देश में खाद्य पदार्थ और ईंधन की कीमतों में तेज इजाफा होने से इस साल फरवरी में थोक मुद्रास्फीति की दर 6.55 प्रतिशत बढ़ी। यह इसका तीन साल माह का उच्चतम स्तर है। साथ ही खुदरा महंगाई 3.17 से बढक़र 3.65 फीसदी पर पहुंच गई। सरकार की ओर से पिछले सप्ताह जारी आंकड़ों में यह बात सामने आई है। खास बात यह है कि खुदरा महंगाई की सर्वाधिक दर देश के उत्तरी राज्यों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली में है।
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार इस साल फरवरी में थोक महंगाई दर में वृद्धि की वजह सब्जियों और फलों की कीमतों में तेजी रही। इसी साल जनवरी में यह दर 5.25 प्रतिशत तथा पिछले साल फरवरी में 0.85 प्रतिशत थी। थोक महंगाई दर का ताजा स्तर बीते 39 माह में सर्वाधिक है। इससे पूर्व नवंबर 2013 में थोक महंगाई दर 7.52 प्रतिशत थी। वैसे बीते ढ़ाई साल में यह पहला मौका है, जब थोक महंगाई दर ने छह प्रतिशत का स्तर पार किया है। थोक महंगाई दर में वृद्धि सब्जियों और फलों के दाम में तेजी के चलते आई है।
वैसे चना, अरहर, उड़द दाल और मसालों के भाव में कमी आई है। बहरहाल दलहन, सब्जियों विशेषकर आलू और प्याज की महंगाई दर बीते कई महीनों की तरह अब भी शून्य से नीचे बनी हुई है। वहीं अनाज खासकर गेहूं की थोक महंगाई दर अपेक्षाकृत अधिक रही है। इसी तरह खाने-पीने की अन्य चीजों में चीनी की थोक मुद्रास्फीति भी काफी अधिक रही है। लगातार दो महीने शून्य से नीचे रहने वाली खाद्य वस्तुओं की थोक महंगाई दर मामूली उछाल के साथ फरवरी में 2.69 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
थोक महंगाई के जोर पकड़ने से सरकार के समक्ष खाद्य वस्तुओं की सुचारू आपूर्ति सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण होगा। खुदरा महंगाई के मोर्चे पर भी चिंताजनक खबर है। खुदरा महंगाई दर जैसा कि ऊपर लिखा गया है फरवरी में बढक़र 3.65 प्रतिशत हो गई है, जबकि जनवरी में यह 3.17 प्रतिशत थी। हालांकि पिछले साल फरवरी में खुदरा महंगाई दर 5.26 प्रतिशत थी। खुदरा महंगाई में वृद्धि की वजह चीनी सहित कई वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी है। राज्यवार देखें तो सर्वाधिक 7.14 प्रतिशत महंगाई दर जम्मू-कश्मीर में, 6.16 प्रतिशत हिमाचल प्रदेश में तथा 6.11 प्रतिशत दिल्ली में है। सबसे कम खुदरा महंगाई दर छत्तीसगढ़, असम और उड़ीसा में है।
खुदरा महंगाई दर में वृद्धि इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक एवं ऋण नीति तय करते हुए इसी को संज्ञान में लेता है। इसलिए रिजर्व बैंक की 6 अप्रैल को होने वाली मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दरें घटने की उम्मीद बेहद कम है।
रिजर्व बैंक ने खुदरा महंगाई दर चार प्रतिशत के स्तर पर रखने का लक्ष्य रखा है। इसमें दो फीसदी कम या ज्यादा रहने का भी प्रावधान है। वैसे तो खुदरा महंगाई दर फिलहाल रिजर्व बैंक के लक्ष्य के दायरे में है। लेकिन इसमें वृद्धि की प्रवृति आने वाले महीनों में चिंता का सबब बन सकती है। आंकड़ों के अनुसार फरवरी में मुख्य रूप से अनाज, चावल और फलों के दाम में तेज उछाल से खाद्य वर्ग की मुद्रास्फीति 2.69 पर पहुंच गई।
इसी तरह ईंधन वर्ग की मुद्रास्फीति फरवरी में 21.02 प्रतिशत पर पहुंच गई, जबकि जनवरी में यह 18.14 प्रतिशत थी। ताजा आंकड़े क्यों चिंताजनक है, इसका अंदाजा मात्र एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि महज तीन महीने पहले दिसंबर 2016 में थो महंगाई सूचकांक संशोधित अनुमान के अनुसार सिर्फ 3.68 फीसदी पर था। ताजा आंकड़ों के अनुसार फरवरी में खनिज की कीमतों में 31 फीसदी और ईंधन की कीमतों में 21 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। रिजर्व बैंक ने करीब सवा महीने पहले जब पिछली मौद्रिक समीक्षा जारी की थी, तो बहुत से लोगों की उम्मीदों के विपरीत उसने रेपो दरों में कोई कटौती नहीं है। उसे आशंका थी कि कीमतें चढ़ सकती है।
इसलिए फरवरी में 2.69 फीसदी की तेज बढ़ोतरी एकदम अप्रत्याशित नहीं है। इसके पीछे यह अनुमान काम कर रहा था कि नोटबंदी की वजह से मांग धीमी पड़ी है, जिससे कीमतें ठहरी हुई है या किसी-किसी मामले में कुछ नीचे भी आई है, जैसे ही क्रय-विक्रय सामान्य होगा, कीमतें चढ़ सकती है। दूसरे उसे लग रहा था कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के क्रियान्वयन का असर अभी पूरी तरह उजागर नहीं हुआ है। आगे इसका असर कीमतों में बढ़ोतरी ही लाएगा। रिजर्व बैंक की आशंका अब सही साबित होती दिख रही है। नोटबंदी के बाद कुछ दिनों तक महंगाई से राहत का जो आभास दिया जा रहा था, उसकी कृत्रिमता अब सामने आने लगी है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आम लोग रोजाना जो दंश बाजार में महसूस करते हैं, उसका ठीक अंदाजा थोक मूल्य सूचकांक से नहीं होता क्योंकि उनका वास्ता थोक बाजार से नहीं, खुदरा बाजार से होता है और खुदरा महंगाई दर हमेशा थोक महंगाई दर से ज्यादा होती है। अगर थोक मूल्य सूचकांक फरवरी में करीब साढ़े छह फीसदी पर पहुंच गया है, तो जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित आंकड़े आएंगे, तो कैसी तस्वीर उभरेगी, इसका थोड़ा बहुत अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
अब एक बार फिर रिजर्व बैंक को 6 अप्रैल को होने वाली मौद्रिक समीक्षा बैठक में इस मुश्किल सवाल से जूझना होगा कि नीतिगत दरों में कटौती की जाए या नहीं। रिजर्व बैंक जो करे, पर बार-बार का अनुभव है कि मौद्रिक नीति की अपनी सीमाएं है। महंगाई से निपटने की ज्यादा उम्मीद रिजर्व बैंक से नहीं, सरकार से की जानी चाहिए। सरकार महंगाई पर नियंत्रण के लिए कोई कदम उठाए, वह अपने कर्मचारियों और सेवानिवृत कर्मियों की महंगाई भत्ते में वृद्धि कर के ही इतिश्री समझ लेती है।
यह देश की आबादी की मात्र एक फीसदी है। आम लोगों को राहत देने के लिए भी आवश्यक कदम उठाने चाहिए। सरकार ने अपने कर्मचारियों और पेंशन भोगियों के महंगाई भत्ते में दो फीसदी की बढ़ोतरी जनवरी 2017 से कर दी है। इससे 48.85 लाख सरकारी कर्मचारियों और 55.51 लाख पेंशन भोगियों को फायदा होगा। इससे बाजार में महंगाई और बढ़ेगी और आम जनता को भुगतना पड़ेगा।