जानिए क्या है हाड़ी रानी का इतिहास...

Samachar Jagat | Wednesday, 15 Mar 2017 03:54:54 PM
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नरेंद्र बंसी भारद्वाज : राजस्थान की इस पूज्य धरा के लिए कविवर रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था की जब मैं इस पूज्य धरा पर कदम रखता हूं तो मेरे पैर एकाएक ही रुक जाते है। मेरा हृदय सहम जाता है की कही मेरे पैर के नीचे की वीर की समाधी या किसी वीरांगना थान ना हो। यह वाक्य राजस्थान के परिचय में कहे गए है। ऐसे बहुत से लोगो द्वारा कहे गए शब्द राजस्थान के अमर इतिहास को बताते दिखाई पड़ते है। इसी अमर इतिहास से आज हम आपके लिए एक ऐसी रानी की कहानी लाये है जिसके बलिदान की यशोगाथा राजस्थान के हरेक अंचल में आज भी सुनाई पड़ती है तो आइये जानते हाड़ी रानी का इतिहास... 

    "चुण्डावत मांगी सैनाणी,
     सिर काट दे दियो क्षत्राणी"
राजस्थान में गाया जाने वाला यह गीत इस वीरांगना के अमर बलिदान को कहता है। मेवाड़ के स्वर्णिम इतिहास में हाड़ी रानी का नाम अपने स्वर्णिम बलिदान के लिए अंकित है। यह उस समय की बात है जब मेवाड़ पर महाराणा राजसिंह (1652 – 1680 ई०)  का शासन था। इनके सामन्त सलुम्बर के राव चुण्डावत रतन सिंह थे। जिनसे हाल ही में हाड़ा राजपूत सरदार की बेटी से शादी हुई थी। लेकिन शादी के सात दिन बाद ही राव चुण्डावत रतन सिंह को महाराणा राजसिंह सन्देश प्राप्त हुआ था। जिसमे उन्होंने राव चुण्डावत रतन सिंह को दिल्ली से ओरंगजेब के सहायता के लिए आ रही अतिरिक्त सेना को रोकने का निर्देश दिया था। चुण्डावत रतन सिंह के लिए यह सन्देश उनका मित्र शार्दूल सिंह ले कर आया था। 

 यह सन्देश मिलते ही  चुण्डावत रतन सिंह ने अपनी सेना को युद्ध की तैयारी का आदेश दे दिया।  वह इस सन्देश को लेकर अपनी पत्नी हाड़ी रानी के पास पहुँच और सारी कह सुनाई। जिसके बाद हाड़ी रानी ने अपने पति को युद्ध में जाने के लिए तैयार किया। उनके लिए विजय की कामना  के साथ उन्हें युद्ध के लिए विदाई दी।

सरदार अपनी सेना के साथ हवा से बाते करता उड़ा जा रहा था। किन्तु उसके मन में रह रह कर आ रहा था कि कही सचमुच मेरी पत्नी मुझे बिसार न दें? वह मन को समझाता पर उसक ध्यान उधर ही चला जाता। अंत में उससे रहा न गया। उसने आधे मार्ग से अपने विश्वस्त सैनिकों के रानी के पास भेजा। उसकों फिर से स्मरण कराया था कि मुझे भूलना मत। मैं जरूर लौटूंगा।

 संदेश वाहक को आश्वस्त कर रानी ने लौटाया। दूसर दिन एक और वाहक आया। फिर वही बात। तीसरे दिन फिर एक आया। इस बार वह पत्नी के नाम सरदार का पत्र लाया था। प्रिय मैं यहां शत्रुओं से लोहा ले रहा हूं। अंगद के समान पैर जमाकर उनको रोक दिया है। मजाल है कि वे जरा भी आगे बढ़ जाएं। यह तो तुम्हारे रक्षा कवच का प्रताप है। पर तुम्हारे बड़ी याद आ रही है। पत्र वाहक द्वारा कोई अपनी प्रिय निशानी अवश्य भेज देना। उसे ही देखकर मैं मन को हल्का कर लिया करुंगा। हाड़ी रानी पत्र को पढ़कर सोच में पड़ गयीं। युद्धरत पति का मन यदि मेरी याद में ही रमा रहा उनके नेत्रों के सामने यदि मेरा ही मुखड़ा घूमता रहा तो वह शत्रुओं से कैसे लड़ेंगे। विजय श्री का वरण कैसे करेंगे? उसके मन में एक विचार कौंधा। वह सैनिक से बोली वीर ? मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशान दे रही हूं। इसे ले जाकर उन्हें दे देना। 

थाल में सजाकर सुंदर वस्त्र से ढककर अपने वीर सेनापति के पास पहुंचा देना। किन्तु इसे कोई और न देखे। वे ही खोल कर देखें। साथ में मेरा यह पत्र भी दे देना। हाड़ी रानी के पत्र में लिखा था प्रिय। मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी भेज रही हूं। तुम्हारे मोह के सभी बंधनों को काट रही हूं। अब बेफ्रिक होकर अपने कर्तव्य का पालन करें मैं तो चली... स्वर्ग में तुम्हारी बाट जोहूंगी। पलक झपकते ही हाड़ी रानी ने अपने कमर से तलवार निकाल, एक झटके में अपने सिर को उड़ा दिया। वह धरती पर लुढ़क पड़ा। सिपाही के नेत्रो से अश्रुधारा बह निकली। कर्तव्य कर्म कठोर होता है सैनिक ने स्वर्ण थाल में हाड़ी रानी के कटे सिर को सजाया। सुहाग के चूनर से उसको ढका।

भारी मन से युद्ध भूमि की ओर दौड़ पड़ा। उसको देखकर हाड़ा सरदार स्तब्ध रह गया उसे समझ में न आया कि उसके नेत्रों से अश्रुधारा क्यों बह रही है? धीरे से वह बोला क्यों यदुसिंह। रानी की निशानी ले आए? यदु ने कांपते हाथों से थाल उसकी ओर बढ़ा दिया। हाड़ा सरदार फटी आंखों से पत्नी का सिर देखता रह गया। उसके मुख से केवल इतना निकला उफ्‌ हाय रानी। तुमने यह क्या कर डाला। संदेही पति को इतनी बड़ी सजा दे डाली खैर। मैं भी तुमसे मिलने आ रहा हूं।

हाड़ा सरदार के मोह के सारे बंधन टूट चुके थे। वह शत्रु पर टूट पड़ा। इतना अप्रतिम शौर्य दिखाया था कि उसकी मिसाल मिलना बड़ा कठिन है। जीवन की आखिरी सांस तक वह लंड़ता रहा। औरंगजेब की सहायक सेना को उसने आगे नहीं ही बढऩे दिया, जब तक मुगल बादशाह मैदान छोड़कर भाग नहीं गया था।

इस विजय का श्रेय आज भी राजस्थान के अंचलो में हाड़ी रानी को उनके अमर बलिदान की यशोगाथाओ में दिया जाता है। जिसके चलते इसी वीरांगना के नाम पर राजस्थान सरकार द्वारा राजस्थान पुलिस में एक महिला बटालियन का गठन किया गया। गठन के बाद इस महिला बटालियन का नामकरण इसी वीरांगना के नाम पर हाड़ी रानी महिला बटालियन रखा गया है। 



 

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