जनधन खातों का नोटबंदी में दुरुपयोग नहीं

Samachar Jagat | Thursday, 08 Dec 2016 03:13:12 PM
no miss use of jan dhan accounts in demonetisation

प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत खोले गए बचत खाते नोटबंदी में गलत इस्तेमाल के आरोपों के बीच काफी सुर्खियों में है। हालांकि, हाल में जारी आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि खातों का दुरूपयोग नहीं हो रहा है। प्रधानमंत्री जनधन योजना द्वारा 9 नवंबर से 23 नवंबर के बीच जारी हुए आंकड़ों के मुताबिक इस अवधि में शून्य राशि जमा वाले खातों की संख्या में मात्र एक प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।

 9 नवंबर को शून्य राशि जमा वाले जनधन खातों की संख्या 59.4 करोड़ थी, जो 23 नवंबर को मामूली घटकर 58.9 करोड़ रह गए हैं। राज्यवार स्थिति पर नजर डालें तो उत्तराखंड में शून्य राशि जमा वाले जनधन खातों की संख्या में 2 नवंबर से 23 नवंबर के बीच 15 प्रतिशत की गिरावट आई है। 

असम में इन खातों की संख्या में तेजी आई है। हालांकि इसके पीछे माना जा रहा है कि लोगों ने या तो अपनी पूरी जमा राशि ही निकाल ली है या लेन देन नहीं होने की वजह से बड़ी संख्या में खाते बट्टा खाते में चले गए हैं। जनधन खातों को लेकर चर्चा है कि इसकी मदद से आयकर विभाग की नजरों से चुराकर पुराने नोट को सफेद करने की गतिविधियां हो रही है। इसमें खासकर शून्य राशि जमा वाले खातों को लेकर विशेष चिंता है। 

अधिकृत सूचना के अनुसार नोटबंदी के बाद 15 दिनों के अंदर कुल 16 लाख जनधन खाते खोले गए हैं। 9 नवंबर को जनधन खातों की संख्या 25.51 करोड़ थी, जो 23 नवंबर को बढक़र 25.67 करोड़ पर पहुंच गई। देश भर में अब तक 25.68 करोड़ जनधन खाते खोले गए है। 

इन खातों में 72 हजार 834 करोड़ 72 लाख रुपए फिलहाल जमा है। प्रधानमंत्री नोटबंदी के असर से जनधन खातों में आई भारी रकम को अब मुद्दा बनाने जा रहे हैं। इन खातों में नोटबंदी के पहले दो हफ्तों में 8 हजार 283 करोड़ रुपए जमा हुए, लेकिन 30 सितंबर को खत्म होने वाले हफ्ते में 1487 करोड़ रुपए ही जमा हुए।

 यानी जब सरकार सक्रिय हुई और इन खातों में निकासी को 10 हजार रुपए तक सीमित करने और आयकर जांच-पड़ताल का फैसला ले पाई, इन खातों में रकम आना घट गया। ऐसे कुल 25.5 करोड़ खातों में नोटबंदी के बाद 28 हजार 685 करोड़ रुपए जमा हुए, लेकिन शून्य बैलेंस वाले खातों की संख्या भी 22.85 प्रतिशत तक पहले जैसी बनी हुई है। खबर यह भी है आयकर विभाग को इन खातों पर कार्रवाई करने की सोच रहा है। लेकिन यह रकम कोई खास बड़ी नहीं है। 

न ही जनधन खातों में जमा अतिरिक्त रकम का मामला इतना बड़ा है कि उसे नोटबंदी की वजह बताई जाए। तो फिर प्रधानमंत्री के इसे मुद्दा बनाने के पीछे क्या वजहें हो सकती है। उन्होंने उत्तर प्रदेश की एक रैली में कहा कि वे ऐसे भ्रष्टाचारियों से निपटने के उपाय सोच रहे हैं और जिनके खातों में दूसरों ने अपनी भ्रष्ट कमाई जमा कराई है, वह उसे अपना समझ लें और उन्हें लौटाएं नहीं। इसके सामाजिक परिणाम क्या होंगे यह अलग सवाल है। 

लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि प्रधानमंत्री कालेधन, नकली नोटों के बदले अब सिर्फ भ्रष्टाचार पर फोकस क्यों करने लगे है? इसकी एक वजह बैंकों में जमा होने वाले 500 रुपए और 1000 रुपए के अवैध नोट के आंकड़ों से मिल सकती है। नोटबंदी के बाद 3 दिसंबर की शाम तक कुल 9.85 लाख करोड़ रुपए जमा हो चुके हैं। कथित तौर पर करीब 3.5 लाख करोड़ रुपए बैंकों में पहले से थे। शुरू में बताया गया कि ये नोट 14.6 लाख करोड़ रुपए मूल्य के है। 

अभी जमा कराने का समय 30 दिसंबर तक है। यानी सरकार जो उम्मीद लगा रही थी कि कम से कम 3 लाख करोड़ रुपए जमा नहीं हो पाएंगे और वह कालेधन के रूप में डूब जाएगा। इतनी रकम सरकार के पास अतिरिक्त हो जाएगी। जो वह कल्याणकारी योजनाओं में लगा सकती है। लेकिन अब ऐसा होता नहीं दिख रहा है। इसलिए प्रधानमंत्री को नई दलीलें खोजनी पड़ रही है। दरअसल प्रधानमंत्री के सामने 

यह स्थिति इसलिए उत्पन्न हुई क्योंकि वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने उन्हें सही जानकारी उपलब्ध नहीं कराई। आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से पांच सौ और एक हजार रुपए के नोटों को बंद करने की घोषणा के बाद बैंकिंग प्रणाली का कामकाज एक तरह से वित्त मंत्रालय के अधिकारी संभाल रहे थे। आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास के नेतृत्व में संयुक्त सचिवों की आठ टीमें काम कर रही थी। 

ये टीमें रोजमर्रा के आधार पर नीतियां बना रही थी। वित्त मंत्रालय या वित्त मंत्री जो घोषणाएं करते थे, रिजर्व बैंक बाद में उनके आधार पर नोटिफिकेशन जारी करता रहा। अब जब बैंकों में तरलता बढ़ गई है। नकदी संकट संभल नहीं रहा है तो वित्त मंत्रालय ने अब हाथ खड़े कर दिए हैं। मंत्रालय ने रिवर्ज बैंक को नोट भेजकर कहा है ‘‘बैंकों और एटीएम से कितनी मात्रा में कितने नोट जारी किए जाएंगे, इस बारे में आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) को समय-समय पर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।’’ इसके बाद से रिजर्व बैंक ने बैंकों को भेजे पत्र में कहा है कि वे अब से सिर्फ रिजर्व बैंक से मिले निर्देशों का अनुपालन करें। सोशल साइट का इस्तेमाल कर कोई सरकारी एजेंसी भी कोई ऐलान करती है तो उसे न माने।

 रिजर्व बैंक ने यह परिपत्र वित्त मंत्रालय को भी भेजा है। इसके साथ ही विमुद्रीकरण के बाद गठित वित्त मंत्रालय के संयुक्त सचिवों की टीमें भी भंग कर दी गई है। यहां यह उल्लेखनीय है कि आठ नवंबर को विमुद्रीकरण के ऐलान के बाद से वित्त मंत्रालय ने 170 बार से अधिक अपने निर्देशों में संशोधन किया है। रिजर्व बैंक अब तक 14 बार अपने दिशा-निर्देशों को संशोधित कर चुका है। ऐसे में खाताधारकों और बैंकों मेें भ्रम की स्थिति पैदा हुई है। बैंकों को कह दिया गया है कि आरबीआई के ई-मेल जाए को ही सटीक माना जाए, उसके मुताबिक ही व्यवस्था की जाए। 

नए नोटों के जो आंकड़े अब तक उपलब्ध है, उनसे कतई नहीं लगता कि 30 दिसंबर तक हालात पटरी पर आ जाएंगे। इसी तरह पुराने 500 और 1000 रुपए के नोटों को बैंक में जमा कराने के आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा रहा है कि 90-95 फीसदी तक नोट वापस हो जाएंगे। ऐसा होता है तो कालाधन या नकली नोट बाहर करने के सरकार के दावे बेमानी हो जाएंगे। 
 



 

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