जगदलपुर। वर्षो पुरानी आदिवासी परम्परा को छत्तीसगढ के बस्तर के आदिवासी महिलाओं ने बदल दिया। ताकि इस इलाके में शराब बंदी पूर्ण रूप से लागू हो सके। यहां की आदिवासी महिलाएं और युवतियां अब महुए से लड्डू बनाने के काम में लगी हुई है। इस शराब बंदी को लागू करने के लिए इन अनपढ़ आदिवासी महिलाओं ने अपनी सोच से एक नया तरीका इजाद किया है। ताकि आदिवासी महिलायें और पुरूष शराब से दूर रहें।
आज तक बस्तर की ऐतेहासिक परम्परा रही है कि महुए से शराब बनाई जाती है, इस परम्परा को नक्सली संवेदनशील क्षेत्र के महिलाओं ने बदल कर महुए से लडडू बना रही हैं। जो कि बहुत उपयोगी है। आदिवासी बाहुल्य इलाके की महिलाएं इन दिनों इस क्षेत्र को नई पहचान देने में जुट गई हैं।
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दरअसल, यहां आदिवासी संस्कृति के बीच कुछ ऐसी चीजें सालों से पनप रही हैं, जो सामाजिक तौर पर बुराई के लिए जानी जाती हैं और उनमें से एक हैं बस्तर इलाके में बड़ी मात्रा में मिलने वाला महुआ। इसी महुए से बनने वाली शराब के चलते ये इलाका काफी बदनाम है। इस शराब के चलते बस्तर के कई घर वीरान हो गए। परिवार उजड़ गया। ऐसे में महुए की शराब के लिए बदनाम बस्तर के इस इलाके को एक नयी पहचान देने में जुटी हैं। नक्सल प्रभावित इलाके की महिलाएं और युवतियां यहां महुए से शराब नहीं बल्कि लड्डू बनाए जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य इलाका बस्तर है, जो अपनी आदिवासी संस्कृति और वनोपज के लिए देश सहित दुनिया में प्रसिद्ध है। जंगल में मिलने वाला महुआ, टोरा, तेदू, इमली, चिरौंजी ये ऐसे वनोपज हैं, जो देश सहित दुनिया में प्रसिद्ध हैं। यहां के वनोपज आदिवासियों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करते हैं। आदिवासी बाहुल्य बस्तर सहित सरगुजा जैसे इलाकों में महुए का प्रयोग अवैध शराब बनाने के लिए ज्यादा होता रहा है जिसके परिणाम काफी भयानक रहे हैं।
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महुए से बनी अवैध शराब के चलते इन इलाकों के कई हंसते खेलते घर उजड़ गए, बच्चे अनाथ हो गए। नशे की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के लिए बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर कामानार इलाके की युवतियों और महिलाओं ने मिलकर एक अलग तरह का प्रयोग किया है।
यहां की महिलाओं ने नशे जैसे बुराई को खत्म करने के लिए महुए से शराब की जगह महुए का लडडू बनाने की ठानी और बस आत्मविश्वास के सहारे महिलाओं का ये प्रयोग एक नए मुकाम पर पहुंच रहा है। इस काम को शुरू किया कामानार निवासी बीए कर रही छात्रा संतोषी ने, पहले तो संतोषी को इस काम को शुरू करने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। लेकिन उसके बाद उसके साथ कारवां जुड़ता गया। पूरे आत्मविश्वास के साथ इस काम में जुटी संतोषी की माने तो महुए के लडडू की खासियत ये है कि महुए का लडडू खाने से जहां शरीर को दूसरे तरह से होने वाली बीमारियों से निजात मिलेगी, तो वहीं शराब जैसी लत से भी छुटकारा मिलेगा।
महुए के लडडू को संतोषी बस्तर के अलावा पूरे प्रदेश और दूसरे प्रांतों में भी भेजने की तैयारी कर रही है। ताकि बस्तर के इस महुआ लड्डू को एक अलग पहचान मिल सके। इस काम की शुरूआत संतोषी ने अकेले ही की थी। हालांकि काम अभी उस स्तर पर नहीं पहुंचा हैं। लेकिन स्थानीय महिलाओं में जागरुकता आए, शराब जैसी बुराई दूर हो। इस वजह से संतोषी ने एक स्वयं सहायता समूह का गठन किया। इस समूह में करीब दस महिलाएं हैं, जो हर दिन अपने घर का दैनिक काम पूरा करने के बाद कामानार के पंचायत भवन के एक गलियारे में बने अस्थायी ठिकाने पर पहुंच जाती हैं और फिर बस्तरियां गीतों के बीच शुरू हो जाता है बुराई से अच्छाई को बदलने का महिलाओ का ये अनूठा प्रयोग। इस काम में जुड़ी बालमति, ललिता यादव जैसी महिलाएं भी अपने कल के सुनहरे भविष्य के सपनों को संजोने में जुटी हुई हैं।
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दस महिलाओं का ये समूह बस्तर सहित प्रदेश में शराब को पूरी तरह से खत्म करने के इस अनूठे प्रयोग को कर रही हैं। अभी इस समूह को स्थानीय सरपंच मायाराम नाग द्वारा पंचायत भवन के परिसर में एक जगह महिला समूह को दी गयी है। जो इस काम को करती हैं। अभी महिलाओं को शासन स्तर पर ऐसी कोई मदद नहीं मिली हैं। वहीं बाजार के तौर पर वन विभाग के जड़ी-बूटी बेचने वाले केन्द्रों या फिर समय-समय पर बस्तर में लगने वाले मंडई मेले में महुए के बनाए लड्डू को बेचने के लिए जाती हैं।
वर्तमान में अभी समूह की महिलाओं ने अपने अपने घर से चंदा करके इस काम को करना शुरू किया है। लड्डू बनाने के लिए जो जरूरी साजो सामान हैं, उसे भी महिलाएं अपने घर से लेकर आती हैं। सबसे खास बात ये है कि इन महिलाओं को स्वच्छ भारत अभियान की पूरी जानकारी है। यही वजह है कि लड्डू बनाने के दौरान अपने पैसों से लाए हुए मास्क और सिर को ढंकने के लिए कवर भी जुटा रही हैं।
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इनका मकसद है कि उनके बनाए लड्डू में किसी तरह की कोई गंदगी न फैलने पाए। लोगों तक साफ और शुद्ध लडडू पहुंचे, इसी वजह से इन सब बातों का ख्याल करते हुए महिलाओं ने ये सावधानी खास तौर पर बरती हैं। महुए के इस लड्डू के कई मेडिकल परीक्षण भी कराए जा रहे हैं। माना जा रहा है महुए लड्डू खाने से आदिवासी इलाकों में पसरा कुपोषण काफी हद तक दूर होगा। बस्तर जैसे इलाके में शराब की लत को छुड़वाने इस बार होली के त्योहार में इस लड्डू को कुछ खास तरीके से लोगों तक पहुंचाने की तैयारी भी ये महिला समूह कर रहा है। यानि इस बार बस्तर में होली महुए की शराब से नहीं बल्कि महुए का लड्डू खाकर मनाने की तैयारी है।
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