ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप

Samachar Jagat | Saturday, 18 Mar 2017 03:17:36 PM
Accusations of EVMs

पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव नतीजों के बाद विपक्षी दल लगातार ईवीएम यानी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों में गड़बड़ी का आरोप लगा रहे हैं। इसी सप्ताह बुधवार को भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती ने भाजपा पर मशीनों से छेड़छाड़ का आरोप लगाया है। मायावती के इन आरोपों को खारिज करते हुए चुनाव आयोग ने कहा है कि जिन लोगों को इससे शिकायत है वो कोर्ट जा सकते हैं। 

आयोग ने यह भी कहा है कि वीवीएटी की पर्ची उसके पास सुरक्षित है और राष्ट्रपति को भी रिपोर्ट सौंपी जा सकती है। इससे पहले मायावती ने कहा था कि चुनाव में बेईमानी की जीत हुई है और इसके खिलाफ कोर्ट जाएंगी। इससे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने एक प्रेस कांफे्रंस में सनसनीखेज आरोप लगाते हुए दावा किया कि पंजाब में ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ हुई और उनके वोट भाजपा और अकालीदल को गए हैं। केजरीवाल ने अगले महीने होने वाले दिल्ली नगर निगम चुनावों में ईवीएम के बजाए बैलेट पेपर के जरिए मतदान कराने की मांग की है। 

बसपा नेता मायावती ने ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगाया। उन्होंने एक पत्रकार के हवाले से कहा कि बहुजन समाज पार्टी का बटन दबाने पर भी वोट भाजपा को जा रहे थे। उन्होंने इसकी जांच की मांग की है। उनकी इस मांग पर निवर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी सहमति जताई। उन्होंने अपनी प्रेस कांफे्रंस में कहा है कि अगर सवाल उठे हैं तो सरकार को जांच करानी चाहिए। उसके तुरंत बाद कांग्रेस ने भी इन दोनों का समर्थन किया। 

उत्तराखंड में हारे मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी यह मुद्दा उठाया और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने भी इसकी जांच की मांग की है। तकनीक और उससे जुड़ी समस्याओं को जब राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के नजरिए से देखा जाता है, तो समस्या सुलझने के बजाए उसके और उलझने का खतरा पैदा हो जाता है। जिस तरह मायावती ने ईवीएम को संदेह के घेरे में खड़ा किया है और चुनाव में हार का सामना करने वाले नेताओं क्रमश: मायावती, अखिलेश यादव व हरीश रावत और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इन आशंकाओं का जवाब मांगा है, यह जरूरी हो जाता है कि ईवीएम की विश्वसनीयता का आकलन किया जाए। 

जहां तक चुनावी नतीजों को प्रभावित करने के मकसद से ईवीएम में छेड़छाड़ के आरोपों का सवाल है तो ऐसे कई वाकए हो चुके हैं। वर्ष 2009 के आम चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर संदेह प्रकट किया था और उसकी जगह मत्रपत्रों की पुरानी व्यवस्था लौटाने की मांग की थी। कुछ ही दिन पहले महाराष्ट्र नगरपालिका चुनाव में ईवीएम के जरिए धांधली की शिकायत की गई थी। नासिक, पुणे और यरवदा आदि निर्वाचन क्षेत्रों में ईवीएम को लेकर गड़बड़ी की शिकायतें दर्ज कराई गई थी और कहीं-कहीं तो इस मुद्दे पर हिंसक झड़पें तक हो गई। 

इन सारी घटनाओं और शिकायतों के मद्देनजर यह सवाल बार-बार उठता रहा है। असल में ईवीएम का विवाद नया नहीं है। हारने वाली पार्टियां अक्सर यह सवाल उठाती रही है। 2009 में जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी जीती थी, तब भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के अलावा उस समय की जनता पार्टी के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी यह मुद्दा उठाया था। उन्होंने इसकी शिकायत सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाई थी। लेकिन फिर मामला ठंडा पड़ गया। उस समय कांग्रेस ने इन आरोपों को गलत बताया था और भाजपा इन्हें बकवास मान रही है। गौरतलब है कि स्वामी इस समय भाजपा के साथ है। बहरहाल, 2009 के चुनाव के बाद हरि के प्रसाद नाम के एक इंजीनियर ने ईवीएम हैक करके उसमें बदलाव करने का दावा किया था। अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों के साथ उसने ऐसा किया था।

 तब उसे ईवीएम चुराने के आरोप में कांग्रेस की उस समय की आंध्र प्रदेश सरकार ने गिरफ्तार भी किया था। मायावती के आरोपों के बाद वह कहानी फिर सामने आई है। मिशिगन यूनिवर्सिटी में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर एलेक्स हैलडरमैन का भी दावा है कि भारत के ईवीएम बहुत ही असुरक्षित है और इनके साथ छेड़छाड़ हो सकती है। दुनिया के लगभग सभी विकसित देशों में इसके इस्तेमाल पर विवाद हुआ और तभी अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने भी ईवीएम छोडक़र बैलेट से वोटिंग की पुरानी प्रणाली अपनाई। लेकिन भारत में बैलेट से वोटिंग पर भी सवाल उठते रहे हैं। 1971 में इंदिरा गांधी की भारी भरकम जीत के बाद उस समय के जनसंघ के नेता बलराज मधोक ने आरोप लगाया था कि रूस से मंगाई गई अदृश्य स्याही के दम पर कांग्रेस जीती। उन्होंने बताया कि बैलेट पेपर पर पहले से अदृश्य स्याही की मदद से कांग्रेस के चुनाव चिन्ह के सामने पहले से मुहर लगी हुई थी।

 उनका आरोप था कि बाद में कांग्रेस के सामने लगी मुहर दिखाई देने लगी और जनसंघ के सामने लगी मुहर की स्याही उड़ गई। तब उनके इन आरोपों को किसी ने बहुत गंभीरता से नहीं लिया। आज जो भाजपा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनावी नतीजों से प्रसन्न है, अतीत में ईवीएम के खिलाफ आंदोलन तक चला चुकी है। वर्ष 2010 में भाजपा नेताओं क्रमश: किरीट सोमैया और देवेन्द्र फडनवीस, जो इस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री है, एंटी ईवीएम कहे गए आंदोलन के एक ऐसे कार्यक्रम में उपस्थित हुए थे जिसमें हैदराबाद के इंजीनियर हरि प्रसाद, जिसका जिक्र पूर्व में किया जा चुका है, ने यह दिखाया था कि कैसे विभिन्न चरणों में ईवीएम में दर्ज नतीजों में हैकिग के जरिए फेरबदल की जा सकती है। 

राजनीति में जनहित के मुद्दों को लेकर मतभेद होना और आरोप-प्रत्यारोप लगाना स्वाभाविक है, लेकिन बैंकिंग से लेकर चुनाव प्रक्रिया तक में साइबर हैकिंग जैसी दिनों-दिन विराट होती मुश्किल को सिर्फ मोदी सरकार की हरकत के रूप में केंद्रित करने की कोशिश करना असल में इस समस्या के समाधान के रास्ते में अड़चन डालने जैसा है। साइबर हैकिंग की समस्या को देखते हुए ईवीएम को एक फूलप्रूफ इंतजाम मानना भूल हो सकती है, खासकर तब, जबकि लोकतंत्र का दारोमदार चुनावी व्यवस्था पर टिका है।

 पर इसके लिए सीधे तौर पर किसी एक पार्टी को कठघरे में ला देना उससे भी बड़ी भूल है क्योंकि यह जरूरी नहीं कि हैकर सत्ता के समर्थक हों। इसलिए संदेह से देखने के बजाए मिल बैैठकर यह विचार करें कि इससे छुटकारा पाने का पक्का इंतजाम क्या हो सकता है? इसके लिए राजनीति और दलगत हितों के पार जाकर देखना होगा।



 

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