर्फ अचानक गर्मी बढ़ने से पिघल जाती है। नतीजा यह है कि ग्लेशियर सिकुड़ने की सूचनाएं मिल रही है। जनवरी के पहले सप्ताह में सबसे ज्यादा सर्दी पड़ती थी।
कई बार पारा शून्य तक भी पहुंच जाता था। लेकिन कुछ सालों से ऐसा नहीं हो रहा है। बुंदेलखंड, जैसलमेर, बाड़मेर जैसे इलाकों में जहां बारिश कम होती थी, वहां अब बढ़ रही है। लेकिन चेरापूंजी जहां दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश होती थी। वहां यह घट रही है।
मेघालय जिसे बादलों का घर कहा जाता था और सहस्त्र धाराएं बहा करती थी, वहां अब सूखा नजर आने लगा है। हिमाचल के धर्मशाला में भी बारिश पहले से घटने लगी है। मानसून का आगमन और उत्तर भारतीय राज्यों से इसकी विदाई में भी देरी हो रही है।
यह सितंबर के आखिरी तक सक्रिय रहता है। बारिश का वितरण भी बिगड़ गया है। किसी क्षेत्र में बहुत ज्यादा होती है तो किसी क्षेत्र में एकदम सूखा पड़ जाता है। यह बदलाव पिछले 10-12 सालों के दौरान ज्यादा दिखा है। विश्व मौसम संगठन के प्रतिनिधि डॉ. एल.एम. राठोर का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से दुनियाभर का मौसम प्रभावित हुआ है। लेकिन मौसम विज्ञानियों को ऐसे अप्रत्याशित बदलावों का विश्लेषण करना चाहिए।
साथ ही इसके पूर्वानुमान की क्षमता विकसित होनी चाहिए। अमेरिका के पूर्वी तटीय क्षेत्र में बारिश, बर्फबारी और तूफानी स्थिति के कारण पिछले सप्ताह मंगलवार की सुबह स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए। हजारों फ्लाइटें स्थगित करनी पड़ी। करीब सवा लाख घरों में बिजली कट गई, न्यूयार्क और पेनसिलवेनिया जैसे प्रांतों में चार आठ इंच मोटी बर्फ की परत जम गई। इस प्रकार भारत से अमेरिका तक दिख रहा है मौसम का बदलाव।