आयात ने बिगाड़ी घरेलू खाद्य तेल की धार

Samachar Jagat | Saturday, 25 Feb 2017 05:11:25 PM
down edge of domestic edible oil imports

मानसून की अच्छी बारिश और मिट्टी में पर्याप्त नमी के चलते भले ही रबी सीजन की फसलों की शानदार पैदावार होने की संभावना हो, लेकिन खाद्य तेलों की कमी को पूरा करने में सरकारी खजाने की सेहत जरूर बिगड़ जाएगी। साल दर साल खाद्य तेलों के मामले में बढ़ती आयात निर्भरता से जहां घरेलू खेती को नुकसान हो रहा है, वहीं खजाने की मुश्किलें बढ़ रही है। हालांकि, सरकार इस कठिन समस्या से उबरने के उपाय ढूंढ़ने में जरूर जुट गई है। घरेलू तिलहन फसलों की खेती लगातार सिमटती जा रही है।

 नतीजन, खाद्य तेलों की जगह विलायती खाद्य तेलों ने ले लिया है। घरेलू पैदावार व बढ़ते आयात के बीच लगातार अंतर बढ़ता ही जा रहा है। सस्ते आयात के चक्कर में घरेलू तिलहन फसलों की खेती महंगी साबित हो रही है। लिहाजा किसानों ने इससे मुंह मोड़ लिया है। पिछले एक दशक में हालात बद से बदतर हो चुके है। 

इससे पार पाने के उपाय शुरू तो किए गए, लेकिन इतनी देर हो चुकी है कि अब इसका खामियाजा उपभोक्ताओं को महंगे खाद्य तेल के रूप में उठाना पड़ेगा। देश में सालाना डेढ़ लाख टन से भी अधिक खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है।

 वर्ष 2009-10 में कुल 88 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया गया था। उस वर्ष घरेलू खाद्य तेलों का उत्पादन 62 लाख टन हुआ था। लेकिन वर्ष 2015-16 में खाद्य तेलों का आयात बढक़र लगभग दोगुना यानी 155 लाख टन हो गया और खाद्य तेलों की घरेलू पैदावार का आंकड़ा 70 लाख टन पर ही अटक गया।

 लोगों की आमदनी में वृद्धि और आबादी बढ़ने से मांग तेजी से बढ़ रही है। घरेलू स्तर पर महंगाई को काबू में करने के चक्कर में आयात शुल्क में लगातार कटौती की गई है। 

नतीजा यह हुआ है कि तिलहन की खेती करने वाले किसानों की लागत के मुकाबले बाजार में सस्ते खाद्य तेल की भरमार हो गई। दूसरी समस्या यह रही कि सूखे की वजह से भी तिलहन की खेती मुश्किल हो गई। आमतौर पर तिलहन की खेती असिंचित क्षेत्रों में ज्यादा होती है। 

हालांकि मौजूदा सरकार ने तिलहन खेती को संरक्षित करने के मकसद से कच्चे खाद्य तेलों के आयात शुल्क को बढ़ाकर 7.5 फीसदी से 12.5 फीसदी और रिफाइंड को 15 से बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया है। खाद्य तेलों की मांग को पूरा करने के लिए घरेलू खेती को प्रोत्साहन और आयात को हतोत्साहित करने की जरूरत है।


 



 

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