दिवाली पर इस बार पटाखों के धुएं से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और राज्य की राजधानी जयपुर सहित आसपास के क्षेत्रों के ऊपर छाई प्रदूषण की परत अगले कई दिनों तक कायम रह सकती है। वैज्ञानिकों ने फिलहाल इस परत के छंटने की संभावना से इनकार किया है। मौसम विभाग के अनुसार न तो इन क्षेत्रों में हवा की गति तेज हो पा रही है और न ही बारिश के आसार है।
इसलिए धुंध से छुटकारा मिलना अभी मुश्किल है। पंजाब, हरियाणा और आसपास क्षेत्रों में फसलों के अवशेष जलाए जाने से भी आसपास धुंध की एक परत बन गई है। मूलत: यह प्रदूषण के कण है, जिन्हें पीएम 2.5 तथा पीएम 10 के नाम से जानते है। हवा की गति कमजोर होने के कारण ये कण आगे नहीं बढ़ रहे हैं। इसी प्रकार तापमान कम होने के कारण ये कण हवा में ऊपर भी नहीं उठ पा रहे हैं। कुछ ऊंचाई तकरीबन डेढ़ सौ मीटर पर जाकर ये हवा में लटक गए हैं। इससे हवा जहरीली हो गई है, जो लोगों के लिए खतरनाक है।
मौसम विभाग के महानिदेशक केजे लेश ने कहा है कि दिल्ली समेत उत्तर भारत में अगले कुछ दिनों के भीतर तापमान में दो डिग्री तक की गिरावट होने जा रही है। वहीं मैदानी इलाकों में बारिश की संभावना नहीं है। हवा की गति भी स्थिर है। इसके चलते धुंध छंटने के बजाए और बढ़ सकती है। आबोहवा में बढ़ते प्रदूषण से अर्थराइटिस का खतरा बढ़ रहा है। हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम कणों) के बढ़ते ही अर्थराइटस की परेशानी भी बढ़ जाती है। दिवाली पर पटाखों की धुआं से हुई जहरीली हवा लोगों के लिए खतरनाक है।
इस जहरीली हवा का बच्चों के स्वास्थ्य पर अत्यधिक असर हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र की ओर से पिछले सप्ताह जारी एक शोध के अनुसार दुनिया के करीब 30 करोड़ बच्चे बाहरी वातावरण की इतनी ज्यादा विषैली हवा के संपर्क में आते हैं कि उससे उन्हें गंभीर शारीरिक हानि हो सकती है। उनके विकसित होते मस्तिष्क पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ सकता है। ‘यूनिसेफ’ के इस शोध में बताया गया है कि दुनिया भर के सात में से एक बच्चा ऐसी बाहरी हवा में सांस लेता है, जो कि अंतरराष्ट्रीय मानकों से कम से कम छह गुना अधिक दूषित है।
बच्चों में मृत्यु दर बढ़ने का एक प्रमुख कारण वायु प्रदूषण है। इस शोध को संयुक्त राष्ट्र की सालाना जलवायु संकट वार्ता से एक हफ्ते पहले प्रकाशित किया गया है। सात से 18 नवंबर तक होने वाली इस वार्ता की मेजबानी मोरक्को करेगा। बच्चों के कल्याण और अधिकारों के लिए काम करने वाली एजेंसी यूनिसेफ ने दुनियाभर के नेताओं से अनुरोध किया है कि वे अपने-अपने देशों में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए जरूरी कदम उठाएं।
यूनिसेफ की इस रिपोर्ट के अनुसार हर साल पांच साल से कम उम्र के छह लाख बच्चों की मौत की प्रमुख वजह वायु प्रदूषण है। हर दिन इससे लाखों लोगों को जीवन और भविष्य पर खतरा मंडराता जा रहा है। प्रदूषण तत्व न केवल बच्चों के फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते है, बल्कि उनके मस्तिष्क को स्थायी नुकसान भी पहुंचा सकते हैं।
यूनिसेफ ने सेटेलाइट इमेजरी का हवाला दिया है और पुष्टि की है कि लगभग दो अरब बच्चे ऐसे इलाकों में रहते हैं, जहां बाहरी वातावरण की हवा विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानको से कहीं अधिक खराब है। इसमें बताया गया है कि वाहनों से निकलने वाला धुआं, जीवाश्म ईंधन, धूल, जली हुई सामग्री के अवशेष और अन्य वायुजनित प्रदूषक तत्वों के कारण हवा जहरीली होती है। ऐसे प्रदूषित वातावरण में रहने को मजबूर सर्वाधिक बच्चे दक्षिण एशिया में रहते हैं। इनकी संख्या 62 करोड़ है। इसके बाद अफ्रीका में 52 करोड़ और पश्चिमी एशिया व प्रशांत क्षेत्र में प्रदूषित इलाकों में रहने वाले बच्चों की संख्या 45 करोड़ है।
यूनिसेफ के शोध में भीतरी हवा में प्रदूषण को भी देखा गया है, जिसकी प्रमुख वजह भोजन पकाने, और गर्म करने के लिए कोयला या लकड़ी जलाना है। यूनिसेफ के मुताबिक बाहरी और भीतरी हवा में प्रदूषण को निमोनियां और सांस लेने संबंधी अन्य रोगों से सीधे तौर पर जोड़ा जा सकता है।
पांच साल से कम उम्र के दस बच्चों में से एक की मौत की वजह ऐसे रोग होते हैं। इस तरह वायु प्रदूषण बच्चों की सेहत के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है। ऐजेंसी का कहना है कि बाहरी और भीतरी वायु प्रदूषण से बच्चे ज्यादा प्रभावित होते हैं क्योंकि उनके फेंफडे, मस्तिष्क और रोग प्रतिरोध क्षमता अभी विकसित हो रहे होते हैं और उनका श्वसन तंत्र कमजोर होता है। गरीबी में रह रहे बच्चों के वायु प्रदूषण जनित रोगों की चपेट में आने की आशंका कहीं ज्यादा है। दिल्ली और जयपुर के आसपास के क्षेत्रों, गांवों, शहरों और ढाणियों तक में दिवाली पर जलाए गए करोड़ों रुपए के पटाखों से निकले धुएं के कारण आसमान में प्रदूषित हवा की एक परत जम गई है।
दिल्ली में इस दिवाली पर प्रदूषण स्तर तीन साल में सबसे खतरनाक रहा। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पुणे की टीम तथा सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट ने शहरों में हवा की गुणवता की जांच की थी। दिल्ली में साल में सबसे अधिक प्रदूषित समय 30 अक्टूबर की रात 11 बजे से 31 अक्टूबर सुबह 10 बजे तक का माना गया। गुलाबी नगर जयपुर में भी दिवाली की रात पीएम-10 यानी पार्टिकुलेट मैटर 10 गुना तक बढ़ गया। इस तरह जयपुर में भी दिवाली की रात प्रदूषण खतरनाक स्तर पर रहा। दिवाली की रात को दिल्ली से लेकर जयपुर तक प्रदूषण की जमी परत के कारण धुंध से अभी छुटकारा मिलना मुश्किल है।