फंसे कर्ज से निजात के संकेत नहीं

Samachar Jagat | Saturday, 12 Nov 2016 05:08:23 PM
No signs of relief from bad loans

केंद्र ने एक के बाद एक आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाया। इन कदमों के जरिए देशी-विदेशी निवेशकों को खूब रिझाया। रेटिंग एजेंसियों को भी समझाया। इसके बावजूद अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एसएंडपी) ने सरकार को झटका दे दिया है।

 एसएंडपी ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर जारी रिपोर्ट में दो वर्ष पहले दी गई ट्रिपल बी माइनस रेटिंग को बरकरार रखा है। इससे नीचे की रेटिंग को किसी भी देश के लिए सबसे खराब माना जाता है। दूसरे शब्दों में भारत की रेटिंग को सबसे खराब अर्थव्यवस्था वाले देशों से थोड़ा ही ऊपर रखा गया है। 

एसएंडपी का यह फैसला सरकार के गले नहीं उतरा है। इसके लिए केंद्र सरकार ने न सिर्फ एसएंडपी की रेटिंग पर गहरी नाराजगी जताई गई है, बल्कि उसे खूब खरी-खोटी भी सुनवाई है। आर्थिक मामलों के सचिव शशिकांत दास ने कहा है कि भारत ने हाल के महीनों में जो सुधारवादी कदम उठाए है। वैसा उदाहरण और किसी देश में नहीं है। इसके बावजूद साख के स्तर में सुधार नहीं करने से पता चलता है कि एसएंडपी की रेटिंग का फैसला हकीकत से दूर है। रेटिंग एजेंसी को अपने निर्णय के बारे में सोचना चाहिए।

 जमीनी हकीकत से यह भी साफ होता है कि एसएंडपी की रेटिंग कुछ कहती है, जबकि दुनिया का निवेशक समुदाय कुछ और ही सोचता है। दास का इशारा भारत में बढ़ रहे विदेशी निवेश की तरफ था। ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारत विश्व में सबसे ज्यादा निवेश आकर्षित करने वाला देश है। इसके बावजूद एसएंडपी और मूडीज जैसी रेटिंग एजेंसियां भारत की रेटिंग को सुधारने के लिए तैयार नहीं है। दास ने कहा है कि सरकार निश्चित तौर पर सुधारों को आगे बढ़ाती रहेगी। 

वर्ष 2012 में भी एसएंडपी ने लंबी अवधि के लिए भारत की सॉवरेन रेटिंग ‘ट्रिपल बी माइनस’ तय की थी और इसके साथ ही अर्थव्यवस्था की स्थिति को नकारात्मक बताया था। इस पर तब के विपक्षी दल भाजपा ने तत्कालीन संप्रग सरकार पर खूब हमले किए थे। इसके लिए मनमोहन सिंह सरकार की नीतिगत निर्णय लेने में सुस्ती (पॉलिसी पैरालिसिस) को जिम्मेदार ठहराया था। लेकिन अब सत्ता में ढ़ाई साल से भाजपानीत राजग सरकार है। इस बीच आर्थिक सुधारों को डोज काफी बढ़ाने के बावजूद रेटिंग एजेंसियों की राय बदल नहीं रही है। 

एसएंडपी ने मोदी सरकार आने के बाद सितंबर 2014 में ट्रिपल बी माइनस रेटिंग के साथ अर्थव्यवस्था को स्थिर बताया था। अब ताजा रिपोर्ट में भी लंबी अवधि के लिए ट्रिपल बी मानइस और अल्पावधि के लिए ए-थ्री की रेटिंग दी गई है। एसएंडपी की तरफ से भारत की रेटिंग में सुधार नहीं करने के पीछे कई वजहें बताई गई है। पहली वजह यह है कि सरकार पर कर्जे का भारी बोझ है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 69 फीसदी कर्ज है। इसे घटाकर 60 फीसदी से नीचे लाया जाना चाहिए। 

हालांकि, एसएंडपी यह भी मानती है कि इसमें फिलहाल सफलता मिलना मुश्किल है। भारतीय बैंकों की हालत भी खराब है। इन्हें 45 अरब डालर अतिरिक्त राशि की जरूरत है। बिजली क्षेत्र में सुधार के बावजूद इस वर्ष हालत सुधरने की गुंजाइश नहीं है। इस पर कम प्रति व्यक्ति आम केवल 1700 डालर सालाना को भी बड़ी समस्या के तौर पर देखा गया है। 

जहां तक सरकारी बैंकों का सवाल है, एसएंडपी ने सरकारी बैंकों को भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे कमजोर कड़ी है। सरकारी बैंकों की तरफ से घोषित ताजा वित्तीय परिणामों पर नजर डालें तो साफ हो जाता है कि रेटिंग एजेंसी ने ऐसा क्यों कहा था। चालू वित्त वर्ष की दो तिमाही खत्म हो चुकी है, लेकिन सरकारी बैंकों को वित्तीय स्थिति में सुधार के फिलहाल कोई ठोस संकेत नहीं मिल रहे हैं। सरकारी क्षेत्र के अधिकांश बैंक पिछले तीन वर्ष से वित्तीय संकट में फंसे हैं।

 तिमाही दर-तिमाही न सिर्फ उनका मुनाफा घटता जा रहा है, बल्कि फंसे कर्ज (एनपीए) की समस्या का समाधान निकलने के भी आसार नहीं बन पा रहे हैं। जुलाई-सितंबर 2016 की तिमाही में देश के दूसरे सबसे बड़े सरकारी बैंक पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के शुद्ध मुनाफे में तकरीबन 12 फीसदी की गिरावट हुई है। देना बैंक को 44 करोड़ का घाटा हुआ है। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के मुनाफे में 77 फीसदी की गिरावट हुई है। इलाहाबाद बैंक के मुनाफे में 63 फीसदी की कमी हुई है।

 बैंक ऑफ महाराष्ट्र को पिछले वर्ष की समान अवधि में 72 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ था। इस वर्ष उसे 337 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। इस बेहद खराब प्रदर्शन के लिए वही कारक जिम्मेदार है, जिसका हल निकालने की कोशिश केंद्र सरकार पिछले तीन वर्ष से कर रही। यानी फंसे कर्ज (एनपीए-नॉन परफोरमिंग एसेटस)। अब इन बैंकों के एनपीए पर नजर डालें। 

इलाहाबाद बैंक का युद्ध एनपीए पिछले वर्ष 5359.60 करोड़ रुपए से बढक़र 12,800.75, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का शुद्ध एनपीए, अग्रिम के मुकाबले 3.39 फीसदी से बढक़र 6.39 फीसदी हो चुका है। सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का शुद्ध एनपीए 3.83 फीसदी से बढक़र 8.17 फीसदी हो चुका है। देना बैंक का शुद्ध एनपीए 4.65 फीसदी से बढक़र 8.93 फीसदी हो चुका है। पीएनबी का एनपीए तो 3.99 फीसदी से बढक़र 9.10 फीसदी हो चुका है। दरअसल सरकारी बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देश के मुताबिक हर प्रकार के एनपीए का खुलासा मार्च 2017 तक करना है। जितना एनपीए बढ़ता है, उसी हिसाब से राशि उन्हें अपने मुनाफे से अलग करनी पड़ रही है।

  इससे जितना एनपीए बढ़ रहा है, उसी रफ्तार से मुनाफा भी घट रहा है या घाटा बढ़ रहा है। पीएनबी के प्रबंध निदेशक (एमडी) का कहना है कि पीएनबी ने अधिकांश एनपीए को सामने ला दिया है और अब बैंक के वित्तीय हालात में तेजी से सुधार होगा। 

बैंक ने बड़े एनपीए खाता वाली कंपनियों को अपने अधिकार में लेने की प्रक्रिया तेज कर दी है। एक ओर जहां बैंकों की फंसे कर्ज के कारण दिन प्रतिदिन हालात खराब हो रही है, वहीं केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार और चौतरफा विकास के लिए घरेलू निवेश को जरूरी बताते हुए बैंकों से कॉरपोरेट सेक्टर को कर्ज की रफ्तार बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर फंड मुहैया कराने को कहा है। 

उनका कहना है कि घरेलू निवेश लगातार चुनौती बना हुआ है। इसलिए जरूरी है कि आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने के लिए बैंकिंग जगत उद्योगों की मदद करे। जहां तक कॉरपोरेट सेक्टर को फंड मुहैया कराने की बात है, वह तो ठीक है किन्तु कर्ज वापसी में भी उन्हें मुस्तैदी दिखाने की व्यवस्था की जानी जरूरी है। अभी पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने जो खुलासा किया है, उससे फंसे कर्ज की स्थिति सामने आई है। रिजर्व बैंक की ओर से शीर्ष कोर्ट को बंद लिफाफे में बकाएदारों की जो सूची मुहैया कराई गई थी, उसके अनुसार 87 लोगों पर 85 हजार करोड़ रुपए फंसे हुए है, जिन्हें डूबत खाते में डालने की संभावना है।
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