उभरती ताकतों का मेल

Samachar Jagat | Saturday, 12 Nov 2016 05:28:17 PM
Combining emerging powers

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ऐसे समय जापान की यात्रा पर हैं जब चीन ने दक्षिण चीन सागर के मामले में एक बार फिर भारत को चेतावनी दी है कि अगर उसने जापान के साथ मिलकर बीजिंग का विरोध किया तो उसे भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी की यह दूसरी जापान यात्रा होगी। मोदी जापान के प्रधानमंत्री भशजे एबे से सात बार मिल चुके हैं। मौजूदा स्थितियों में उनकी जापान यात्रा का अत्यंत महत्व है। भारत और जापान का एक स्वाभाविक मित्रता की ओर अग्रसर होना मोदी सरकार की यथार्थवादी नीति का परिचायक है।

 मोदी और एबे के बीच की केमिस्ट्री बहुत ही सहज है। जब दो शीर्ष नेता रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने के लिए संकल्पित हों तो प्रगति होना लाजिमी है। भारत-जापान विजन 2025 में दोनों नेताओं ने यह स्पष्ट किया था कि भारत और जापान के बीच व्यापक पैमाने पर राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक हितों की समानता है और दोनों देश एक-दूसरे को ऐसे सहयोगी के रूप में देखते हैं जिनके पास स्थानीय और वैश्विक चुनौतियों के समाधान की जिम्मेदारी और उनसे लडऩे की क्षमता भी है।

 जरूरत इस बात की है कि दोनों देशों के बीच और इसके साथ ही उनके सहयोगियों के बीच बेहतर समन्वय और प्रभावी संवाद हो। मोदी की इस यात्रा के दौरान महत्वपूर्ण सहयोग पर सहमति के आसार हैं। वर्ष 2007 में जापान के प्रधानमंत्री एबे ने भारतीय संसद में जापान और भारत के संबंधों को दो समुद्रों का मिलन बताया था। एशिया की उभरती शक्तियों के बढ़ते आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव के कारण वैश्विक नजरिये में बदलाव आया है और इंडो-पैसिफिक की अवधारणा प्रबल होती जा रही है।

 भारत और जापान के बीच प्रधानमंत्री के स्तर पर ही नहीं, बल्कि विदेश, रक्षा, गृह, वित्त, वाणिज्य, उद्योग, रेलवे, ऊ$र्जा तथा सेना और तटरक्षक बलों के स्तर पर भी संवाद और सहयोग में उत्तरोत्तर बढ़ोतरी हो रही है। समुद्री सुरक्षा सहयोग दोनों देशों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। गैरपारंपरिक खतरों की विविधता और पैमाने के विस्तार के साथ भारत की समुद्री सुरक्षा के माहौल में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है। 

साथ ही मोदी सरकार इस बात को बखूबी समझती है कि समुद्री सुरक्षा राष्ट्रीय प्रगति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों का एक महत्वपूर्ण अवयव है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के सतत विकास की संभावनाओं के लिए भारत समग्र रूपरेखा का पक्षधर है। जापान-भारत का समुद्री सहयोग पारंपरिक और गैरपारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में बहुत कारगर साबित होगा। 

दक्षिण अंडमान द्वीप में जापान के सहयोग से 15 मेगावाट के बिजली संयंत्र की स्थापना की संभावना है। इसके अतिरिक्त अंडमान और निकोबार द्वीप की सीमाओं की निगरानी के लिए पानी के नीचे सेंसरों को लगाने में भी भारत को जापान का सहयोग मिल सकता है। भहद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर और गैरपारंपरिक सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए यह एक आवश्यक कदम होगा।

 दक्षिण चीन सागर भारत के राष्ट्रीय हितों के लिए महत्वपूर्ण है। भारत के एशिया-पैसिफिक क्षेत्र से व्यापार का लगभग 55 फीसद दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरता है। नि:संदेह अंतरराष्ट्रीय शिभपग के संदर्भ में दक्षिण चीन सागर एक महत्वपूर्ण भूरणनीतिक स्थान रखता है। ऊ$र्जा और कच्चे माल से भरे अधिकतम जहाज इससे होकर गुजरते हैं। भारत और जापान सहित कई अन्य देश अंतरराष्ट्रीय कानून के स्वीकृत सिद्धांतों के अनुसार नौवहन की स्वतंत्रता और अन्य समुद्री अधिकारों के पक्षधर हैं। 

नौवहन की स्वतंत्रता अंतरराष्ट्रीय व्यापार, आर्थिक समृद्धि और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की सुख-समृद्धि के लिए नितांत आवश्यक है। ऐसी संभावना है कि भारत और जापान नौवहन की स्वतंत्रता, विवादों के शांतिपूर्ण समाधान और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सम्मान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करेंगे। यद्यपि कुछ देशों को, जो अंतरराष्ट्रीय कानून को कागज के एक टुकड़े से ज्यादा कुछ नहीं समझते, यह नागवार गुजरेगा। 

गत वर्ष हुए रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण संबंधी समझौते को आगे बढ़ाते हुए ऐसी संभावना है कि भारत लगभग 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से जापानीज निर्माता शिनमयवा इंडस्ट्रीज से 12 यूएस-2 विमान खरीदने के समझौते पर हस्ताक्षर करेगा। यह बहुप्रतीक्षित समझौता भारतीय सेना को आवश्यक संबल प्रदान करेगा। 

इसी तरह गोपनीय सैन्य सूचनाओं के सुरक्षा संबंधी सहयोग से रक्षा संबंधों को गति मिलने के आसार हैं। भारत और जापान में असैन्य परमाणु समझौता होने की प्रबल संभावना है। इस समझौते के बाद जापान भारत को परमाणु ऊ$र्जा संयंत्रों का निर्यात कर सकेगा। परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत किए बिना जापान के साथ परमाणु समझौता करने वाला भारत पहला देश होगा। इस समझौते से दोनों देशों के आर्थिक और सुरक्षा संबंध और भी मजबूत होंगे। दोनों देश अपने मुख्य सहयोगियों के साथ सामरिक एवं रक्षा संबंधों को सुदृढ़ करने के लिए त्रिपक्षीय वार्ता और सहयोग का नुस्खा भी अपना रहे हैं। 



 

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