पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश का एकछत्र नेता बना दिया है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के धुआंधार प्रचार ने सरकार विरोधी लहर को सुनामी में बदल दिया और दोनों ही राज्यों में सत्तारूढ़ दल का न केवल सूपडा साफ कर दिया, बल्कि भारतीय जनता पार्टी की जीत का नया इतिहास रच दिया। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में दो तिहाई बहुमत के साथ अब तक के सभी रिकार्ड तोड़ डाले।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में दो तिहाई बहुमत के साथ अब तक के सभी रिकार्ड तोड़ डाले। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में मोदी के नेतृत्व में भाजपा को जितनी सीटें मिली है, उससे पहले किसी भी दल को अब तक इतनी सीटें नहीं मिली। उत्तर प्रदेश में लोकसभा के 2014 में हुए चुनाव में भाजपा के 328 सीटों पर बढ़त मिली थी और 42.3 प्रतिशत वोट मिले थे। उत्तराखंड में 15 साल में पहली बार भाजपा ने 57 सीटों पर जीत हासिल की है। इससे पहले किसी भी पार्टी को 36 से ज्यादा सीटों पर जीत नहीं मिली।
इन चुनावों के नतीजों ने यह भी साबित कर दिया है कि मोदी पर देश का भरोसा तीन साल से लगातार कायम है। मोदी पर भरोसा डिगा नहीं बल्कि टीका हुआ है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अलावा तीन और राज्यों पंजाब, गोवा और मणिपुर के नतीजों में जहां पंजाब मेें भाजपा शिरोमणी अकालीदल के साथ सरकार में थी, वहां सरकार विरोधी लहर में मोदी लहर अपना करिश्मा नहीं दिखा सकी और वहां कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिल गया। पंजाब में मोदी का जादू इसलिए नहीं चला क्योंकि उत्तर प्रदेश में जहां मोदी ने कुनबा और कबीला राजनीति का विरोध किया और कांग्रेस व सपा के गठबंधन के दो परिवारों का गठबंधन बताया वहीं पंजाब में जहां बादल परिवार की सरकार थी, वहां पर भाजपा उसकी गोद में बैठी हुई थी, इसलिए उनका परिवार की राजनीति का नारा कारगर सिद्ध नहीं हुआ।
सरकार विरोधी लहर में भी मोदी लहर का करिश्मा काम नहीं आया। इसलिए भाजपा को 2012 में जहां 12 सीटें मिली थी, वह 3 सीटों में सिमट कर रह गई और अकालीदल जहां 2012 में 56 सीटों पर विजयी हुआ था, वह 41 सीटें खोकर मात्र 15 सीटों पर आ गया। कांग्रेस की सीटों में 2012 के मुकाबले 31 सीटें बढ़ी और वह 46 सीटों के स्थान पर 77 सीटों जीत कर सत्ता की बागडोर संभालने का हकदार बन गई। पंजाब में एक नया दल आम आदमी पार्टी (आप) 20 सीटें हासिल कर दूसरे स्थान पर रहा और अकालीदल और भाजपा का गठबंधन तीसरे स्थान पर चला गया।
गोवा जहां कि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में थी, वहां सत्ता विरोधी लहर के चलते वह चुनाव में दूसरे स्थान पर चली गई और कांग्रेस वहां पर सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आई, किन्तु वह स्पष्ट बहुमत से चार सीट कम रह गई। 40 सदस्यीय गोवा विधानसभा में कांग्रेस को 17 और भाजपा को 13 सीटों पर जीत मिली और 10 सीटों पर अन्य दल जीतकर आए। गोवा में भाजपा की इस स्थिति का सबसे बड़ा कारण वहां पर मुख्यमंत्री रहे मनोहर पर्रिकर को केंद्र में रक्षामंत्री बनाए जाने के कारण बनी।
अब जबकि पर्रिकर को पुन: गोवा में मुख्यमंत्री के रूप में भेजने का भाजपा संसदीय बोर्ड ने फैसला किया है और राज्यपाल ने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में मनोनीत भी कर दिया है और आगामी 15 दिन में विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने का समय दिया है। पर्रिकर को विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने में कोई ज्यादा माथापच्ची नहीं करनी पड़ेगी, क्योंकि पर्रिकर को अन्य दलों ने समर्थन देने की घोषणा कर दी है। इस प्रकार गोवा इन चुनावों के बाद तीसरा राज्य होगा, जहां भाजपा पुन: सत्तारूढ़ हो जाएगी।
पांचवां राज्य मणिपुर है, जहां विधानसभा चुनाव हुए हैं। यहां पर भाजपा के वोटों में रिकार्ड तोड बढ़ोतरी हुई है। मणिपुर विधानसभा में उसको जो वोट प्रतिशत मिला वह लोकसभा चुनावों के मुकाबले 12 फीसदी से उछलकर 35 प्रतिशत तक पहुंच गया। मणिपुर में बहुमत के लिए 60 सदस्यीय विधानसभा में 31 सीट चाहिए। उसे 21 सीटों पर जीत मिली है। लेकिन निर्दलीय और अन्य 10 विजयी सदस्यों ने भाजपा को समर्थन देने का लिखकर राज्यपाल को दे दिया है। इस तरह मणिपुर में भी भाजपा को सरकार बनाने का पहली बार अवसर मिला है।
गोवा और मणिपुर में यद्यपि कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर सामने आई है, किन्तु उसे सरकार बनाने के लिए बहुमत से दूर रहने के कारण अवसर नहीं मिला है। भाजपा के तत्काल सक्रिय होने के कारण दोनों राज्यों में दूसरे नंबर पर रहने के बावजूद अन्य दलों के समर्थन के कारण सरकार बनाने का अवसर मिल रहा है। इस प्रकार मणिपुर और गोवा में सबसे बड़े दल के रूप ेमें जीतकर आने के बावजूद सत्ता में बाहर रहने का तगड़ा झटका है। वहीं भाजपा को पांच में से चार राज्यों में सरकार बनाने का अवसर मिलना बहुत बड़ी उपलब्धि माना जाना चाहिए।
इन चुनावों की खास बात यह रही कि पांचों ही स्थानों पर सत्ता विरोधी लहर के कारण सत्तारूढ़ दलों को जनता ने सत्ताच्युत कर दिया है। अलबता गोवा में भाजपा ने जोड़तोड़ कर फिर से सत्ता हासिल कर ली है। इसके लिए भाजपा को रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को वापस गोवा भेजना पड़ा है। इससे पहले भी वे गोवा में मुख्यमंत्री पद से त्याग पत्र देकर केंद्र में रक्षामंत्री बने थे। इन चुनावों में खास बात यह भी रही कि जनता ने कुनबा और कबीला राजनीति को नकार दिया है। जाति और संप्रदाय के नाम पर वोट बटोरने का चलन भी ध्वस्त हुआ है।
नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक के फैसलों को जनता ने मुहर लगाई है। मोदी की नीतियों और कार्यक्रमों में जनता ने भरोसा जताया है गरीबों, किसानों और मजदूरों में नई अपेक्षाओं का संचार हुआ है। देश की दशा और दिशा को नया रूप मिलने की आशा जगी है। मोदी नेताओं में महानेता सिद्ध हुए है। उनके सहयोगी और दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भाजपा का सदस्यता अभियान चलाकर 11 करोड़ से अधिक सदस्य बनाकर दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित किया, उसी का नतीजा है, कि भाजपा का परचम लहराता जा रहा है।