पांच सौ और एक हजार रुपए के पुराने नोट बंद किए जाने के बाद एक ओर जहां सरकार कालेधन के तंत्र की कमर तोड़ने में जुटी है, वहीं आम जनता को होने वाली परेशानी को दूर करनेे के लिए भी तत्काल कदम उठा रही है। जनता और सरकार दोनों को यह परेशानी इसलिए उठानी पड़ रही है क्योंकि सरकार ने बिना पूरी तैयारी किए औचक यह घोषणा कर नोटबंदी लागू कर दी।
सरकार को जनता की इस परेशानी का तब मालुम पड़ा जब बुधवार को राज्यसभा में विपक्ष ने जोरशोर से उठाया और सरकार को कठघरे में खड़ा किया। एक हजार और पांच सौ के नोटों को अवैध घोषित करने वाली इस कथित सर्जिकल स्ट्राइक के नौ दिन बाद सरकार ने संसद में पिछले सप्ताह गुरुवार को बैंकों से पैसा निकालने के नियमों में कुछ ढील दी। पिछले सप्ताह बुधवार को विपक्ष ने राज्यसभा में बहस के दौरान रबी की फसल में किसानों को बीज और खाद के लिए भटकने और परेशान होने की बात जोर शोर से उठाई तो सरकार ने कुछ ढील दी, किन्तु साथ ही आम जनता को पूर्व में दी गई सुविधा में कटौती भी की।
यह कटौती कालेधन के तंत्र की कमर तोड़ने के लिए की गई। इसके अंतर्गत अब पुराने नोट बदलने की सीमा 4500 रुपए से घटाकर 2000 रुपए कर दी गई है। यह पुराने नोट पूर्व की घोषणा के अनुसार केवल 30 दिसंबर तक ही बदले जा सकेंगे। यही नहीं अब एक व्यक्ति केवल एक बार नोट बदला सकेगा। इस नई पाबंदी के बाद बैंकों के सामने नोट बदलवाने वालों की भारी भीड़ लग गई।
लोग समझ रहे हैं कि उनके साथ भारी धोखा हुआ है, क्योंकि तीन दिन पहले ही सरकार ने रुपए निकालने की सीमा 4000 रुपए से बढ़ाकर 4500 रुपए की थी। इस योजना में की जा रही बदलियों की प्रतिदिन घोषणा करने वाले केंद्र के आर्थिक मामलात सचिव शक्तिकांत ने यह कहते हुए घटी हुई सीमा को तर्कसंगत बताया कि इससे ज्यादा संख्या में लोग नोट बदलवा सकेंगे। लेकिन दास इस बात को भूल गए कि इससे बैंकों पर भीड़ और बढ़ जाएगी क्योंकि जब ज्यादा लोग आएंगे तो भीड़ बढ़ेगी ही।
दास का कहना था कि बैंकों में नोटों की नकदी की कमी नहीं है। नकदी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। लेकिन वे इस बात को भूल गए कि सरकार ने एक दिन पहले ही नोट बदलवाने वालों के दाहिने हाथ की तर्जनी पर वोटिंग के समय लगाई जाने वाली परमानेंट स्पाही का निशान लगाने के आदेश दिए थे, ताकि कोई भी एक से अधिक बार नोट ना बदलवा सके। नियमों में गुरुवार को दी गई ढील के अनुसार विवाह की तैयारी कर रहे परिवार दुल्हा-दुल्हन या माता-पिता के खाते से ढ़ाई लाख रुपए तक निकलवा सकते हैं।
इसके लिए पैन कार्ड का विवरण और स्वयं का घोषणा-पत्र देना होगा। सरकार द्वारा घोषित दो अन्य राहते इस प्रकार है। खाद्य मंडियों में पंजीकृत सभी व्यापारी अपनी नकदी (कैश) जरूरतों के लिए हर सप्ताह 50 हजार रुपए तक निकाल सकते हैं। व्यवसाइयों को वर्तमान खाते से पहले ही यह रकम निकालने की अनुमति मिली हुई है। इसके अतिरिक्त किसान प्रति सप्ताह अपने उन खातों से 25 हजार रुपए तक निकाल सकते हैं। जिनमें उन्हें भुगतान मिलता है या फिर उन खातों से, जिनमें ‘रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट’ के द्वारा उन्हें कैडिट मिलती है। फसल बीमा का प्रीमियम जमा कराने की समय सीमा में भी 15 दिनों का इजाफा किया गया है। इसके अलावा सरकार ने निचले स्तर के अपने कर्मचारियों के बारे में चिंता जताते हुए ग्रुप ‘सी’ कर्मचारियों को वेतन में से तुरंत प्रभाव से 10 हजार रुपए कैश अग्रिम लेने की सुविधा देने की पेशकश की है। रक्षा, अद्र्धसैनिक बलों, रेलवे तथा केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के समकक्ष स्तर के कर्मियों को भी यही सुविधा दी गई है। यह राशि माह के अंत में मिलने वाली नवंबर 2016 की तनख्वाह से एडजस्ट की जाएगी। शादी-विवाह वालों, किसानों और कृषि उपज मंडियों के रजिस्टर्ड व्यापारियों के अलावा अपने छोटे कर्मचारियों को नकदी की सुविधाएं देने के लिए इन राहतों की घोषणा की गई है।
कालेधन के तंत्र से संबंधित लोगों की धरपकड़ के लिए सरकार विशेष रूप से सतर्क है। कालेधन के तंत्र से संबंधित लोगों और सरकार के बीच नोटबंदी के बाद गजब आंख-मिचौली का खेल चल रहा है। कालाधन पकड़ने और उसे छिपाने के इस खेल में जनता डाल-डाल चल रही है तो सरकार पात-पात। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आठ नवंबर की रात करीब साढ़े आठ बजे पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट बंद करने का ऐलान किया। उसके बाद अचानक सोने, चांदी और हीरों की खरीद बढ़ गई।
बताया जा रहा है कि उस रात लोगों ने पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट के 50 हजार से लेकर 80 हजार रुपए प्रति तोला तक के भाव से सेना खरीदा। अब सरकार उस रात हुई खरीददारी की जांच कर रही है। ज्वैलर्स के यहां सीसीटीवी फुटेज निकाले गए हैं और खरीददार व विक्रेता दोनों से हिसाब लिया जा रहा है। इसी तरह पांच सौ और एक हजार का नोट खपाने के लिए लोगों ने लंबी दूरी की टे्रनों में ऐसी फस्र्ट-क्लास की टिकट बुक कराली। लाख-लाख रुपए की टिकट बुक हुई।
इसका मकसद था कि बाद में टिकट कैंसिल कराकर नए नोट हासिल कर लिए जाएंगे। लेकिन अब सरकार ने तय किया है कि कैंसिल होने पर सिर्फ पांच हजार रुपए मिलेंगे। बाकी पैसे खाते में जाएंगे। ऐसे ही नोट बदलने के लिए जब एक ही आदमी कई-कई बार लाइन में खड़ा होने लगा तो सरकार ने चुनाव के समय इस्तेमाल होने वाली स्याही उंगलियों पर लगाने का नियम बना दिया। जाहिर है कि लोग उपाय खोजने में लगे हैं और सरकार उन्हें रोकने में। उपाय खोजने और उसे रोकने में आम जनता और सरकार जुटी हुई है।
किंतु बड़े पूंजीपति जिनके पास अरबों-खरबों रुपए है, उन्हें कहीं पर नोटों के बदलवाने के चक्कर में नहीं देखा गया। सरकार को भी इस बात की पूरी खबर है कि बड़ी मात्रा में पैसा रखने वाले लोग हिन्दुस्तान में अपना धन नहीं रखते हैं। बड़े पूंजीपति अपना पैसा विदेशी बैंकों में रखते हैं या फिर विदेशी कारोबार में लगाते हैं या फिर विदेशी सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं। उनके पास यहां कोई खास पैसा नहीं होगा। 50 फीसदी पैसा बिना टैक्स वाला है, जो सिस्टम में रहता है। इनमें रोज मजदूरी उठाने वाले लोगों का पैसा है।
भवन निर्माण या चेजे पर लगे मजदूर को रोज की दिहाड़ी 350 से 550 रुपए बनती है। उसके पास एक या दो 500 के नोट तो होगे ही। नोटबंदी के बाद उसका तो घर चलाना मुश्किल हो गया है क्योंकि पांच सौ का नोट चलेगा नहीं। अब उस नोट के खुदरे लेने के लिए उसे एक दिन की दिहाड़ी छोडक़र उन्हें बदलवाना पड़ रहा है। इधर बैंकों में अभी या तो 500 के नए नोट आए नहीं है या फिर उनके पास खुल्ले नहीं है, क्योंकि देश क 80 फीसदी करेंसी 500 और 1000 के नोटों में थी। सरकार ने बड़े करेंसी नोट हटा तो लिए लेकिन छोटे नोटों से उस जगह को भरने की तैयारी भी नहीं है।
बिना सोचे-विचारे, बिना किसी की फिक्र किए। सरकार ने जो चाहा कर लिया और लोग इसका नतीजा भुगत रहे हैं। इसके नतीजे बुरे ही निकल रहे हैं। लोग नाराज है, बेबस है। सौ रुपए के नए नोट भी नहीं छापे। मार्केट में असली समस्या है कि पैसा ही नहीं है। जिसके पास भी पैसा है वह कोई लेना नहीं चाहता। जिनके पास 2000 रुपए का नया नोट है, उसे कोई सब्जी वाला नहीं लेना चाहता, कोई छोटा दुकानदार भी नहीं लेना चाहता।
कुछ लोगों के पास के्रडिट कार्ड है, वह चल रहा है, लेकिन कितने लोगों के पास क्रेडिट कार्ड है। सवा सौ करोड़ लोगों के देश में करीब तीन करोड़ के पास क्रेडिट कार्ड है। बड़े पूंजीपतियों के पास करीब 8 लाख करोड़ रुपए के कर्ज का पैसा फंसा हुआ है। सरकार ने इनसे एक पैसा भी नहीं वसूला है। उत्पादन ठप है। स्टॉक पड़े हुए है। हमारे 50 फीसदी मजदूर दिहाड़ी पर काम करने वाले हैं जो सबसे ज्यादा परेशानी का सामना कर रहे हैं।