नरेंद्र बंसी भारद्वाज: पूरे भारत में होली को लेकर एक अलग ही क्रेज रहता है। क्या बच्चा, क्या बूढ़ा हर कोई रंगों के इस त्यौहार में खुद को सरोबार करने के लिए लालायित रहता है।
देश के बाकी हिस्सों में जहाँ होली रंगों के साथ खेली जाती है, वहीं उदयपुर के मेनार गांव में होली रंगों से नहीं बल्कि गोली-बारूद से मनाई जाती है।
यह त्यौहार मेनरिया ब्राह्मणों द्वारा बसे इस मेनार गांव की साढ़े चार सौ साल पुरानी परंपरा है। यह परंपरा राजस्थान की संस्कृति में समेटे अनेको रंगों में से एक रंग को प्रदर्शित करती है।
मेनार गांव एनएच-76 पर उदयपुर शहर से 45 किलोमीटर दूर स्थित है। इस पूरे गांव में ब्राह्मण आबादी सर्वाधिक है जो की होली के त्यौहार को एक अलग तरीके से मानती है।
धुलंडी के बाद 'जामरा बीज' नामक परंपरा के अनुसार इस गांव के ग्रामीणों द्वारा होली धूमधाम से अपने एक अलग तरीके से मनाई जाती है। इनकी 'जामरा बीज' नामक परंपरा विश्व विख्यात है। जो की उदयपुर आने वाले सैलानियों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है।
क्या है इस परंपरा के पीछे का इतिहास?
पिछले 400 सालों से इस गांव द्वारा निभाई जा रही इस परंपरा के अनुसार आज भी इस गांव में होली बारूद से खेली जाती है। इस परंपरा के अनुसार इस गांव के लोग पारंपरिक वेशभूषा में आधी रात को गांव की चौपाल पर इकट्ठा होकर बारूद की होली खेलते दिखाई पड़ते हैं।
इस परंपरा के अनुसार ग्रामीण इस रात को न सिर्फ पटाखे जलाते हैं, बल्कि बंदूकों से हवाई फायर भी करते दिखाई देते हैं। इन धमाकों के साथ गांव के ग्रामीण नाचते-गाते है और खुशियां मनाते हैं।
ग्रामीणों का मानना है कि मुग़ल काल में महाराणा प्रताप के पिता राणा उदय सिंह के समय अकबर ने 1567 ईस्वी में चित्तौड़ पर हमला किया था।
तब मेनारिया ब्राह्मणों ने मेवाड़ राज्य पर हुए इस आक्रमण के समय कुशल रणनीति के साथ अपने गांव और इस इलाके की रक्षा की थी। इसी के चलते इसकी याद में इस त्यौहार को मेनारिया ब्राह्मण इस अंदाज़ में मानते हैं।
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