जो तुम हो तो मेरे होने का एहसास है
है कुछ मंजर ऐसा,जिंदगी के रेगिस्तान में हरियाली की आस है
बड़ी मची है होड़ इस ज़माने में,स्त्री को पुरुष से श्रेष्ठ बताने में
नादाँ हैं वो उन्हें क्या मालूम
तुम हो वह कश्ती जिसके संग ही यह जीवन सागर पार हुआ है’||
चंचलता, कोमलता, प्रेम, वात्सल्य, त्याग व समर्पण तुम्हारे सायें हैं
छु लिया जिस भी पत्थर मन को तूने,वो फिर भला कब फूल बनने से रह पाए हैं
मैं खुश हो लेता हूँ अपनी हैसियत पर- 2
पर क्या मालूम इस जहाँ को,इन सब खुशियों के ताने बाने तो तुमने ही बनाए हैं||
मेरा यह भ्रम है की मैं जानता हूँ तुम्हे.-2
तुमने कभी तोडा भी तो नहीं
तुम्हे मालूम है इस भ्रम से ज्यादा रिश्तों की अहमियत खास है
कर बैठता हूँ भूल मैं तुम्हे शरीर समझने की
और पहचान भी तुम्हारी रंग-रूप, यौवन, कद-काठ से करता हूँ
नादाँ हूँ जो भूल जाता हूँ कि तुम शरीर नहीं जिंदगी का सबसे प्यारा एहसास हो||
जो तुम चलती थी पीछे मेरे इस आदत को मैं कमजोरी समझ लेता था
अब समझदार हुआ हूँ तो पता चला तुम मुझे संभालने को पीछे चला करती थी
देखता हूँ जब गौर से आईने में तो मेरे अक्स में तुम भी नजर आती हो -२
अब समझा हूँ यह दृष्टि भ्रम नहीं,पूर्णता का एहसास है
बेजान सा था यह जिस्म मेरा,अब तुम हो तो इसमें जिंदगी का एहसास है
तुम हो तो मेरे होने का एहसास है
तुम हो तो मेरे होने का एहसास है