राजस्थान में हो रही है बालिका लिंगानुपात में बढ़ोतरी

Samachar Jagat | Saturday, 22 Apr 2017 10:49:46 AM
Raising sex ratio in Rajasthan

देश में लिंगानुपातकी निरन्तर बिगड़ रही समस्या के निदान के लिए केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा तरह-तरह के उपाय किये जा रहे हैं, बावजूद इसके इस दिशा में कोई खास सफलता मिलती नहीं दिख रही है। भारत में 6 वर्ष तक की उम्र के प्रति 1000 लडकों के अनुपात में लड़कियों की संख्या में वर्ष 1961 से गिरावट आ रही है।

वर्ष 1991 में लड़कियों की संख्या 945 थी, जो 2001 में घटकर 927 और 2011 में 918 हो गई। इस अनुपात में गिरावट निश्चित रूप से महिलाओं के प्रति भेदभाव की ओर संकेत करता है। बाल लिंग अनुपात पक्षपाती लिंग चयन और जन्म के बाद लड़कियों से हो रहें भेदभाव को दर्शाता है।

देश के कई राज्यों में लडक़ों के मुकाबले लड़कियों की कम संख्या जैसी समस्यों से निपटने के लिए 22 जनवरी को हरियाणा के पानीपत में एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरूआत की। प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम में लोगों से कहा था-‘मैं बेटी की जिन्दगी की भीख मांगने आया हूं।’ समाज में लड़कियों से होने वाले भेदभाव व भ्रूण हत्या के खिलाफ बने कार्यक्रम में मोदी ने कहा कि हम मानसिकता से 18वी शताब्दी के हैं। 

हम बेटी को उसकी मां का चेहरा भी नहीं देखने देते। यह अभियान सबसे पहले देश के उन सौ जिलों में शुरू हुआ है, जहां लिंगानुपात में काफी अंतर है। योजना के लिए लक्ष्य बनाए गए जिलों में सरकार प्री-नैटल डायग्नोस्टिक टेस्ट (पीएनडीटी) रोकने वाले कानून सख्ती से लागू करेगी। इन जिलों में भ्रूण हत्या के खिलाफ प्रचार के साथ-साथ ही लड़कियों के लिए बनी योजनाओं को भी लागू करना है।

एक ओर जहां सामाज में लड़कियों के साथ भेदभाव हो रहा है वहीं दूसरी ओर बढ़ती तकनीकी क्षमता का दुरुपयोग कर कन्या भ्रूण हत्या भी जोरों पर है। इस प्रकार लिंगानुपात में अन्तर स्वाभाविक है। इस दिशा में केन्द्र सरकार का बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान काबिल-ए-तारीफ है, पर यह अभियान कितना सफल होता है, उससे ही इसके उद्देश्य की पूर्ति  का आकलन किया जा सकता है। यह अभियान कड़े कानून और जन जागरूकता से ही सफल हो सकता है। लिंगानुपात के अन्तर को पाटने के लिए पिछले कई वर्षों से राजस्थान में कड़े कानूनों के साथ अभियान चल रहा है।

 फलस्वरूप वहां काफी हद तक लिंगानुपात के अन्तर को कम करने में सफलता मिली है। राजस्थान के जीवित जन्म शिशु दर के अनुसार गत छ: वर्ष के आंकड़ों में बालिका  लिंगानुपात सुधर रहा है। राजस्थान में वर्ष 2010-11 के आंकड़ों के अनुसार जीवित शिशु दर से बालिका लिंगानुपात 887 था जो 2015-16 में 42 अंको का सुधार कर 912 हो गया है। सबसे अधिक 188 अंको का सुधार हनुमानगढ़ जिले में हुआ है। हनुमानगढ़ जिले में वर्ष 2010-11 में 883 जीवित जन्म दर के अनुसार बालिका लिंगानुपात था जो वर्ष 2015-16 में 188 अंको का सुधार कर 971 हो गया है।

इसी तरह बाड़मेंर जिले में 85, चूरू व प्रतापगढ जिले में 81, बीकानेर में 79,बूंदी में 76, सिरोही में 74, जैसलमेर में 73, श्रीगंगानगर में 63, भरतपुर में 61, दौसा में 56, झुंझुनूं में 55, जालोर में 54, राजसमंद में 53, बांसवाड़ा में 49, जोधपुर व सीकर में 44, अजमेर में 41, पाली में 38, भीलवाड़ा में 36, बारां व चितौडगढ़ में 35, नागौर में 34, धौलपुर व सवाईमाधोपुर में 29, करौली में 25, टोंक में 24, अलवर में 21, जयपुर में 18 व झालावाड़ में 17 अंको की बढ़ोतरी हुई है। वहीं उदयपुर में 30, डुंगरपुर में 17 व कोटा में 6 अंको की कमी आई है। अर्थात इन तीन जिलों में बेटियों की संख्या में लगातार गिरावट जारी है।

राजस्थान में प्रतिवर्ष 14 लाख से 14.5 लाख बच्चे पैदा होते है जिनका पंजीयन राजस्थान सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा पीसीटीएस में किया जाता है। इन आंकड़ो पर सामाजिक कार्यकत्र्ता राजन चौधरी द्वारा किए गये अध्ययन में सामने आया कि राजस्थान में राज्य पीसीपीएनडीटी सैल व सामाजिक संगठनों द्वारा किये गए जन जागरूकत्ता अभियानों व पीसीपीएनडीटी के प्रभावी क्रियान्वयन से ही बालिकाओं के लिंगानुपात में आंशिक सुधार आया है। चौधरी का मानना है कि अभी राज्य में ओर भी प्रयास करने की महत्ति आवश्यकता है। राज्य में इण्डियन मेडिकल एशोसियसन, नर्सिंग  एशोसियसन सहित अनेक संगठनों के सकारात्मक सोच वाले कार्यकत्र्ताओं के ही प्रयासों से भी बालिका लिंगानुपात में बढ़ोत्तरी हुई है।

 उनका कहना है कि राजस्थान में अवैध सोनाग्राफी सेंटर के साथ-साथ लिंग  जांच व चयन करने वाले चुनिन्दा डॉक्टर एवं उनके एजेंटो पर अभी भी कार्रवाई करने की आवश्यकता है। गत 3 माह में राज्य के शेखावाटी अंचल में राज्य पीसीपीएनडीटी सैल द्वारा डिकॉय ऑपरेशन कर लिंग  जांच व चयन करने वाले लोगों का पर्दाफाश किया जो एक सराहनीय कदम था। धर्मगुरूओं व प्रबुद्धजनों द्वारा बेटी बचाने के लिए किए गये जनजागरूकता अभियान का जीवन्त उदाहरण हनुमानगढ व श्रीगंगानगर जिलों में देखा जा सकता है। इन दोनों ही जिलो के बालिका लिंगानुपात में बेहतर सुधार हुआ है। केन्द्र सरकार द्वारा संचालित बेटी बचाओं बेटी पढाओं अभियान का असर भी राजस्थान के 10 जिलों में देखा जा सकता है।

 इन सभी 10 जिलों में बालिका लिंगानुपात में बढोतरी हुई है। माना कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ सरकारी योजना एक नई कोशिश है। इससे समाज में लड़कियों से हो रहा भेदभाव खत्म हो सकता है, लेकिन असली चुनौती उस तबके की मानसिकता को बदलने की है, जो लडक़ा -लडक़ी को बराबर नहीं मानते। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना केन्द्र की महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की संयुक्त पहल के अंतर्गत है।

 इसका उद्देश्य कन्या भ्रूण हत्या रोकना, बालिकाओं का अस्तित्व बचाते हुए उनकी शिक्षा सुनिश्चित करना है। मां के गर्भ में पल रही कन्या की जब हत्या की जा रही है, उनमें से कोई कल्पना चावला, कोई पीटी उषा, कोई लता मंगेशकर तो कोई मदर टेरेसा भी हो सकती थी। कल्पना चावला जब अन्तरिक्ष में गयी थीं, तब भारत को कितना गर्व हुआ था। तमाम समस्याओं के निदान के रूप में देवी पूजा करने वाले लोग ही कन्या जन्म को अभिशाप मानते हैं।

 इस संकीर्ण मानसिकता की उपज के लिए?दहेज के दानव भी दोषी है। लेकिन, दहेज के डर से कन्या भ्रूण हत्या करना ठीक नहीं है। यदि कन्या भ्रूण हत्या रोकना है तो दहेज के दानवों पर भी लगाम लगानी होगी। दहेज के डर से दूसरा दानविक कार्य जघन्य अपराध है। 

केन्द्र सरकार ने देश में लड़कियों से भेदभाव रोकने को ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरूआत की है, उसका जोर खासतौर से कन्या भ्रूण हत्या रोकना ही है। इसमें उन जिलों में भलग पहचान रोकने का काम होना है, जहां कन्या भ्रूण हत्या दर अधिक है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुसार कन्या भ्रूण हत्या के कारण भारत में हजार पुरुषों पर सिर्फ 918 महिलाएं हैं।

एक सर्वेक्षण बताता है कि बीते 30 वर्षों में 1.20 करोड़ कन्याओं की गर्भ में हत्या की आशंका है। इस स्थिति में भारत सरकार की पहल अच्छी है, पर यह कितनी सफल होती है, यह देखना होगा है।

(ये लेखक के निजी विचार है)



 

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