पारदर्शिता का चुनाव

Samachar Jagat | Tuesday, 16 May 2017 02:40:27 PM
Election of transparency

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम पर छाए संदेह के बादल दूर करने के लिए राजनीतिक दलों के साथ निर्वाचन आयोग की बैठक का नतीजा यह निकला कि आगामी चुनावों में ईवीएम से मतदान के दौरान वीवीपीएटी यानी वोटर वेरीफिएबल पेपर ऑडिट ट्रायल तकनीक भी काम में लाई जाएगी। यह स्वागत-योग्य है। बैठक बुलाने की जरूरत आयोग को इसलिए महसूस हुई, क्योंकि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद से कई राजनीतिक दल ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते रहे हैं। 

उनका आरोप है कि ईवीएम में गड़बड़ी करके नतीजों को प्रभावित किया गया। यों ईवीएम पर पहले भी कई बार सवाल उठे थे, लेकिन ऐसा विवाद पहले कभी नहीं उठा था। विवाद कई अदालतों में भी पहुंच गया। आयोग ने एक बार फिर दोहराया है कि हाल में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान कोई गड़बड़ी नहीं हुई, ईवीएम से छेड़छाड़ संभव नहीं है। पर बहुत-सी पार्टियां अब भी इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हैं। अलबत्ता वीवीपीएटी के इस्तेमाल के फैसले का सबने स्वागत किया है।

 ईवीएम से जुड़ी एक प्रिंटरनुमा मशीन में, वोट डालते ही, एक पर्ची निकलती है जो मतदाता द्वारा चुने गए उम्मीदवार और पार्टी का निशान दिखाती है; इसी को वीवीपीएटी कहते हैं। यह पर्ची कुछ देर के लिए दिखती है जिससे मतदाता अपने वोट की पुष्टि कर ले, उसके बाद यह सीलबंद डिब्बे में गिर जाती है जिसे वोटों की गिनती के समय ही खोला जा सकता है।

आयोग के फैसले के मुताबिक यह पर्ची सात सेकंड तक दिखेगी, जबकि अधिकतर राजनीतिक दल चाहते हैं कि यह अवधि पंद्रह सेकंड की हो। संदेह या विवाद की सूरत में ईवीएम में पड़े वोटों और पर्चियों का मिलान मददगार साबित होगा। अमेरिका में भी जिन राज्यों में ईवीएम से मतदान होता है वहां वीवीपीएटी तकनीक का इस्तेमाल जरूरी है।

 आयोग ने राजनीतिक दलों को यह भी सूचित किया कि पिछले विधानसभा चुनावों में गड़बड़ी की शंका को पूरी तरह दूर करने के लिए वह ईवीएम को हैक करने का एक मौका देगा; राजनीतिक दलों को खुली चुनौती दी जाएगी कि वे अपने तकनीकी महारथियों के साथ आएं और ईवीएम हैक करके दिखाएं। लेकिन आयोग ने इसकी कोई तारीख अभी घोषित नहीं की है। बहरहाल, आगामी हर चुनाव में वीवीपीएटी के इस्तेमाल का फैसला हो जाने के बावजूद तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, पीएमके जैसी कई पार्टियां संतुष्ट नहीं हैं और उन्होंने बैलेट पेपर की पुरानी व्यवस्था की तरफ लौटने की मांग उठाई है।

 लेकिन क्या ऐसा करना उचित होगा, और ऐसा हुआ तो किसका भला होगा? सब जानते हैं कि बैलेट पेपर वाली मतदान प्रणाली में मतपत्र फाडऩे से लेकर बूथ कब्जे की कितनी घटनाएं होती थीं। आयोग की सबसे बड़ी चिंता  बूथ कब्जा रोकने की होती थी और इसके लिए कुछ इलाकों में तो भारी सुरक्षा बल तैनात करना पड़ता था। 

मतदान में, और फिर मतों की गिनती में भी काफी समय लगता था। ईवीएम के इस्तेमाल ने मतदान और मतगणना, दोनों की रफ्तार तेज कर दी। ईवीएम ने बूथ कब्जे से भी निजात दिलाई है, जो कि सबसे ज्यादा समाज के कमजोर तबकों के ही हक में गया है। लिहाजा, पीछे लौटने के बजाय ईवीएम को ही संदेह से परे बनाने के उपाय किए जाने चाहिए।



 

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