सिंधु नदी की घेराबंदी

Samachar Jagat | Saturday, 20 May 2017 04:09:33 PM
Siege of river Indus

आजकल चर्चा में भले ही चीन का ‘वन बेल्ट वन रोड’ प्रॉजेक्ट हो, मगर इसी बीच चीन और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी पर ऊपर से नीचे कई बांधों की एक श्रृंखला बनाने का समझौता हमारे लिए कहीं ज्यादा बड़ी चिंता का विषय होना चाहिए। चीन इस परियोजना के लिए 50 अरब डॉलर का निवेश करने वाला है और इससे 40,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन होने की उम्मीद है। पाकिस्तान की वाटर ऐंड पावर डिवेलपमेंट अथॉरिटी द्वारा करवाए गए अध्ययनों के मुताबिक वहां 60,000 मेगावाट पनबिजली के उत्पादन की संभावना है, जिसका एक बड़ा हिस्सा इस सिंधु कैस्केड्स के जरिये हासिल किया जा सकता है। 

चीन जितने बड़े पैमाने पर पाकिस्तान में निवेश कर रहा है, वह खास तौर पर ध्यान देने लायक है। कैस्केड्स बांधों से जुड़े सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर से कुछ ही पहले चीन सरकार ने चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर के तहत बिजली और सडक़ निर्माण परियोजनाओं पर 46 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की थी। पाकिस्तान की तरफ ही नहीं, अरुणाचल प्रदेश से सटे तिब्बत के इलाकों में भी चीन हाइड्रो पावर की कई परियोजनाओं पर तेजी से काम कर रहा है। 

कोई भी देश अपनी सीमा के अंदर विकास कार्य करता है तो इस पर किसी अन्य देश को भला क्या आपत्ति हो सकती है। 
लेकिन चीन के संदर्भ में कई ऐसी बातें हैं जो इन मामलों को विशेष बनाती हैं। एक तो चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर भारत का युद्ध हो चुका है। दूसरी बात यह कि भारत-पाक रिश्तों में आई खटास का फायदा उठाने का कोई भी मौका वह नहीं छोड़ता। तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस इलाके में उक्त सिंधु कैस्केड परियोजना पर काम होना है, वह पाक अधिकृत कश्मीर में पड़ता है। 

यह क्षेत्र भारत के आधिकारिक नक्शे में आता है। इसके स्वामित्व को लेकर विवाद तो है ही, खुद पाकिस्तान भी इस पर कब्जे को लेकर आश्वस्त नहीं है। 

इसके बावजूद अगर भारत से कोई राय-मशविरा किए बगैर चीन इस इलाके की एक परियोजना में पैसा लगा रहा है तो इसका मतलब यही है कि वह इस क्षेत्र पर पाकिस्तान के कब्जे को मान्यता दे रहा है। इसकी अनदेखी हम भला कैसे कर सकते हैं?



 

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