राजनीनिक दलों पर भी शिकंजा कसने की कवायद

Samachar Jagat | Tuesday, 04 Apr 2017 04:47:34 PM
Screws on political parties

बिजली, पानी, टेलीफोन कनेक्शन और आवास संबंधी बकाए का भुगतान नहीं करने वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकने का प्रस्ताव लाने के बाद अब भी लाना चाहता है। चुनाव आयोग ने राजनीतिक हाईकोर्ट के निर्देश के क्रियान्वयन के तौर-तरीकों पर राय मांगी है। कोर्ट के आदेश में कहा गया था कि बकाया नहीं होने का प्रमाण-पत्र सिर्फ उम्मीदवारों को ही नहीं, बल्कि उम्मीदवार खड़े करने से पहले राजनीतिक दलों को भी जमा करना चाहिए। 

अगस्त 2015 के अपने आदेश में हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग से यह सुनिश्चित करने को कहा था कि लोकसभा को बिजली, पानी, टेलीफोन कनेक्शन और आवास से संबंधित बकाया नहीं होने का प्रमाण-पत्र जमा कराना होगा। इसी तरह का नियम राजनीतिक दलों पर भी लागू होना चाहिए। मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने कहा हम हाईकोर्ट के आदेश पर विचार कर रहे हैं। हम राजनीतिक दलों के संपर्क में है।

 हमने इस बारे में उनकी राय मांगी है। यहां यह बता दें कि देश की सात राष्ट्रीय पार्टियों भाजपा, कांग्रेस, एनसीपी, भाकपा, माकपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, सपा और अन्ना द्रमुक जैसे क्षेत्रीय दलों को राष्ट्रीय राजधानी में सरकारी आवास मिला हुआ है जिसके लिए उन्हें किराया अदा करना होता है। चुनाव आयोग द्वारा इन दलों के आवश्यक बकाया बिलों का भुगतान न करने वाली पार्टियों को चुनाव लड़ने से रोकने की दिशा में की गई पहल का समर्थन किया जाना चाहिए। 

जो राजनीतिक दल सत्ता में आने के बाद आम लोगों के लिए नियम बनाते हैं, बिजली, पानी, टेलीफोन आदि सभी बिलों के भुगतान को प्रेरित करते हैं, उनसे यही उम्मीद करनी चाहिए कि वे भी ऐसा करेंगे। चुनाव आयोग के हाथों बिलों का भुगतान कराने की ताकत नहीं है, किंतु यदि यह कानून बन जाए कि भुगतान न करने वाले दल चुनाव नहीं लड़ सकते तो फिर इनके पास भुगतान के अलावा कोई चारा न होगा। 

हालांकि इससे चुनाव परिदृश्य में कोई बड़ा अंतर आएगा, ऐसा नहीं माना जा सकता। वैसे भी चुनाव आयोग ने इस पर भी दलों से राय मांगी है। देखना है राजनीतिक दल क्या राय देते हैं। चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों की राय मिलने के बाद आयोग सरकार को इस मामले में सिफारिश करेगा। दलों की सहमति मिलने के बाद ही इस मामले में आगे कदम बढ़ाएं जा सकेंगे। वह इसलिए क्योंकि इसके लिए जनप्रतिनिधि कानून में संशोधन करना होगा। वैसे कानून बनाने के पहले ही चुनाव आयोग इस दिशा में आगे बढ़ चुका है। 

हाल के विधानसभा चुनाव में कुछ प्रत्याशी अपना नामांकन इसलिए नहीं भर पाए क्योंकि वे नो ड्यूज सर्टिफिकेट यानी बकाया नहीं होने का प्रमाण-पत्र नहीं दे पाए थे। इसका अर्थ हुआ कि अगर चुनाव आयोग का प्रस्ताव लागू हो गया तो दलों को भी चुनाव आयोग में एनओसी यानी बकाया नहीं होने का प्रमाण-पत्र देना होगा। उसके बाद ही आयोग उन दलों के चुनाव लड़ने को हरी झंडी देना। राजनीतिक दलों को इसमें कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। इसलिए दलों में सहमति बनाकर सरकार को कानून संशोधन के लिए आगे आना चाहिए।
 



 

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