उजड़े-उजड़े से मन में
बिखरे-बिखरे अरमान हैं
सो गये समृद्धि के सपने
उदास बहुत मैदान है
जंगल-जंगल आग लगी है
सागर तक हैरान है
अपनी कुल्हाड़ी अपने पैर
काट रहे इंसान हैं
चूंकि मनुष्य प्रकृति का अटूट हिस्सा है, वह भी अग्नि, जल, वायु, धरती और आकाश से बना है। बहुत सीधी और सरल बात है यह कि जब में पांचों तत्व ही आज भयंकर संकट में हैं, तो फिर मनुष्य कैसे इस संकट से बच सकता है। यह भी सीधी बात है कि इस संकट का कोई और जिम्मेदार नहीं है, सिर्फ मनुष्य के। मनुष्य ने अपनी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार की दुविधाओं को जन्म दिया। मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया कि उसने अपने स्वार्थ के लिए, अपने छोटे से लोभ के लिए प्रकृति का बड़े से बड़ा नुकसान करने में भी तनिक सा संकोच नहीं किया।
इस स्वार्थी मनुष्य ने पवन को प्रदूषित कर दिया, पानी को जहरीला कर दिया, पेड़ को तो काट ही दिया, पर्वत-पठार को खोखला कर दिया, पशुओं-परिन्दों का जीना ही दुभर कर दिया और यही कारण है कि उसने प्रेम और परमात्मा-प्रकृति को भुला दिया है, जिसके दुष्परिणाम पूरी दुनिया की सुख-समृद्धि-शांति और सरसता को खा रहे हैं। चलना दुभर हो गया, कुछ करना दुभर हो गया, बोलना दुभर हो गया, दो पल सकून के साथ रहना मुश्किल हो गया, यहां तक कि सांस लेना तक दुभर हो गया है।
न धरती सुरक्षित और स्वच्छ बची है, न अम्बर सुरक्षित और स्वच्छ बचा है, न हवा और पानी ही सुरक्षित बचे हैं, इसका सीधा-सा मतलब यही हुआ कि सम्पूर्ण प्रकृति-पर्यावरण ही प्रदूषित कर दिया, इस सर्वश्रेष्ठ मानव ने। यदि समय रहते प्रकृति के साथ क्रूर मजाक को नहीं रोका गया, इस भद्दे खिलवाड़ को नहीं रोका गया तो वह दिन दूर नहीं जब मानव स्वयं इस भयंकर प्रदूषण के घुट-घुटकर मरने को मजबूर हो जाएगा। आइए, कम से कम यह तो वादा कर लें कि कभी भी किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं फैलाऊंगा।
प्रेरणा बिन्दु:-
यही है एक मुरीद मेरी
मेरा उजाला तेरे नाम हो जाए
कम से कम जिंदगी में
एक अच्छा काम हो जाए।