केंद्र सरकार ने पिछले सप्ताह गुरुवार को लोकसभा में बताया कि देशभर में अंतरराज्यीय नदी जल विवादों के समाधान के लिए एक न्यायाधिकरण बनाने का प्रस्ताव है जिसके तहत राज्यों के पंचाट पीठों की तरह काम करेंगे। केंद्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री संजीव बालियान ने बताया कि पूरे देश के लिए नया न्यायाधिकरण बनाने का प्रस्ताव है।
छोटे-छोटे अन्तरराज्यीय नदी जल विवादों के समाधान के लिए मौजूदा कानून में संशोधन के मकसद से जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने विगत (संशोधन) विधेयक 2017 सदन में पेश किया था।
राज्यों के बीच नदी जल विवादों के समाधान में तेजी लाने के मकसद से यह विधेयक लाया गया है। यहां यह उल्लेखनीय है कि राज्यों के पानी के झगड़ों को सुलझाने के लिए अंतरराज्य जल विवाद अधिनियम, 1956 बना था। इसी अधिनियम के तहत कई न्यायाधिकरण या पंचाट बने। अब राष्ट्रीय स्तर पर एक पंचाट की स्थापना की जरूरत सरकार को क्यों महसूस हुई? इस बारे में संशोधन विधेयक लाते हुए सरकार ने कहा भी है।
अब तक जो अलग-अलग पंचाट बने, वे विवाद सुलझाने में नाकाम रहे हैं। दूसरे राज्यों के बीच पानी के झगड़े और बढ़ने के अंदेशे हैं। ऐसे में अंतरराज्य जल विवादों के हल के लिए राष्ट्रीय पंचाट के गठन के औचित्य से इंकार नहीं किया जा सकता। पर सवाल है कि प्रस्तावित पंचाट कितना कारगर हो पाएगा। इसके कई पीठ होंगे। पंचाट के मुखिया का कार्यकाल पांच साल का होगा। पंचाट की तकनीकी मदद के लिए विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाएगी और शिकायतों या विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए एक समिति होगी, जिसका गठन केंद्र सरकार करेगी।
अब तक के अनुभवों को देखते हुए फैसले की खातिर साढ़े चार साल की समय सीमा तय की गई है। पंचाट का फैसला अंतिम और राज्यों के लिए बाध्यकारी होगा। इन प्रावधानों से लगता है कि समाधान के लिए सही साबित होगा। लेकिन वास्तव में ऐसा हो पाएगा, क्योंकि संशोधन विधेयक आते ही एतराज शुरू हो गए हैं। इस बारे में बीजू जनता दल का कहना है कि पानी राज्यों का विषय है, पर इस मामले में ओडिशा सरकार की राय नहीं ली गई। ओडिशा का महानदी के जल बंटवारे को लेकर छत्तीसगढ़ के साथ विवाद है। दूसरे विवाद तो और भी तीखे हैं।
जैसे सतलुज के पानी को लेकर पंजाब और हरियाणा बीच, इसी प्रकार रावी के पानी को लेकर पंजाब और राजस्थान। कावेरी के पानी को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच, कृष्णा नदी के पानी को लेकर आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के बीच। इन विवादों को सुलझाने के लिए जो अलग-अलग पंचाट बने, उन्होंने काफी विस्तार में जाकर संबंधित नदियां के जल प्रवाह और जल उपलब्धता के आंकड़े इकट्ठे किए हैं और लंबे समय बाद फैसला सुनाया।
पर क्षेत्रवादी भावनाएं भडक़ाने की राजनीति के आगे वे फैसले लाचार हो गए। अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या राष्ट्रीय पंचाट के फैसलों के साथ ऐसा नहीं होगा? प्रस्तावित पंचाट के फैसले को संबंधित राज्यों के लिए बाध्यकारी और अंतिम मानने के प्रावधान को संसद से पारित करा लेना एक बात है, पर उसे व्यवहार में लागू करा पाना आसान नहीं होगा।
राजनीतिक कठिनाई का अंदाजा इसी सके लगाया जा सकता है कि सतलुज-यमुना लिंक नहर के झगड़े तब भी उठे जब हरियाणा और पंजाब दोनों जगह भाजपा सत्तासीन थी और केंद्र में भी भाजपानीत राजग सरकार। पंजाब और हरियाणा ताल ठोकते रहे और केंद्र मूकदर्शक बना रहा।
संशोधन विधेयक में विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए जो विवाद निपटारा समिति बनाने की तजवीज हो गई है, उसके सदस्यों का चयन केंद्र सरकार जल प्रबंधन से जुड़े अपने वरिष्ठ अफसरों में से करेगी और इस तरह इस समिति के राज्यों की हकीकत से अनजान रहने का अंदेशा है।
ऐसी आशंकाओं को निर्मूल करने के लिए पंचाट के स्वरूप और कार्यप्रणाली को और समावेशी बनाने के बारे में सोचा जाना चाहिए जिसके लिए उपयुक्त समय यही है, जब संशोधन विधेयक संसद के पास विचाराधीन है।