केंद्र की नई राष्ट्रिय स्वास्थ्य नीति

Samachar Jagat | Wednesday, 22 Mar 2017 04:50:38 PM
Center's New National Health Policy

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले सप्ताह नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 को मंजूरी प्रदान कर दी है। इसके तहत ज्यादा से ज्यादा लोगों को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को मंजूरी दे दी गई। सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र पर सकल घरेलू उत्पाद का ढ़ाई फीसदी तक निवेश करेगी। अभी यह 1$04 प्रतिशत है। 

नई नीति में टीबी, मलेरिया, कालाजार समेत कई बीमारियों के उन्मूलन के लिए तय समयावधि निर्धारित की गई है और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवता-निर्धारित करने, ज्यादा से ज्यादा लोगों को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाने, आयुर्चिकित्सा को बढ़ावा देने पर विशेष फोकस रखा गया है। नई स्वास्थ्य नीति में सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए मातृ मृत्युदर, शिशु मृत्युदर में कम लाने और सांस्थानिक प्रसव के 100 प्रतिशत लक्ष्य को हासिल करने पर जोर दिया गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे$पी$ नड्डा ने नई स्वास्थ्य नीति को लेकर संसद में पिछले सप्ताह बयान दिया। 

नई स्वास्थ्य नीति में निजी स्वास्थ्य सेवाओं को नियामक दायरे में लाने के लिए तंत्र विकसित करने पर भी जोर दिया गया है। साथ ही बीमारियों से बचाव के लिए जागरूकता अभियान चलाने की बात कही गई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को प्रभावी बनाने पर भी चर्चा की गई। पिछली स्वास्थ्य नीति 2002 में बनी थी, तब भी राजग (एनडीए) की सरकार थी। नई स्वास्थ्य नीति से कुछ बेहतर की उम्मीद की जानी चाहिए। नई नीति में एक अहम बिंदु यह है कि बीमारियों के इलाज के बजाए उनसे बचाव पर ज्यादा जोर दिया जाए। पर सवाल यह है कि इस आग्रह को कार्यरूप में कैसे परिणत किया जाएगा। 

देश में नवजात शिशुओं, प्रसव के बाद माताओं और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर लंबे समय से एक गंभीर समस्या रही है। नई नीति में इसे कम करने का घोषित लक्ष्य अगर धरातल पर उतर सका तो यही अपने आप में विश्व स्वास्थ्य सूचकांक में देश की स्थिति में सुधार कर सकेगा। औसत जीवन प्रत्याशा को बढ़ाकर 70 साल करने के अलावा कालाजार, कुष्ठ, और क्षय रोग के उन्मूलन तथा कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग आदि से होने वाली मौतों की दर को 2025 तक घटाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। अब तक सबसे ज्यादा चिंता इस बात पर जाहिर की जाती रही है कि आखिर किन वजहों से सरकारें स्वास्थ्य के मद में इतनी कम राशि तय करती है। शायद इसी के मद्देनजर अब सरकार स्वास्थ्य खर्च को जीडीपी के 1$04 से समयबद्ध तरीके से बढ़ाकर 2$5 फीसदी तक करने का फैसला किया है। 

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि इतने बड़े देश में फैली आबादी और अलग-अलग इलाके में स्वास्थ्य के मामले में भिन्न जरूरतों के मद्देनजर इससे निपटने के लिए कितनी व्यवस्था रही है। डॉक्टरों की कमी, सरकारी अस्पतालों की हालत किसी से छिपी नहीं है। जाहिर है इसके मूल में वजह जरूरत के अनुपात में बहुत कम राशि का आवंटन रही है, जिसका समूची स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ता है। इसलिए अगर सरकार ने स्वास्थ्य खर्च को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के ढ़ाई फीसदी तक ले जाने का तय किया है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। 

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के मद में अधिक धनराशि के आवंटन की पिछले एक दशक से मांग की जाती रही है। सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए निजी-सरकारी भागीदारी पर जोर देने की बात कही है। उसके पास एक व्यापक, सुगठित तंत्र होता है, जो व्यवस्था और सेवा के मोर्चे पर योजनाबद्ध तरीके से काम करता है। लेकिन अगर सरकार को लगता है कि बेहतर व्यवस्था के लिए निजी क्षेत्र के साथ भागीदारी जरूरी है तो उसे यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि निजी क्षेत्र की अमूमन हर गतिविधि का आधार मुनाफा कमाना होता है और कहीं उसकी आंच कमजोर तबकों को न झेलनी पड़े। 

इस तथ्य को नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि निजी क्षेत्र ने जहां चिकित्सा सेवाओं की मौजूदगी बढ़ाई है, वहीं उन्हें महंगा भी बनाया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने नई स्वास्थ्य नीति घोषित करते हुए वंचितों और गरीबों के साथ देश के सभी वर्गों को सस्ती दरों पर गुणवतायुक्त स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने की बात कही है। अलबता उससे जरूर उम्मीद बंधती है। 

नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को सरकार यद्यपि स्वास्थ्य क्षेत्र में एक ऐतिहासिक पहल कदमी बता रही है। लेकिन किसी पहल की अहमियत आखिरकार अमल के नतीजों से साबित होती है। इसलिए यह देखना होगा कि अब तक सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सरकारों की उदासीनता रही है। 

अब देखना यह है कि चिकित्सा सुविधाओं का पुराना ढर्रा ही चलता रहेगा, या उसमें कुछ बदलाव भी आता है। यहां यह भी बता दें कि नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में चिकित्सा पद्धतियों के एकीकरण की बात कही गई है। इसके तहत एक तो बड़े अस्पतालों में ऐलोपैथी के साथ-साथ आयुर्वेद, यूनानी एवं होम्यापैथी के उपचार की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाएगी। यह सुविधा जिलास्तर तक के अस्पतालों में होगी। लेकिन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, उपकेंद्रों में जहां डॉक्टर नहीं है, नर्स नहीं है, वहां आयुष डॉक्टरों की तैनाती की जाएगी। 

आयुष मंत्रालय की ओर से पहले ही स्वास्थ्य मंत्रालय को इस बारे में प्रस्ताव दिया जा चुका है। वैसे कई राज्यों ने अपने स्तर पर आयुष डॉक्टरों को तैनात भी कर चुका है। प्रस्तावित राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में आयुष चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा देने की योजना है। इससे देश में मौजूद करीब आठ लाख आयुष डॉक्टरों के लिए मौके बढ़ेंगे। आयुष डॉक्टरों को प्रशिक्षण प्रदान करके उन्हें देसी पद्धतियों के साथ-साथ एलोपैथी के छोटे-मोटे उपचारों की इजाजत भी दी जा सकती है। जहां एलोपैथी डॉक्टरों की कमी है वहां सरकार आयुष पद्धति को विकल्प के रूप में पेश करने की इच्छुक नजर आती है। 

आयुष मंत्री श्रीपाद नाइक की ओर संसद मेें दी गई एक जानकारी के अनुसार देश में आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी और नैचुरोपैथी आदि के करीब आठ लाख डॉक्टर होने का अनुमान है, जो 3590 अस्पतालों और 25 हजार 732 डिस्पेंसरियों में तैनात है और वहां पर आयुष पद्धति से इलाज की सुविधा मौजूद है। इन्हें प्रशिक्षण देकर चिकित्सा में सीमित उपचार की अनुमति दी जाएगी। लेकिन इसके लिए पहले प्रोटोकॉल निर्धारित किए जाएंगे।



 

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