अंधेरों में उजाले की
आश लगाए बैठा हूं
सागर जो ठहरा मैं
नदियों को समाए बैठा हूं
व्यक्ति को इंसानियत की ओर ले जाने वाले महानता की ओर ले जाने वाले यदि कोई गुण हैं तो इनमें धैर्य और शौर्य को उच्चतम स्थान प्राप्त है। ये दोनों ही ऐसे गुण हैं जो व्यक्ति को फर्श से अर्श तक ले जा सकते हैं। लेकिन यह भी अफसोस की ही बात है कि आज घर-परिवार से, समाज-सरकार से और नर-नार से धैर्य तो कम से कम होता जा रहा है। बस यहीं से पतन का मार्ग शुरू हो जाता है।
आज हरेक व्यक्ति टेंशन और मायूषी भरी जिंदगी जी रहा हैं, उसके पास सब कुछ होते हुए भी वह हैरान-परेशान है और इसका मूल कारण है धैर्य का अभाव और जहां धैर्य का अभाव होता है, वहां शौर्य तो आ ही नहीं सकता है क्योंकि जो एक मिनट कुछ सुन नहीं सकता, किसी से कुछ सीख नहीं सकता फिर वह किसी भी स्थिति में शौर्यवान नहीं बन सकता है। आज रिश्तों में टकराव और गिरावट का मूल कारण ही व्यक्ति के मन-मस्तिष्क से धैर्य का गायब हो जाना है।
छोटी-छोटी बातों को बतंगड़ बना लिया जाता है, ना कुछ बातों को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया जाता है, किसी के तनिक नहीं बोलने को अपमान समझ लिया जाता है, किसी के नमस्कार नहीं करने को नफरत में बदल लिया जाता है और अपने ही अपनों को कोसने लगते हैं, उनकी निंदा करने लगते हैं, एक-दूसरे को नीचा दिखाने लगते हैं, एक-दूसरे की टांग खींचने लगते हैं, लड़ने-झगड़ने लगते हैं और यहां तक कि केस-मुकदमे में फंस जाते हैं और अपने जीवन को बर्बाद तो करते ही हैं, साथ में पूरे घर-परिवार को संकट में डाल देते हैं।
यदि थोड़ी सी समझ से काम ले लिया जाए, अपनों की थोड़ी कड़ी बात को भी सहन कर लिया जाए, सुन लिया जाए, तुरंत ही रिएक्शन नहीं किया जाए तो बहुत कुछ जीवन सार्थक और सकून से भरा हो सकता है। धैर्य यह कभी नहीं करता है कि अन्याय सहन करें अत्याचार सहन करें या अन्य किसी प्रकार की अमानवीय यातनाएं सहन करें, लेकिन रोजमर्रा की हजारों ऐसी बातें होती हैं, जिनको टाल कर, अपने जीवन को सर्वहित में लगाया जा सकता है।
प्रेरणा बिन्दु:-
जाग मुसाफिर सुबह हो गई
जितनी थी वह कलह खो गई
धरती-धरती, पर्वत-पर्वत
परिन्दों में भी सुलह हो गई।