अमेरिका, सिंगापुर और ब्रिटेन के बाद आस्ट्रेलिया की वीजा नीति ने भारतीयों को झटका दिया है। आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री मेल्कम टर्नबुल ने पिछले सप्ताह मंगलवार को 457 वीजा कार्यक्रम को रद्द कर दिया है। इस वीजा के जरिए बीते एक वर्ष में 95 हजार विदेशी पेशेवरों को आस्ट्रेलिया में नौकरी मिली। इसमें ज्यादातर भारतीय हैं। इस फैसले के बाद टर्नबुल ने कहा कि जल्द ही रोजगार के लिए अस्थायी वीजा की कठोर नीति जारी की जाएगी।
यहां यह बता दें कि ‘457 वीजा’ कार्यक्रम के तहत आस्ट्रेलिया में कंपनियां विदेशी कर्मियों को चार साल के लिए अस्थायी नौकरी पर रखती थी। इसके तहत कंपनियों को उन क्षेत्रों में चार साल तक विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अनुमति थी, जहां कुशल आस्ट्रेलियाई कामगारों की कमी है। जाहिर है, टर्नबुल सरकार के फैसले का भारतीय तकनीक कर्मियों पर बुरा असर पड़ेगा। यहां यह उल्लेखनीय है कि आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मेल्कम टर्नबुल पिछले हफ्ते भारत आए तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उनकी खूब दोस्ती छलकी।
दोनों ने साथ-साथ नई दिल्ली में मेट्रो ट्रेन से यात्रा की। अक्षरधाम मंदिर देखा और सेल्फी ली। लेकिन अपने वतन लौटते ही भारत के प्रति टर्नबुल का प्रेम काफूर हो गया और उन्होंने 95 हजार से अधिक विदेशी कर्मचारियों द्वारा आयोग किए जा रहे वीजा कार्यक्रम को खत्म कर दिया। जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है, इन विदेशी कर्मचारियों में ज्यादातर भारतीय है। इस वीजा कार्यक्रम को 457 वीजा के नाम से जाना जाता है। भारत में इसके परिणामों का अंदाजा लगाया ही जा रहा था कि अमेरिका से भी बुरी खबर आई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उस आदेश पर दस्तखत कर दिए, जिसके तहत एच-1 बी वीजा कार्यक्रम की समीक्षा की जाएगी।
इस कदम को इस वीजा कार्यक्रम पर लगाम कसने की शुरुआत समझा जा रहा है। ट्रंप प्रशासन ने कहा कि ये कदम राष्ट्रपति के ‘बाय अमेरिकन, हायर अमेरिकन’ यानी अमेरिकी उत्पाद खरीदो, अमेरिकियों को नौकरी पर रखो। अभियान के अनुरूप है। ताजा आदेश पर दस्तखत करने के बाद ट्रंप ने कहा- हमारी आव्रजन प्रणाली में गड़बड़ी के कारण अमेरिकियों की नौकरियां विदेशी कामगार हथिया रहे हैं। यह सब अब खत्म होगा। ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान के दौरान जब ‘आई लव हिंदू’ कहा था तो उससे भारत में खुशी मनाई गई थी।
लेकिन उनके ताजा कदम का सबसे बुरा असर भारतीय तकनीक कंपनियों पर ही पड़ेगा। संदेश साफ है। आर्थिक संकट से जूझते देश मौजूदा समय में अंतर्मुखी हो रहे हैं। ट्रंप ने ‘अमेरिका फस्र्ट’ का नारा उछाला, तो टर्नबुल भी अपने यहां ‘आस्ट्रेलिया फस्र्ट’ की बात करने लगे है। वैसे ‘इंडिया फस्र्ट’ का नारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी उछाल चुके हैं।
ये प्रवृतियां दुनिया के अधिकांश देशों में देखने को मिल रही है। भारत जैसे देश जिसकी अर्थव्यवस्था में प्रशिक्षित मानव संसाधन निर्यात की खास भूमिका रही है। इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। यह भी साफ साफ है कि सामरिक संबंध बढ़ाने या भावनात्मक बातें करने का विभिन्न देशों के ठोस आर्थिक निर्णयों पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। हमें अपना रास्ता चुनना होगा और घरेलू बाजार पर केंद्रित करना होगा।