चीन ने पिछले सप्ताह अरुणाचल प्रदेश की छह जगहों के लिए मानकीकृत और आधिकारिक नामों की घोषणा की है, उससे साफ है कि उसने शायद सोच समझकर उकसावे की कार्रवाई शुरू कर दी है। नामों की घोषणा अगर फिलहाल केवल खबर के स्तर पर है तो भी यह भारत की संप्रभुता में चीन के अनाधिकार दखल की कोशिश है। चीन की ओर से की गई इस कार्यवाही पर भारत सरकार ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
विदेश मंत्रालय ने कहा है कि राज्य के कुछ हिस्सों का मनगढ़ंत तरीके से नामकरण करने से सीमा पर अवैध दावा वैध नहीं हो सकता। वहीं केंद्रीय मंत्री एम वेकैंया नायडू ने कहा किसी विदेशी को भारत के स्थानों का नाम रखने का कोई हक नहीं है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गोपाल बागले ने कहा कि पड़ोसी देश के शहरों के नाम बदलने या नई खोज करने से अवैध प्रादेशिक दावे वैध नहीं हो सकते। अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है और हमेशा रहेगा। एक सवाल के जवाब में प्रवक्ता ने कहा कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद के निपटारे के लिए उचित तंत्र है। इस तंत्र के जरिए सीमा संबंधी विवाद परस्पर सहमति के आधार पर निपटाए जा सकते हैं।
इस सवाल पर कि क्या भारत इसे आधिकारिक तौर पर चीन के समक्ष उठाएगा। प्रवक्ता ने कहा कि नाम बदलने की जानकारी भी चीन ने हमें आधिकारिक तौर नहीं दी है। नायडू ने भी मामले पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा अरुणाचल का एक-एक इंच भारत का हिस्सा है, उन्हें नाम रखने दीजिए, इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह उसी तरह जैसे आप अपने पड़ोसी का नाम रख देते हैं, लेकिन पड़ोसी का नाम नहीं बदलता और नहीं उसे कोई फर्क पड़ता है। यहां यह बता दें कि पिछले दिनों तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा की तवांग यात्रा को लेकर चीन ने तीखी आपत्ति जताई थी और यहां यह कहा था कि इससे द्विपक्षीय संबंधों को गंभीर क्षति हो सकती है।
ऐसे में लगता है कि चीन की ओर से बिना किसी ठोस आधार के भारत को उकसाने की कोशिश हो सकती है। खबरें यह भी है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीनी सेना को युद्ध के लिए तैयार होने की भी बात कही है। यहां यह उल्लेखनीय है कि भारत और चीन की सीमा पर 3488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लंबे समय से विवाद बना हुआ है। इसे सुलझाने के मकसद से दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों की 19 दौर की बातचीत हो चुकी है। लेकिन अब तक किसी नतीजे पर पहुंच बिना चीन ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश को ‘दक्षिण तिब्बत’ बताना शुरू कर दिया है। भारत ने हमेशा की तरह चीन के इस दावे पर तीखी आपत्ति दर्ज कराई है।
दरअसल देखा जाए तो चीन अपने अहं और जिद की तुष्टि के लिए भारत को निशाना बनाना चाहता है और उसके लिए दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा को बहाना बनाता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि दलाई लामा 1959 से ही भारत में ही रह रहे हैं। इससे पहले वे 5 बार तवांग जा चुके हैं। वैसे भी दलाई लामा को लेकर चीन का विरोध नया नहीं है। हालांकि भारत ने उन्हें इस हिदायत के साथ ही हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला मेें शरण दी हुई है कि वे किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं होंगे। लेकिन चीन को यह बात चुभती रही है कि दलाई लामा अक्सर तिब्बत की आजादी या स्वायतता का सवाल उठाते रहे हैं। यही वजह है कि चीन ने उन्हें और भारत में उनकी गतिविधियों को हमेशा शक की नजर से देखा है।
तवांग को भारत-चीन सीमा के पूर्वी क्षेत्र के सामरिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और संवेदनशील इलाके के तौर पर जाना जाता है। तवांग मठ तिब्बत और भारत के बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए खास महत्व रखता है और वहां के लोग भारत से गहरी आत्मीयता रखते हैं। जाहिर है कि तवांग पर भारत के लिए समझौता करने का कोई औचित्य नहीं हो सकता। जबकि इस पर चीन का अधिकार तिब्बती बौद्ध केंद्रों पर उसके नियंत्रण को मजबूत कर सकता है। यही वजह है कि चीन काफी समय से इस मसले पर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करता रहा है।
अरुणाचल प्रदेश की 6 जगहों के लिए अपनी मर्जी से नामकरण उसी की एक कड़ी है और भारत इस पर सख्त रवैया आख्तियार करता है तो यह स्वाभाविक ही होगा। इन हालातों के चलते भारत ने चीन से लगती सीमा पर रणनीतिक आधारभूत संरचना को और मजबूत करने का फैसला किया है। इसी कड़ी में सरकार ने पिछले सप्ताह अरुणाचल प्रदेश में दो एडवांस लैंडिंग ग्राउंड (एएलजी) बनाने का निर्णय किया है। ये लैंडिंग ग्राउंड (हवाई पट्टी) तवांग और दिरांग में बनेंगे। सूत्रों के अनुसार रक्षा सचिव जी. मोहन कुमार ने अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू के साथ हुई उच्च स्तरीय बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की। बैठक में 378 किलोमीटर लंबी मिस्सामारी तेंगा-तवांग रेलवे लाइन पर भी चर्चा हुई।
इस परियोजना को अक्टूबर 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य है। चीन की इस ताजा चाल के चलते एशिया यूरोप और अफ्रीका को सडक़ मार्ग से जोड़ने की चीन की महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड परियोजना के अगले माह होनेे वाले उद्घाटन समारोह में भारत के भाग लेने पर अनिश्चितता का माहौल पैदा हो गया है। भारत की भागीदारी के बारे में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गोपाल बागले ने कहा कि भारत को निमंत्रण मिला है और इस पर विचार चल रहा है। वैसे अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस ने इस समारोह से किनारा कर लिया है। इसमें चीन समर्थक और अमेरिका विरोधी रूस फिलीपींस और पाक के नेता भाग लेंगे।