यहां न तो दहेज प्रथा का बोलबाला है और न ही तीन तलाक का भय

Samachar Jagat | Tuesday, 25 Apr 2017 04:22:28 PM
There is neither the dowry system nor the fear of three divorces

हमारे समाज में दहेज प्रथा को भले ही कानून की नजरों में गलत समझा जाता हो लेकिन ये प्रथा बंद होने के बजाय दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। दहेज देने के लिए बेटी का पिता कर्ज के बोझ तले दबता जाता है इसके बाद भी दहेज लेने वालों का मुंह बंद नहीं होता है। शादी में दहेज के नाम पर लाखों रुपए देने के बाद भी ससुराल में बेटी को दुखी देखकर एक पिता के दिल पर क्या गुरजती है ये तो एक बेटी का पिता ही समझ सकता है।

वहीं मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक का मामला दहेज प्रथा की तरह ही समाज के लिए घातक होता जा रहा है। महिलाएं इसी भय के साए में जीती हैं कि कहीं उनकी किसी गलती पर उनका शौहर उन्हें तलाक न दे दे। मात्र तीन बार तलाक कह देने से शादी जैसे पवित्र बंधन से मुक्ति पा लेना कहां तक सार्थक है ये समाज को सोचने की आवश्यकता है। वहीं एक संत ऐसे भी हैं जो अपने अनुयायियों को दहेज लेने और देने के लिए मना करते हैं।

उनके ये अनुयायी उनकी राह पर चलकर इस प्रथा का विरोध करते हैं और जब भी यहां किसी का विवाह होता है तो न तो शादी में बैंड-बाजे बजाए जाते हैं और न ही किसी प्रकार का कोई बाह्य आडंबर किया जाता है। इसके साथ ही लड़के वाले वधू पक्ष से किसी भी प्रकार की डिमांड नहीं करते हैं, ये संत समाज को दहेज और तीन तलाक जैसे अभिशाप से मुक्त करने के लिए लोगों को जागरूक करके एक मिसाल कायम कर रहे हैं।



 

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