सस्ती दवाओं लिए कानून

Samachar Jagat | Saturday, 22 Apr 2017 10:37:20 AM
Law for cheap medicines

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस सप्ताह के शुरू में सूरत में 400 करोड़ रुपए की लागत से बने अत्याधुनिक अस्पताल के उद्घाटन समारोह में बोलते हुए संकेत दिया कि सरकार सस्ती दवाओं के लिए नया कानून बनाएगी। प्रधानमंत्री ने सस्ते इलाज का वादा करते हुए कहा कि नए कानून के तहत डॉक्टरों को पर्ची पर जेनेरिक दवाओं के नाम बताने होंगे, जो ब्रांडेड दवाओं की तुलना में सस्ती होती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि डॉक्टर उपचार के दौरान इस तरह से पर्चे पर लिखते हैं कि गरीब लोग उनकी लिखावट को समझ नहीं पाते है। 

इससे इन लोगों को निजी स्टोर से अधिक कीमत पर दवाएं खरीदनी पड़ती है। मोदी ने कहा हम एक ऐसा कानूनी ढांचा लाएंगे, जिसके तहत अगर कोई डॉक्टर पर्ची लिखता है तो उसे ऐसे लिखना होगा कि मरीज जेनेरिक दवाएं खरीद सके। उन्होंने कहा कि देश में डॉक्टर कम है, अस्पताल कम है और दवाएं महंगी है। अगर मध्यम वर्ग का कोई व्यक्ति बीमार पड़ता है, तब उसके परिवार की आर्थिक स्थिति डावांडोल हो जाती है। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि सभी को कम कीमत में स्वास्थ्य सेवाएं मिल सके।

 मोदी ने बताया कि सरकार ने 700 दवाओं के मूल्यों की सीमा तय की है। यहां यह उल्लेखनीय है कि देश में सस्ती दवाएं उपलब्ध तो है, लेकिन मरीजों तक उनकी पहुंच नहीं है। दवा कंपनियों और ज्यादातर डॉक्टरों की मिलीभगत से सस्ती जेनेरिक दवाओं पर ब्रांडेड दवाएं हावी हो रही है। निजी कंपनियां जेनेरिक और ब्रांडेड दोनों ही तरह की दवाएं बनाती है। मगर जेनेरिक की मार्केटिंग नहीं होती और सुनियोजित तरीके से इसे मरीजों तक पहुंचने से रोक दिया जाता है। अगर सरकार इस संबंध में कानून लाती है, तो आम लोगों को इसका फायदा पहुंचेगा। यहां यह बता दें कि दवा दुकानों पर सस्ती जेनेरिक दवाएं मिलती नहीं है। उनका तर्क है कि मरीज खरीदते नहीं है। 

मरीज इसलिए नहीं खरीदते डॉक्टर लिखते नहीं है। डॉक्टर लिखते नहीं है तो केमिस्ट के पास मांग नहीं आती है। इससे दवा कंपनियों को इन दवाओं के न बनाने का बहाना मिल जाता है। जेनेरिक दवा लिखना अभी डॉक्टरों के लिए बनी भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) की पेशेवर आचार संंहिता का हिस्सा है। इसमें डॉक्टरों से कहा गया है कि वे दवा ब्रांड नाम नहीं लिखे बल्कि साल्ट का नाम लिखें। यहां यह उल्लेखनीय है कि जेनेरिक दवा वह है, जिसे उसके मूल साल्ट के नाम से जाना जाता है। वह दवाएं जिनके पेटेंट खत्म हो चुके होते हैं। ऐसी दवाएं जो सिर्फ एक साल्ट से बनी हो। अमेरिका या विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार जिस दवा का पेटेंट खत्म हो चुका हो।

 जो सिंगल साल्ट की हो जेनेरिक दवा कहलाती है। मगर भारत के संदर्भ में पेटेंट मुद्दा नहीं है। इधर पिछले दस साल में आई कुछ नई दवाओं को छोड़ दिया जाए तो देश में तमाम दवाएं बिना पेटेंट के बन रही है। यहां यह बता दें कि देश में जेनेरिक के नाम पर भी खेल चल रहा है। ऐसे भी बहुत से मामले सामने आएं हैं, जहां जेनेरिक दवाओं का एमआरपी ब्रांडेड के बराबर ही रखा जाता है। जबकि इसकी वास्तविक कीमत 60-70 फीसदी तक कम होती है। देश में बनने वाली दवाओं को दो श्रेणियों में बांट सकते हैं। ब्रांडेड जेनेरिक दवाएं जो महंगी है। अन ब्रांडेड जेनेरिक दवाएं जो सस्ती है। मूल्यों में 100 फीसदी से भी ज्यादा फर्क होता है। भारत और अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की परिभाषाएं अलग-अलग है।

 भारत में बिना ब्रांड की दवाओं को जेनेरिक दवाएं माना जाता है और इसकी कोई परिभाषा नहीं है। अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की परिभाषा तय है और कानून भी मौजूद है। इसका फायदा भी हुआ है। अमेरिका में जेनेरिक दवाओं का कारोबार 7.4 फीसदी बढ़ गया है। सरकार के सामने मुश्किल यह है कि संयुक्त मिश्रण वाली दवाएं जेनेरिक दवाओं के दायरे में नहीं आती है, जबकि इस्तेमाल होने वाली 40-45 फीसदी दवाएं ऐसी होती है, जो संयुक्त मिश्रण वाली होती है। अब जो पेटेंटेड दवाएं आ रही है, जिन्हें पेटेंटधारक कंपनियां भारत मेें बना रही है। ऐसे में उनके जेनेरिक संस्करण बना पाना संभव नहीं है। इसके लिए सरकार को कानून में बदलाव करना होगा। 

जेनेरिक दवाओं को अनिवार्य करने के लिए केमिस्ट से जुड़े कानून में बदलाव करना होगा क्योंकि वर्तमान में डॉक्टर द्वारा लिखी दवा ही केमिस्ट दे सकता है। डॉक्टरों के लिए जेनेरिक दवाएं लिखने की अनिवार्यता के लिए भारतीय चिकित्सा परिषद कानून (एमसीआई एक्ट) में बदलाव करना होगा। इसके अनुसार डॉक्टरों के लिए उपलब्ध जेनेरिक दवाओं को लिखना अनिवार्य करना होगा। मरीजों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार की तीन पहल रंग लाई है। पहला राष्ट्रीय औषध मूल्य निर्धारण प्राधिकरण यानी एनपीपीए की सख्ती से काम बना है। प्राधिकरण ने 600 से ज्यादा दवाएं मूल्य नियंत्रण के दायरे में शामिल कर दी है। प्राधिकरण द्वारा की गई कार्रवाई में 138 मामले ज्यादा कीमत वसूलने के सामने आए है। 

दवाओं की कीमत सूची जारी करने का क्रम जारी है। अप्रैल में ही 10 से ज्यादा दवाओं को सूची में शामिल किया गया है। सरकार ने दूसरा कदम अमृत औषधायल का उठाया है, जहां कम दाम पर मरीजों को दवाएं उपलब्ध कराई जा रही है। कैंसर की जो दवा 89 हजार रुपए में मिलती थी वह अमृत औषधालय में महज 8 हजार रुपए में मुहैया कराई जा रही है। इससे मरीजों को 13 करोड़ रुपए का फायदा हुआ है। इस साल के अंत तक ऐसे 300 औषधालय खोलने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। सरकार ने तीसरा कदम जन औषधि केंद्र खोलकर उठाया है। यह केंद्र सार्वजनिक स्थलों और अस्पतालों में खोले गए है। इस साल के अंत तक 3 हजार केंद्र खोले जाएंगे। 

जन औषधि केंद्रों पर 600 से भी ज्यादा तरह की दवाएं मौजूद हैं। प्रधानमंत्री का यह कहना भविष्य के लिए उम्मीद पैदा करता है कि देश के डॉक्टर जेनेरिक दवाएं लिखें, इसके लिए जल्द कानून बनेगा। इस कानून को जितनी जल्दी सामने लाया जाए उतना ही अच्छा है। हालांकि केवल कानून बनाने से ही सब कुछ ठीक हो जाएगा, ऐसा नहीं माना जा सकता है। जिस ढंग से कमीशन और अन्य उपहारों की आदत डॉक्टरों के बड़े वर्ग को पड़ चुकी है, उसे एक झटके से दूर नहीं किया जा सकता। इसे युद्ध की तरह लेना होगा, किन्तु इसे हर हाल में करना ही होगा। आम आदमी को उसकी जेब के अनुरूप स्वास्थ्य सेवाएं मिल जाएं। इस लक्ष्य को पाने के लिए यह आवश्यक है।
 



 

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