भारत दवा निर्माण के मामले में भले ही आत्मनिर्भर हो, लेकिन दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के मामले में वह चीन पर हद से ज्यादा निर्भर हो चुका है। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार दवाओं के लिए अब 92 फीसदी कच्चा माल चीन से आ रहा है।
इससे भी चिंताजनक यह है कि आपूर्ति का दारोमदार चीन की कुछ ही कंपनियों के हाथ में है। दवाओं के लिए कच्चे माल यानी एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडेंट्स (एपीआई) के लिए चीनी निर्भरता पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी चिंता जता चुके हैं। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद निर्भरता कम होने की बजाए बढ़ती जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की नेशनल ड्रग सर्वे इसकी चिंताजनक रिपोर्ट पेश करती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हवाई अड्डों और बंदरगाह से विदेशों से आयात हो रही दवाओं के 4987 नमूने एकत्र किए गए। हालांकि सर्वे गुणवता की जांच के लिए हो रहा था। इस दौराना पाया गया है कि इनमें से 99 फीसदी नमूने एपीआई के थे जिनमें से 92 फीसदी चीनी से आ रहे थे। जबकि दो फीसदी इटली और फ्रांस के थे। शेष छह फीसदी अन्य देशों से आयातित किए जा रहे हैं। एपीआई मुंबई और चेन्नई बंदरगाहों के जरिए आता है।
जहां से 4150 नमूने एकत्र किए गए थे, जबकि 882 नमूने हवाई अड्डों से लिए गए। रिपोर्ट के अनुसार दवा में सर्वाधिक इस्तेमाल होने वाले कुल 57 एपीआई आयात हो रहा था। कुल 108 विदेशी कंपनियों से यह सामग्री आयात की जा रही थी, लेकिन 58 फीसदी एपीआई चीन की आठ कंपनियों से खरीदी जा रही थी। जबकि 35 फीसदी एपीआई सिर्फ दो कंपनियों द्वारा आपूर्ति की जा रही थी। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि एपीआई को लेकर भारत ने सिर्फ चीन पर निर्भर है, बल्कि कुछ ही कंपनियों पर भी निर्भर है।
हालांकि चीन या किसी अन्य देश से आयातित एपीआई के किसी नमूने में कोई खामी नहीं पाई गई। रिपोर्ट में सरकार को सलाह दी गई है एपीआई के मामले मेें चीनी निर्भरता कम की जाए। भारतीय कंपनियों को एपीआई निर्माण के लिए प्रोत्साहित किया जाए। भारत के सामने अभी मुश्किलें और भी है।
वह यह कि चीन से आ रहा कच्चा माल भारत में निर्मित होने वाले कच्चे माल की तुलना में करीब चार गुना सस्ता है। एपीआई भारत में भी बन सकता है। लेकिन इसके लिए चीन की तर्ज पर तैयारियां करनी होगी।
विशेष पार्क की योजना फिलहाल फाइलों तक सीमित है। उद्योग जगत चीन से आयातित एपीआई पर रोक की मांग कर रहा है। लेकिन घरेलू उद्योग इसके अनुकूल एपीआई की आपूर्ति करने में सक्षम नहीं है। कच्चे माल पर रोक लगाने से देश में दवाओं की कीमत में तीन से चार गुना तक वृद्धि होने की आशंका है।
उद्योग जगत के संगठन एसोचैम ने चीन से आयातित एपीआई पर अतिरिक्त आयात शुल्क लगाने की मांग की है, ताकि घरेलू स्तर पर उत्पादित एपीआई और चीन से आयातित एपीआई की कीमतों में मौजूद अंतर कम किया जा सके। ऐसोचैम का दावा है कि चीन इन कंपनियों को सब्सिडी दे रहा है। इसलिए वे सस्ते हैं।