श्री कन्हैयालाल मिश्र ने लिखा है कि ‘गांधी ने भारत की एक प्रतिमा संसार के मंच पर प्रतिष्ठित की, लाल बहादुर ने राजनीतिक प्रतिमा स्थापित की, इन्दिरा जी ने सशक्त एवं समर्थ भारत की प्रतिमा स्थापित की। शक्ति और साहस इन्दिरा गांधी की विशेषता थी।’ सच्चाई यह है कि व्यापक अधिकारों से युक्त एक सशक्त केन्द्रीय उद्देश्यपूर्ण सरकार की भारत की जनता को जाति, धर्म, अशिक्षा, गरीबी, असमानता के गर्त से निकालकर लोकतंत्र को सफल बना सकती है।
नेहरू के बाद कौन? किसी समय की एक पहेली का समुचित उत्तर स्व. लाल बहादुर शास्त्री व उनके बाद श्रीमती इन्दिरा गांधी ने भारत के प्रधानमंत्री पद की गहन और कठिनतम जिम्मेदारी को संभालकर किया। जब राष्ट्र ने प्रचण्ड बहुमत से उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए चुना तो अनेक लोगों ने खासकर पश्चिमी देशों ने, इस बात पर बड़ा ही आश्चर्य प्रकट किया था कि वे महिला होकर संसार के सबसे बड़े प्रजातंत्र के प्रधानमंत्री का जोखिम एवं कांटों भरा दायित्व कैसे पूरा करेगी।
इन्दिरा जी ने बचपन में ही फ्रान्स के महान पुरुष ‘‘जोन दि आर्क’’ की कहानी पढ़ी थी और दृढ़ निश्चय किया था कि वे भी उसकी तरह कुछ करके दिखायेगी। उन्होंने दिखा दिया कि भारत की सरल व सेवार्पणा नारी शासन के सर्वोच्य पद पर पहुंचकर स्वयं करोड़ों भारतीयों की सुरक्षा और स्वतंत्रता की बागडोर संभाल सकती है। उन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि इस देश की नारी महान है और स्वाभिमान की मूर्ति है, देश के गौरव के लिए जिन स्त्रियों ने त्याग और बलिदान किया है उनमें उनकी गिनती की जाती है।
1961 में अमेरिका के उपराष्ट्रपति श्री जान्सन और श्रीमती जान्सन भारत के दौरे पर आये थे। अपना दौरा समाप्त कर जब श्रीमती जान्सन अमेरिका वापिस गयी, तब उन्होंने इन्दिरा गांधी और भारत के प्रति अपने वक्तव्य में कहा था भारत का सही दर्शन करना हो तो उसके गांवों में जाये, परिचय पाना हो तो कविवर रविन्द्र नाथ टैगोर की कवितायें पढ़े और यदि भारतीय जीवन का मर्म समझना हो तो इन्दिरा गांधी जैसी शिक्षिका कमा मार्गदर्शन प्राप्त करें मैं अपने को बडभागी मानती हूं कि मुझे ये तीनों अवसर मिले है।’’ श्रीमती जान्सन के इस वक्तव्य से स्पष्ट है कि विदेशी राजनेताओं के मन पर इन्दिरा जी की कितनी गहरी छाप थी। इन्दिरा का प्रधानमंत्री पदभार संभालना ऐशिया व देश के लिए नवयुग के मंगल प्रभात का सूचक साबित हुआ।
एक प्रसिद्घ पत्रकार ने उनसे पूछा आपकी लोकप्रियता का रहस्य क्या है? इन्दिरा जी ने उत्तर दिया मैं जनता से प्रेम करती हूं और जनता मुझसे प्रेम करती है, जनता प्रेम व सहानुभूति की ही तो भूखी है, जनता यह भी जानती है कि मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए और न ही मैं खुशामद पसन्द करती हंू। काम में व्यस्त रहने की मेरी आदत है, और मैं रहुंगी भी। मैं युवक कांग्रेस का प्रथम संयोजक था।
युवक कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने अपने भाषण में आन्दोलन के लिए उत्सुक छात्रों की सराहना की थी। उतावलेपन को अच्छा लक्षण बताया था, उसे अनुशासनहीनता समझकर तिरस्कृत करने के स्थान पर उनकी शक्ति और बुद्घि का उचित उपयोग करने की सलाह दी थी, किन्तु साथ ही राजनितिक मामलों के संबंध मेंं छात्रों को सतर्क करने की सलाह दी थी। श्रीमती गांधी समाज मेे महिलाओं व दलितों का सम्मान और स्थिति को सुधारने की आवश्यकता पर विशेष बल देती थी। उन्होंने महसूस किया कि हमारे देश में महिलाओं और दलितों को व्यवहारिक रूप से पूर्ण सामाजिक स्वतंत्रता व अधिकार प्राप्त नहीं है।
समाज उन्हें समान अधिकार देने से भी राष्ट्र की उन्नती हो सकती है। उन्होंने कहा था कि हमारे देश की उन्नती के लिए केवल गृहणियों की ही नहीं बल्कि ऐसी महिलाओं की आवश्यकता है जो राष्ट्रीय उन्नति के लिए जी-जान से काम करे। इन्दिराजी ने ही योजना के मूल उद्देश्य ‘‘ग्रोथ विथ स्टेबिलिटी’’ को नया रूप देकर ‘‘ग्रोथ विथ सोशियल जस्टिस’’ किया और प्रथम बार दलित विकास राशि को बढ़ाकर 1362 करोड़ किया था। लैण्ड सीलिंग एक्ट लागू कर दलितों को भूमि पट्टे दिये जाने की कार्यवाही प्रारम्भ की।
लाखों दलितो को सरकारी सेवा विशेषक मेडिकल, इंजिनियरिंग व ज्यूडीशियरी में अवसर मिला विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा शिक्षकों के पदों पर दलितों के आरक्षण को लागू करने का निर्णय लिया गया। 1976 में ही प्राईवेट सैक्टर में दलितों को 22.5 प्रतिशत आरक्षण का फैसला उन्हीं का था।
इन्दिरा जी के नेतृत्व में देश में ही नहीं विदेशों तक में हलचल मचा दी थी। अपने जीवन से परिस्थितियों का सामना किया। राजा महाराजाओं में उन्होंने राजनीति के अनेक उतार चढ़ाव देखे, किन्तु संघर्षरत रहकर जुझारूपन के विशेषाधिकार व प्रिवीयर्स की समाप्ति का उनका निर्णय, बैंको का राष्ट्रीयकरण कर बैंको के द्वारा गरीब किसानों व आम आदमी तक पहुंचाने, गरीबों के सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक उत्थान के लिए व्यापक कार्यक्रमों का निर्धारण, हरित क्रांति की सफलता, आतंकवाद का दृढ़ता से मुकाबला, धर्मान्धता और साम्प्रदायिकता से जुड़ी ताकतो का मुकाबला, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को चुनौती, पाकिस्तान को हराकर शिमला समझौता करने को मजबूर करने की क्षमता इन्दिराजी जैसी महान नेता में ही दिखाई देती है।
1977 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेेस बुरी तरह पराजित हुई और जनता पार्टी के शासनकाल में उन पर मुकदमें चलाये गये। संसद में चुनी जाने पर उनकी सदस्यता समाप्त की गयी और उनकी प्रतिष्ठा को गिराने का हरसंभव प्रयास हुआ, परन्तु आम जनता ने उनकी विलक्षण प्रतिभा से प्रभावित होकर पुन: 1980 में उन्हें सत्ता में ला दिया। अनेक बार मुझे श्रीमती गांधी को करीब से देखने का मौका मिला। वे स्पष्टवक्ता थी। उनमें दृढ़ता थी, अपनी धारणाओं और आस्थाओं से जुड़ी रहना उनकी खूबी थी।
आम जनता के बीच जाने व उनका अभिवादन व मालायें स्वीकार करने में उन्हें बेहद खुशी होती थी और उनका उत्साह दुगना हो जाता था। उनको दी गयी मालाओं को आम लोगों को उछाल कर लौटाने से उनको जैसे नई उर्जा मिलती थी। अपने देशवासियों के प्रति अटूट श्रद्घाभाव व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था ‘‘शान्ति के साथ करोड़ों देशवासियों को अनाज, कपड़ा और आसरा प्राप्त करा देने के प्रश्न पर हमें अपनी ताकत लगा देनी चाहिए।’’ इस उद्देश्य की पूर्ती के लिए बगैर किसी हिचकिचाहट के शासन व्यवस्था में दूरगामी सुधार लाने आवश्यक है।
उन्होंने कहा था ‘‘हमारी ताकत हमारे चरित्र, हमारे संकल्प और विकास में निहित है।’’ देश का निर्माण अवसर परस्ती और सिद्घान्तों को छोडक़र नहीं किया जा सकता। देश से गरीबी हटाने के लिए शान्ति व दृढ़ता और कठोर फैसलों की आवश्यकता है।
राजस्थान से श्रीमती इन्दिरा गांधी को अपार स्नेह था। राजस्थान की भावना नामक एक लेख मेंं इन्दिराजी ने लिखा है राजस्थान का नाम लेते ही आंखों के सामने शौर्य एवं पराक्रम, सौन्दर्य एवं रोमान्स का एक अद्भुत दृश्य उपस्थित हो जाता है। हमें इस शौर्य व पराक्रम पर गर्व है।
साथ ही प्रदेश की समस्याओं विशेषकर महिलाओं के पिछडेपन से बेहद व्यथित भी थी। राज्य ने आजादी के बाद जो उपलब्धियां प्राप्त की उससे प्रभावित होकर कहा था ‘‘आपसे हमें बड़ी आशायें है। संकुचित विचारधारा से कोई प्रदेश व देश मजबूत नहीं बन सकता, आगे नहीं बढ़ सकता।’’ संकीर्ण राष्ट्रवाद और रुढि़वाद को तिलांजली देकर हमें अपने देश के लिए नवनिर्माण की नई राह पर चलना है।
इन्दिरा जी पर गांधी और गुरुदेव टैगोर का प्रभाव पड़ा। मैंने देखा है कि वे स्पष्ट बोलती थी, सफाई से बात करती थी, उनका व्यक्तित्व निर्भिक एवं स्वतंत्र था। उनमें मयशून्यता थी। देश के विकास के लिए उनका स्पष्ट सोच था। उन्होंने कहा था ‘‘हमारा यह विश्वास है कि सभी नागरिकों को चाहे वे स्त्री हो या पुरुष, चाहे किसी भाषा के बोलने वाले हो, चाहे किसी धर्म को मानने वाले हो, चाहे गरीब हो या अमीर न्याय पाने और उन्नति करने के लिए समान अवसर पाने का पूरा सामाजिक अधिकार है। हमने धर्म निरपेक्षता की नीति को अपनाया है।
धर्म निरपेक्षता का मतलब धर्म-विहीनता नही, बल्कि सभी धर्माे को पवित्र समझना है। हमने लोकतंत्र का रास्ता चुुना है ताकि देश के लोगों को अधिक से अधिक स्वतंत्रता मिल सके और वे राष्ट्रीय मामलों में अधिक से अधिक हिस्सा लेने को आगे आये। नागरिकों को विधान में जो समानता का अधिकार दिया है उसका अमल में लाने के लिए ताकि जनता वास्तविक लाभ उठा सके, आर्थिक विकास में हमने शोषित और गरीब वर्ग के उत्थान पर विशेष जोर दिया है’’।